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हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी पर ट्रंप प्रशासन का बड़ा हमला! करीब 7000 छात्रों के पास क्या ऑप्शन है? क्या कॉलेज छोड़ना होगा? इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट गाइडलाइन क्या कहती है?

हॉर्वर्ड की अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स ने इस फैसले को "असंवैधानिक हमला" करार दिया और इसे अंतरराष्ट्रीय छात्रों और स्कॉलर्स पर "आतंकवादी हमला" बताया. ऑस्ट्रेलिया के अमेरिकी राजदूत केविन रुड ने भी इस फैसले पर चिंता जताई और कहा कि वे हॉर्वर्ड के ऑस्ट्रेलियाई छात्रों को काउंसलर सलाह देंगे.

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दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में से एक, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी, इस समय एक अभूतपूर्व संकट से जूझ रही है. ट्रंप प्रशासन ने गुरुवार को एक सनसनीखेज फैसले में हॉर्वर्ड की अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने की क्षमता को रद्द कर दिया है. अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने हॉर्वर्ड की स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (SEVP) सर्टिफिकेशन को खत्म कर दिया, जिसके चलते यह आइवी लीग यूनिवर्सिटी अब विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दे पाएगी. यह खबर न केवल हॉर्वर्ड के लिए, बल्कि वैश्विक शिक्षा जगत के लिए एक बड़ा झटका है. आखिर इस फैसले का असर क्या होगा? 

हॉर्वर्ड पर क्यों हुई यह कार्रवाई?
ट्रंप प्रशासन और हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है. पिछले महीने ट्रंप प्रशासन ने हॉर्वर्ड के 2.2 बिलियन डॉलर की फेडरल फंडिंग को फ्रीज कर दिया था, जब यूनिवर्सिटी ने प्रशासन की मांगों को मानने से इनकार कर दिया था. इन मांगों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रोग्राम में सुधार शामिल थे. हॉर्वर्ड ने ट्रंप प्रशासन की नीतियों का खुलकर विरोध किया और इसे "अवैध" करार दिया. जवाब में, DHS ने हॉर्वर्ड की SEVP सर्टिफिकेशन को रद्द कर दिया, जिसके बिना कोई भी शैक्षणिक संस्थान F-1 या M-1 वीजा पर विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दे सकता.

हॉर्वर्ड ने इस कार्रवाई को "प्रतिशोधपूर्ण" और "अकादमिक मिशन के लिए खतरा" बताया है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि वह अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों और स्कॉलर्स के लिए हरसंभव समर्थन देगी, जो 140 से अधिक देशों से आते हैं और हॉर्वर्ड को वैश्विक शिक्षा का केंद्र बनाते हैं.

कितना बड़ा है संकट?
2024-2025 शैक्षणिक वर्ष में हॉर्वर्ड में 6,793 अंतरराष्ट्रीय छात्र पढ़ रहे हैं, जो यूनिवर्सिटी के कुल नामांकन का लगभग 27% हैं. इसके अलावा, हॉर्वर्ड की अंतरराष्ट्रीय अकादमिक आबादी 9,970 है. इन छात्रों का यूनिवर्सिटी के सामाजिक, सांस्कृतिक और अकादमिक ताने-बाने में अहम योगदान है. लेकिन अब, DHS के फैसले के बाद, इन छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है.

DHS की सचिव क्रिस्टी नोएम ने अपने पत्र में साफ कहा है कि हॉर्वर्ड अब F- या J- गैर-आप्रवासी स्थिति वाले छात्रों को दाखिला नहीं दे सकता. इसका मतलब है कि मौजूदा विदेशी छात्रों को अपनी गैर-आप्रवासी स्थिति बनाए रखने के लिए किसी अन्य SEVP-प्रमाणित यूनिवर्सिटी में स्थानांतरण करना होगा. यह प्रक्रिया न केवल जटिल है, बल्कि कई छात्रों के लिए भावनात्मक और आर्थिक रूप से भारी पड़ सकती है.

क्या हैं छात्रों के विकल्प?
हॉर्वर्ड के अंतरराष्ट्रीय छात्र अब एक कठिन परिस्थिति में हैं. ICE (इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट) के दिशानिर्देशों के अनुसार, जिन स्कूलों की SEVP सर्टिफिकेशन रद्द हो जाती है, उनके छात्रों को आमतौर पर किसी अन्य प्रमाणित स्कूल में स्थानांतरण का मौका दिया जाता है. लेकिन अगर यह संभव नहीं हुआ, तो उन्हें देश छोड़ना पड़ सकता है.

वकील ब्रैडली ब्रूस बनियास, जो कई अंतरराष्ट्रीय छात्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने इस फैसले को "राजनीति को कानून से ऊपर रखने" का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि कुछ छात्र पर्यटक वीजा के लिए आवेदन कर सकते हैं ताकि वे अमेरिका में रह सकें, लेकिन यह केवल अस्थायी समाधान है. बनियास ने यह भी उम्मीद जताई कि कोई जज इस "अभूतपूर्व" फैसले के खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा जारी कर सकता है.

क्या यह फैसला कानूनी है?
CNN के कानूनी विश्लेषक और पूर्व सीनेट ज्यूडिशियरी कमेटी के वकील एलियट विलियम्स का कहना है कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम "कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन" करता प्रतीत होता है. उनके अनुसार, SEVP सर्टिफिकेशन रद्द करने की प्रक्रिया में स्पष्ट कानूनी कदम उठाए जाने चाहिए, जो प्रशासन ने नहीं उठाए. हॉर्वर्ड के पास इस फैसले के खिलाफ मजबूत कानूनी आधार हैं, और यूनिवर्सिटी के नेता, छात्र और फैकल्टी इस मामले को कोर्ट में ले जा सकते हैं.

गुरुवार को ही, सैन फ्रांसिस्को के फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज जेफ्री व्हाइट ने ट्रंप प्रशासन को अमेरिका में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की कानूनी स्थिति खत्म करने से रोक दिया. यह फैसला व्यक्तिगत मामलों पर लागू होता है, लेकिन हॉर्वर्ड के खिलाफ कार्रवाई पर इसका क्या असर होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है.

हॉर्वर्ड की रिसर्च पर क्या होगा असर?
हॉर्वर्ड के कुछ कर्मचारी और प्रोफेसर इस फैसले को अमेरिकी शिक्षा जगत के लिए एक बड़ा झटका मानते हैं. हॉर्वर्ड के अर्थशास्त्र प्रोफेसर और ओबामा प्रशासन के पूर्व अधिकारी जेसन फरमैन ने इसे "हर स्तर पर भयानक" बताया. उनके अनुसार, अंतरराष्ट्रीय छात्र हॉर्वर्ड की नवाचार और अनुसंधान शक्ति का एक बड़ा हिस्सा हैं. अगर ये छात्र चले गए, तो कई लैब खाली हो जाएंगे, और हॉर्वर्ड की रिसर्च क्षमता को गहरा नुकसान पहुंचेगा.

पिछले महीने की फेडरल फंडिंग फ्रीज ने पहले ही हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ को प्रभावित किया है. मेडिकल स्कूल में छंटनी की आशंका है, और पब्लिक हेल्थ स्कूल को तीन रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर काम रोकना पड़ा है.

आर्थिक नुकसान कितना बड़ा?
अंतरराष्ट्रीय छात्र अमेरिकी कॉलेजों के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे ज्यादातर पूरी ट्यूशन फीस चुकाते हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन के अनुसार, 75% से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्र अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं, परिवार या नौकरी से उठाते हैं. हॉर्वर्ड, जिसका एंडोमेंट 53.2 बिलियन डॉलर का है, भले ही देश की सबसे अमीर यूनिवर्सिटी हो, लेकिन इस फंड का उपयोग इतना आसान नहीं है.

इस एंडोमेंट का 80% हिस्सा स्कॉलरशिप, फैकल्टी चेयर और अकादमिक प्रोग्राम्स के लिए आरक्षित है, और बाकी का बड़ा हिस्सा हेज फंड्स, प्राइवेट इक्विटी और रियल एस्टेट जैसे नकदी में आसानी से परिवर्तित न होने वाले निवेशों में फंसा है.

DHS की सचिव क्रिस्टी नोएम ने अप्रैल में कहा था कि हॉर्वर्ड अपने विशाल एंडोमेंट को बनाए रखने के लिए विदेशी छात्रों की फंडिंग पर बहुत अधिक निर्भर है. इस फैसले से यूनिवर्सिटी की आर्थिक स्थिरता पर गहरा असर पड़ सकता है.

गौरतलब है कि हॉर्वर्ड की अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स ने इस फैसले को "असंवैधानिक हमला" करार दिया और इसे अंतरराष्ट्रीय छात्रों और स्कॉलर्स पर "आतंकवादी हमला" बताया. ऑस्ट्रेलिया के अमेरिकी राजदूत केविन रुड ने भी इस फैसले पर चिंता जताई और कहा कि वे हॉर्वर्ड के ऑस्ट्रेलियाई छात्रों को काउंसलर सलाह देंगे.

अब हॉर्वर्ड इस फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहा है. यूनिवर्सिटी ने कहा है कि वह अपने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हरसंभव समर्थन देगी.