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Inspirational: सैकड़ों स्कूलों में जाकर छात्रों को किया जागरूक, एक लाख से ज्यादा पेड़ लगा चुका है यह टीचर

असम में 'गोस्पुली' (पौधा) के रूप में जाने जाने वाले, बीजू कुमार अपन बाइक पर पौधों से भरे बैग के साथ मीलों की यात्रा करके लोगों को अपने आसपास के वातावरण को हरा-भरा बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

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यह कहानी है असम के एक टीचर की जो पिछले कई सालों से बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण से जोड़ रहे हैं. जोरहाट जिले के ज्योति प्रताप ज्ञानमार्ग विद्यालय में एक शिक्षक, बीजू कुमार सरमा सालों से पौधे वितरित और उपहार देकर पर्यावरण जागरूकता के बीज बो रहे हैं. पौधों के प्रति उनके जुनून के कारण उन्हें 'गोस्पुली' (पौधा) उपनाम मिला.

बीजू ने 2014-16 तक मानद वन्यजीव वार्डन के रूप में कार्य किया. इस कार्यकाल के पहले से ही वह मीलों की यात्रा करके लोगों को पौधे बांटते आ रहे हैं. लोगों को अपने परिवेश को हरा-भरा बनाने के लिए प्रेरित करना उनकी एक आदत बन गई. उनका प्राथमिक लक्ष्य सदैव पर्यावरण की सुरक्षा रहा है. 

कैसे की शुरुआत 
बीजू ने एक बच्चे के रूप में, जोरहाट जिले के अपने मरिझांजी गांव में लोगों को एक नदी से बहुत सारी मछलियां पकड़ते देखा था. समय के साथ, मछली की आबादी काफी कम हो गई. प्रकृति में सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है, और उन्हें लगा कि वन क्षेत्र का लगातार कम होना इसका एक कारण था. इसलिए, उन्होंने पौधे लगाकर ग्रामीणों को जागरूक करना शुरू किया, और साथ ही, पौधे बांटना भी शुरू किया. 

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2002 में, वह एनजीओ 'न्यू ग्राम सेवा संगठन' में शामिल हुए और पर्यावरण और स्वास्थ्य सहित मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए राज्य भर में यात्रा की. लेकिन 2014 में जब उनके पिता बीमार पड़ गए तो उन्हें घर लौटना पड़ा. ऐसे में उन्होंने अपने गांव में ही 'रेंगोनी, ए होप' नाम से एक एनजीओ बनाया. उन्होंने समान विचारधारा वाले लोगों को इकट्ठा किया और अपना नेटवर्क फैलाने के लिए नौ सदस्यीय टीम बनाई. 

छात्रों को कर रहे हैं प्रेरित 
बीजू के एनजीओ ने पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर विभिन्न क्षेत्रों में लोगों के बीच काम करना शुरू किया, जागरूकता अभियान आयोजित करने के लिए विभिन्न राज्य सरकार के विभागों और संस्थानों के साथ सहयोग किया. छात्र उनकी प्राथमिकता रहे हैं. उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जोरहाट, माजुली, शिवसागर और कामरूप (मेट्रोपॉलिटन) जिलों के सैकड़ों स्कूलों, कॉलेजों और गांवों का दौरा किया है. उन्होंने एक लाख से अधिक पेड़ लगाए हैं और कई लाख से ज्यादा बांटे हैं. 

उन्हें वन विभाग से निःशुल्क पौधे मिलते हैं और उनके मित्र एवं शुभचिंतक भी समय-समय पर पौधे उपलब्ध कराते रहते हैं. उनके प्रयासों को देखते हुए, राज्य सरकार ने उन्हें मानद वन्यजीव वार्डन के रूप में नियुक्त किया और उन्होंने वन विभाग के साथ मिलकर काम किया. मानद वन्यजीव वार्डन के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हुए कई साल बीत चुके हैं, लेकिन वन विभाग के साथ उनका सहयोग जारी है. वे कभी-कभी उन्हें अपने आधिकारिक कार्यक्रमों में आमंत्रित करते हैं. 

उनका कहना है कि पेड़ लगाने से दोहरे फायदे होते हैं - यह पर्यावरण की रक्षा करता है और लोगों को आजीविका कमाने में मदद करता है. अगरवुड के पौधों ने असम के कुछ जिलों में कई लोगों को आय प्रदान की है. दूर-दूर तक लोग उनको प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जुनूनी व्यक्ति के रूप में जानते हैं और वह सामाजिक समारोहों में पौधे भी उपहार में देते हैं. हाल ही में एक कॉलेज टीचर ने उन्हें अपनी शादी में बुलाया और 100 पौधे लाने को कहा.