
साल 2020 में चीन के वुहान प्रांत से दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस ने जमकर तबाही मचाई. जहां अब साल 2021 भी खत्म होने को है एक सवाल जो सबके मन में उठ रहा है कि आखिर कोरोना का अंत कब है. फिलहाल इस सवाल का जवाब डॉक्टर्स और साइंटिस्ट के पास भी नहीं है. पर कोविड के कहर के बीच लोगों ने जैसे इसके साथ ही जीना सीख लिया है. मास्क और सैनीटाइजर अब सामान्य बात हो गए हैं.
कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर ने जहां लगभग हर देश में सभी उम्र-वर्ग के लोगों को प्रभावित किया, वहीं हाल ही में सामने आए वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन ने तीसरी लहर की आशंका पैदा कर दी है. ऐसे में हाल ही में पटरी पर लौटी जिंदगी की गाड़ी पर एक बार फिर ब्रेक लग गया है. क्रिसमस और नए साल के जश्न के बीच खतरे को देखते हुए तमाम जगहों पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए गए हैं. लंबे समय बाद खुले स्कूल और कॉलेज एक बार फिर बंद होने की कगार पर हैं. ऐसे में ये बहस एक बार फिर उठी है कि आखिर कोविड 19 का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा है.
दुनिया भर में कोरोना महामारी की वजह से स्कूल बंद करने पड़े, जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई पर बहुत बुरा असर पड़ा. महामारी के फैलने पर स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज की शिक्षा पर भी बहुत असर पड़ा है. स्कूलों और कॉलेजों को महामारी के दौरान बंद करने से सीखने की प्रक्रिया प्रभावित हुई. साथ ही देशभर में शिक्षा प्रणाली भी प्रभावित हुई.
ऑनलाइन क्लासेज का असर
महामारी के कारण स्कूल-कॉलेज की अवधारणा ही बदल गई. कोरोना के दौरान क्लासेज और एग्जाम वर्चुअली लिए गए. बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी की भौतिक उपस्थिति महत्वपूर्ण होती है, पर महामारी के कारण तमाम विद्यार्थी ऑनलाइन एडमिशन, क्लास और एग्जाम देने को बाध्य हुए. जिसके चलते विद्यार्थी और शिक्षक भौतिक रूप से दूर तो हुए ही, मोबाइल और लैपटाप की स्क्रीन पर लगातार घंटों बैठने से परेशानियां भी होने लगीं. ऐसे में शिक्षा पाने का प्रेरणादायी अनुभव उबाऊ होने लगा.
डिजिटल उपकरणों तक सभी लोगों की पहुंच नहीं
भारत में डिजिटल उपकरणों तक सभी लोगों की पहुंच नहीं है. यही वजह रही कि जहां बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स स्मार्टफोन, नेटवर्क का अभाव होने के चलते क्लास ही अटेंड नहीं कर पाए. वहीं दूसरी ओर ऑनलाइन क्लासेस के बावजूद बच्चों का ग्रेड लेवल नीचे गिरा.स्कूल, टीचर से दूर होने के चलते बच्चों की सीखने की क्षमता प्रभावित हुई. शिक्षा में नुकसान मुख्यत: पांच कारणों से हुआ- डिजिटल डिवाइड, सरकारी संस्थानों में सुस्त प्रशासन, पहले से मौजूद क्षमता में कमी, लंबा लॉकडाउन और कमजोर ऑनलाइन अध्ययन/अध्यापन विषय वस्तु. कई सर्वे में सामने कि प्राइमरी क्लासेज के बच्चे लैंग्वेज और मैथमेटिकल एबिलिटी में भी पिछड़े.
सरकारी स्कूलों में बढ़े दाखिले
सितंबर में हुए ASER (एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट) सर्वे के अनुसार भारत में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बहुत से छात्रों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया. सर्वे में इसके कारण की कई वजहें सामने आयीं, जैसे महामारी के कारण आई आर्थिक तंगी, सरकारी स्कूलों की मुफ्त फैसिलिटी, प्राइवेट स्कूलों का ऑनलाइन क्लास न ले पाना और लॉकडाउन के कारण हुआ पलायन.
तकनीकी रूप से दक्ष हुए बच्चे
हालांकि, ऑनलाइन क्लासेज के कुछ फायदे भी हुए हैं. क्लास अटेंड करने से लेकर एग्जाम देने तक हर काम ऑनलाइन करने से छोटे-छोटे बच्चे भी टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ने लगे हैं. उनके साथ ही बच्चों के ऐसे माता-पिता जो तकनीक से दूर भागते थे वो भी अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए उसे सीखने लगे हैं. स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटॉप खुद चलाने से लेकर उनपर कुछ भी सर्च करना, प्रोजेक्ट बनाना जैसे काम भी छोटे बच्चे और पेरेंट्स मिलकर करने लगे हैं. ऐसे में कोरोना महामारी के चलते शिक्षा, उसके तरीकों में और कितना बदलाव आएगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
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