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Gujarat Assembly Elections 2022: गुजरात में 8 आबादी वाले Dalit Community का क्या है सियासी समीकरण, जानिए

Dalit Politics in Gujarat: गुजरात में दलित समुदाय की आबादी 8 फीसदी है. सूबे में 13 सीटें दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं. लेकिन करीब 25 सीटों पर दलितों का दबदबा है. गुजरात में दलित कभी भी किसी एक पार्टी का वोट बैंक नहीं रहा है.

भूपेंद्र पटेल, इसुदान गढ़वी और जगदीश ठाकोर (फाइल फोटो) भूपेंद्र पटेल, इसुदान गढ़वी और जगदीश ठाकोर (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • गुजरात में 8 फीसदी है दलित आबादी

  • 25 सीटों पर है दलितों का दबदबा

गुजरात में विधानसभा चुनाव के वोटिंग के दिन नजदीक आ रहे हैं. ऐसे में प्रचार के अलावा समीकरणों पर भी खूब चर्चा हो रही है. किस समुदाय का वोट किसे जाएगा? किसकी जीत होगी? ये तमाम मुद्दों पर चौराहों से लेकर चाय की दुकान तक पर चर्चाएं हो रही हैं. सूबे के चुनाव में दलित समुदाय की अहम भूमिका होती है. करीब 25 सीटों पर दलितों का दबदबा माना जाता है. माना जाता है कि इन सीटों पर दलित समुदाय के वोट से ही हार-जीत का फैसला होता है.

क्या है सियासी ताकत-
गुजरात में 8 फीसदी दलित आबादी है. आबादी भले ही कम है, लेकिन ये समुदाय सियासी ताकत रखता है. गुजरात में दलित समुदाय किसी एक पार्टी का वोट बैंक कभी नहीं माना गया. हमेशा इस समुदाय का वोट सभी पार्टियों का जाता रहा है. सूबे की 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इसके अलावा 12 सीटों पर दलितों का प्रभाव सबसे ज्यादा माना जाता है. इन सीटों पर दलितों की आबादी 10 फीसदी से ज्यादा है और ये समुदाय ही हार-जीत तय करते हैं. हालांकि अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो कभी भी एक पार्टी को दलित समुदाय का वोट नहीं मिला है. आरक्षित सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी को मिली-जुली सफलताएं हासिल हुई हैं.

उपजातियों में बंटा है दलित-
सूबे में दलितों की आबादी 8 फीसदी है. गुजरात में दलितों की तीन उप-जातियां हैं. इसमें वांकर, रोहित और वाल्मिकी आते है. सबसे ज्यादा आबादी वांकर समुदाय की है. जबकि दूसरे नंबर वाल्मिकी सममुदाय आता है. 

2017 में किसको था दलितों का समर्थन-
दलित समुदाय के वोटर्स कभी एक पार्टी के समर्थन में एकजुट नहीं होते हैं. इसके लिए साल 2017 के नतीजों को देखा जा सकता है. इस विधानसभा चुनाव में 13 आरक्षित सीटों में से सबसे ज्यादा सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी. बीजेपी ने 7 सीटों पर फतह किया था. लेकिन कांग्रेस पार्टी भी पीछे नहीं थी. कांग्रेस ने 5 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि एक सीट निर्दलीय के पास थी. जिसपर जिग्नेश मेवाणी ने जीत दर्ज की थी. 

कब, किसका पलड़ा रहा भारी-
साल 2017 विधानसभा चुनाव से पहले की बात करें तो दलित समुदाय में बीजेपी की पकड़ मजबूत रही है. साल 2012 के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो बीजेपी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ 3 सीटें आई थीं. अगर 2007 चुनाव के नतीजों को देखें तो बीजेपी ने 11 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. जबकि कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों पर जीत नसीब हुई थी. 

किन सीटों पर दलितों का प्रभाव-
सूबे में दलितों के लिए 13 सीटें रिजर्व हैं. इसमें असरवा, वडोदरा सिटी, राजकोट ग्रामीण, वगड्डा, काडी, इदर, बारडोली, गांधीधाम, दानिलिमदा, दासदा, कोडिनार सीट शामिल है. इसके अलावा और 12 सीटों पर दलितों का दबदबा है. इसमें अमराईवाड़ी, बापूनगर, ठक्करबापा नगर, जमालपुर, ढोलका, चनास्मा, सिद्धपुर, पाटन, अब्दसा, केशोद, वाव और मनावदार सीट पर दलितों का दबदबा है. इन सीटों पर 10 फीसदी से ज्यादा की आबादी दलितों की है.

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