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स्कूल पहुंचने के लिए छात्रों को पार करना पड़ता है 1 किमी का तालाब, युवती ने शुरू की फ्री बोट सर्विसेज ताकि न छूटे बच्चों की पढ़ाई

मुंबई के पास पलटपाड़ा गांव के बच्चों को एक किमी का तालाब पार करके दूसरे गांव के स्कूल में जाना होता है. कोई अन्य सुविधा न होने के कारण अक्सर बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है. लेकिन एक युवती की नेक पहल से अब बच्चे हर रोज स्कूल पहुंच रहे हैं.

Kanta Helping Kids Kanta Helping Kids
हाइलाइट्स
  • कई छात्रों का जीवन संवार रही है कांता की पहल

  • फ्री में छात्रों को नाव से तालाब पार कराती हैं कांता

पिछले कुछ सालो में देश में काफ़ी सकारात्मक बदलाव हुए हैं. सबसे अच्छी बात है कि शिक्षा का महत्व पूरे देश में बढ़ा है. हम सब जानते हैं कि शिक्षा का अधिकार देश में रह रहे हर व्यक्ति का है. हालांकि, देश में अभी भी कुछ जगहे हैं जहां लोगों को शिक्षा पाने के लिए काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है. देश में कुछ गांव ऐसे हैं जो बड़े शहरों के पास हैं लेकिन वहाँ पर लोगों को शिक्षा पाने के लिए अलग-अलग हालातों से गुजरना पड़ता है. 

कहीं स्कूल जाने के लिए रास्ते नहीं हैं तो कहीं स्कूल गांव से बहुत दूरी पर है. ऐसे में कुछ लोग पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं तो कुछ हालातों को अपनाते हुए मुश्किलों को पार करते हैं. ऐसी ही एक संघर्ष की कहानी है 19 वर्षीय युवती कांता चिंतामन की. जिसकी एक पहल आज कई छात्रों का जीवन संवार रही है. 

कश्ती में जाते हैं स्कूल
मुंबई से सटे थाने ज़िले के पलटपाड़ा गांव के बच्चों के लिए शिक्षा पाना बहुत ही चुनौतियों से भरा सफर है. इस गांव में रहने वाले लोगों के पास कोई खास सुविधाएं नहीं हैं. और गांव में रास्तों के हालात इतने बदतर हैं कि यहां रहने वाले बच्चों को कश्ती से स्कूल तक का सफ़र तय करना पड़ता है. इस छोटे से गांव में मात्र 25 परिवार रहते हैं. और वे कृषि और मछली पकड़ने पर निर्भर हैं. 

गांव से निकटतम स्कूल 80 मिनट से अधिक दूरी पर है और बच्चों को 1 किमी लंबे तालाब को पार करके जाना पड़ता है. ठाणे से 50 किमी दूर इस गांव में बच्चों की शिक्षा न छूटे इसलिए 19 वर्षीय कांता चिंतामन ने एक मुहिम शुरू की है. इस मुहिम के तहत वह एक छोटी सी कश्ती में बिना किसी पैसे के गांव से स्कूल के बच्चों को दूसरे गांव के स्कूल तक ले जाती हैं. 

दूसरों की मदद करने का है इरादा
कांता इसी परेशानी के कारण शिक्षा से वंचित रह गयी थीं. जब वह कक्षा 9 में थी, तो उनका स्कूल छूट गया क्योंकि उन्हें स्कूल तक ले जाने वाला कोई नहीं था. उस समय न तो नावें थीं और न ही कोई और मदद. स्कूल छोड़ने के पांच साल बाद, उन्होंने एक नाव खरीदी और अपने गांव के सभी बच्चों के लिए मुफ्त सेवा शुरू की है ताकि कोई भी उनकी तरह शिक्षा से वंचित न रहे.