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Motivational: जरूरतमंद बच्चों के लिए इस इंजीनियर ने शुरू किया मुफ्त स्कूल... 550 छात्रों के लिए बने मसीहा

2015 में जमील ने गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल खोलने का फैसला किया. उन्होंने एक बिल्डिंग किराए पर ली और नर्सरी से लेकर कक्षा 7 तक के लिए शिक्षक रखे.

Representational Image (AI Generate Image) Representational Image (AI Generate Image)

बिहार के औरंगाबाद जिले के नबीनगर में एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन) में बतौर डिप्टी जनरल मैनेजर कार्यरत जमील अख्तर का मानना है कि शिक्षा समाज को बदलने और गरीबों का जीवन सुधारने का सबसे अच्छा तरीका है. जमील के लिए सिर्फ अच्छी नौकरी ही काफी नहीं है बल्कि वह समाज को भी कुछ वापिस करना चाहते हैं. 

2001 में शुरू की थी नौकरी 
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जमील ने कानपुर की हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और 2001 में एनटीपीसी में नौकरी शुरू की. उनकी पहली पोस्टिंग दिल्ली में हुई थी. लेकिन 2014 में जब उनका तबादला नबीनगर हुआ, तो उनकी सोच बदल गई. उनका कहना है कि यह जगह उनके मामा के घर के पास है. वह यहां बचपन में आते थे, इसलिए यह जगह उनके लिए जानी-पहचानी थी. 

शुरू किया कक्षा 7 तक का स्कूल 
2015 में जमील ने गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल खोलने का फैसला किया. उन्होंने एक बिल्डिंग किराए पर ली और नर्सरी से लेकर कक्षा 7 तक के लिए शिक्षक रखे. जैसे ही लोगों को पता चला कि स्कूल में पढ़ाई मुफ्त है, बच्चे बड़ी संख्या में आने लगे. उन्होंने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमने कभी फीस नहीं ली. बच्चों को किताबें और पढ़ाई से जुड़ी चीजें भी मुफ्त में दी जाती हैं.”

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आज इस स्कूल में 550 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं. उनके स्कूल में लड़के और लड़कियां दोनों पढ़ते हैं. वह स्कूल का पूरा खर्च खुद उठाते हैं. शिक्षकों की सैलरी से लेकर बाकी सब कुछ वह खुद देखते हैं. उनके लिए यह समाज की सेवा करने का तरीका है. खर्च को लेकर उन्होंने कहा कि उन्हें पैसों की कोई परेशानी नहीं है. उनका कहना है कि उनका परिवार अच्छी स्थिति में है. 

भाईचारे की मिसाल है स्कूल 
वह खर्च कम करने के लिए किताबें सीधे प्रकाशकों से मंगवाते हैं, जिससे बिचौलियों को कमीशन नहीं देना पड़ता और पैसे बचते हैं. जो पैसे बचते हैं, उन्हें बच्चों की भलाई में लगाते हैं. भले ही उनकी अपनी नौकरी है, लेकिन वे स्कूल के बच्चों पर खुद ध्यान देते हैं. इस स्कूल में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई बच्चे एक साथ पढ़ते हैं. उनका कहना है कि उनका स्कूल भाईचारे की मिसाल बना है. 

स्कूल में सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर भी ध्यान दिया जाता है. जमील चाहते हैं कि उनके स्कूल के बच्चे किसी से पीछे न रहें. आज भी कई सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई नहीं हो पाती, ऐसे में जमील का स्कूल उन माता-पिता के लिए एक अच्छा विकल्प है जो महंगे स्कूल नहीं अफॉर्ड कर सकते. यह स्कूल गरीब बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. अगर बच्चों को अच्छी पढ़ाई और सही मार्गदर्शन मिले, तो वे ज़रूर आगे बढ़ेंगे.