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बच्चों को खेल-खेल में पर्यावरण का महत्व सिखा रही है यह 17 साल की लड़की

सिरी का जन्म सूर्यापेट में हुआ और कुछ साल पहले वे त्रिनिदाद (कैरेबियन द्वीप) में पढ़ाई कर रही थीं. क्लास 10 पूरी करने के बाद जब वे भारत लौटीं, तो उनका सपना था बच्चों के लिए जलवायु शिक्षा को खेल और मजेदार तरीकों से पढ़ाना.

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प्रदूषण और जलवायु संकट की पढ़ाई अब सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रही. हैदराबाद और सूर्यापेट के 25 से ज्यादा सरकारी व निजी स्कूलों के बच्चे अब अखबार से बैग बना रहे हैं, प्लास्टिक की बोतल का ढक्कन कहां डालना है इस पर बात कर रहे हैं और पत्तों व मिट्टी से गणेश प्रतिमाएं गढ़ रहे हैं. इन बच्चों की टीचर कोई साइंस ग्रेजुएट नहीं, बल्कि 17 साल की सिरी वडलामुड़ी हैं, जो क्लास 12 की छात्रा हैं.

सिरी का जन्म सूर्यापेट में हुआ और कुछ साल पहले वे त्रिनिदाद (कैरेबियन द्वीप) में पढ़ाई कर रही थीं. क्लास 10 पूरी करने के बाद जब वे भारत लौटीं, तो उनका सपना था बच्चों के लिए जलवायु शिक्षा को खेल और मजेदार तरीकों से पढ़ाना. उनका मानना है कि जब बच्चे बदलाव की शुरुआत करते हैं तो पूरा समाज बदलता है.

खेल-खेल में पढ़ाई
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, सिरी ने अपने छोटे भाई सार्थक के साथ मिलकर यूथ गेमिफिकेशन क्लब (YGC) की शुरुआत की. इस क्लब में भारत और विदेश के 40 से ज्यादा छात्र जुड़े हैं. इसका मकसद है बच्चों को खुद नेतृत्व देते हुए मजेदार खेलों के जरिए पर्यावरण शिक्षा देना.

क्लब के बनाए डिजिटल गेम्स में शामिल हैं:

  • ‘इको-मी, इको-अर्थ’- रोज़मर्रा की आदतों के असर को दिखाने वाला गेम.
  • ‘ट्रैश-टाइड’- समुद्र में प्लास्टिक कचरे से जानवरों को बचाने वाला क्विज़ गेम.
  • ‘पॉलिनेशन बी गेम’- बच्चे मधुमक्खी बनकर सीखते हैं कि परागण कैसे जीवन को बचाता है.
  • ‘एक्ट टू अडैप्ट’ बोर्ड गेम- समुदायों को जलवायु आपदाओं से निपटना सिखाने वाला खेल.
  • गणेश चतुर्थी के दौरान सिरी ने बच्चों को पत्तों और मिट्टी से प्रतिमा बनाने के लिए प्रेरित किया.

आइडिया कैसे आया?
सिरी को यह विचार तब आया जब उन्होंने अपने भाई को ऑनलाइन गेम Roblox Natural Disaster Survival खेलते देखा. उन्होंने सोचा कि अगर खेलों के जरिए बच्चे आपदा से लड़ना सीख सकते हैं तो क्यों न इन्हीं खेलों से जलवायु शिक्षा भी दी जाए?

लोकल से ग्लोबल तक
सिरी का काम न सिर्फ स्कूलों तक, बल्कि COP27 (यूएन क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस) जैसे ग्लोबल मंचों तक पहुंच चुका है. उन्हें "गर्ल्स कैन कोड चैलेंज" (अमेरिकी दूतावास) में सम्मान मिला, सतत विकास बहस में सर्वश्रेष्ठ डिबेटर बनीं और भारतीय किशोरों पर इको-एंग्जायटी पर रिसर्च भी की. सिरी कहती हैं कि लोकल क्लासरूम्स ने उन्हें असली मकसद दिया.

अब तक का असर

  • 25+ स्कूलों तक पहुंच
  • 500+ छात्र सीधे जुड़े
  • 100+ इको-एम्बैसडर तैयार
  • कई मोहल्ला सफाई अभियान
  • गांवों में पर्यावरण-friendly त्योहारों की शुरुआत

सिरी मानती हैं कि जलवायु बदलाव की शुरुआत बड़ी नीतियों से नहीं, बल्कि बच्चों की छोटी-छोटी आदतों और मजेदार खेलों से हो सकती है.

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