Arvind Kejriwal and Rahul Gandhi (File Photo: PTI)
Arvind Kejriwal and Rahul Gandhi (File Photo: PTI) एक समय था जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के साथ गठबंधन को लेकर पार्टी में वीटो कर दिया करते थे. अब राहुल गांधी उसी केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ गठबंधन करना चाह रहे हैं. आखिर क्यों? आइए जानते हैं.
साल 2019 में गठबंधन से कर दिया था साफ मना
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सबसे पहले कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की बात आई थी तो राहुल गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे. तब काफी हद तक दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत आगे बढ़ चुकी थी लेकिन कांग्रेस सूत्रों की मानें तो जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने हरियाणा और पंजाब की सीटों को लेकर बारगेनिंग शुरू की तो राहुल ने गठबंधन के लिए साफ मना कर दिया और बातचीत टूट गई.
उस समय दिल्ली में भी दो खेमे थे. साल 2019 में दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको गठबंधन के हिमायती थे लेकिन तब दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित हुआ करतीं थी. उनकी न तो चाको से बनती थी और न ही केजरीवाल से, वहीं शीला दीक्षित और राहुल गांधी के संबंध काफी मधुर थे. इसी वजह से गठबंधन की लंबी बातचीत के बाद भी बात बन नहीं पाई.
कांग्रेस और आप में रही खींचतान
जब बीजेपी और एनडीए का मुकाबला करने के लिए इंडिया गठबंधन बनाने की चर्चा शुरू हुई तो लगभग सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश शुरू हुई. शुरुआती दिनों में ही केंद्र सरकार ने दिल्ली के सेवा यानी सर्विसेज मामलों को लेकर एक अध्यादेश ऑर्डिनेंस लागू कर दिया. यह बात पिछले साल मई-जून की है. उस समय बार-बार समय मांगने के बावजूद राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेताओं को मिलने का समय नहीं दिया. तभी इंडिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी के शामिल होने को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे.
आखिरकार, जब केंद्र सरकार ने संसद में दिल्ली सर्विसेज बिल को पेश किया तो कांग्रेस ने भी फैसला किया कि वो इस बिल के खिलाफ वोट करेगी और तभी से दोनों पार्टियों के संबंधों में सुधार की शुरुआत हुई. लेकिन फिर से अगस्त महीने में जब कभी आम आदमी पार्टी की नेता रहीं अल्का लांबा ने ये बयान दिया कि कांग्रेस दिल्ली की सभी सीटों पर अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है, तब आम आदमी पार्टी ने फिर से गठबंधन छोड़ने की धमकी दे डाली.
पंजाब रहा गठबंधन से बाहर
आखिरकार चंडीगढ़ में मेयर चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अरविंद केजरीवाल की मुलाकात हुई और नतीजा ये रहा कि दोनों पार्टियों ने वहां साथ मिलकर वोट किया और कामयाबी भी हासिल हुई. वहीं से 2024 लोकसभा चुनावों के लिए अलग-अलग राज्यों में गठबंधन का रास्ता खुला.
दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में सीट बंटवारे पर लंबी बातचीत के बाद सहमति तो बनी लेकिन पंजाब पर दोनों पार्टियों ने अकेले लड़ने का फैसला लिया. गठबंधन के बावजूद आम आदमी पार्टी दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई और पंजाब में सरकार होते हुए भी कांग्रेस से पिछड़ गई. केजरीवाल का जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आना भी पार्टी की किस्मत नहीं चमका पाया. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का एक-दूसरे से मोहभंग हुआ और गठबंधन को राज्य स्तर के चुनावों में खत्म करने का फैसला ले लिया गया.
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले राहुल के प्रस्ताव के मायने
राहुल गांधी अब विपक्ष के नेता हैं और उनके दायित्व में विपक्षी पार्टियों को सदन के अंदर ही नहीं बल्कि बाहर भी साथ लेने की जिम्मेदारी है. बात बस इतनी ही नहीं है, हरियाणा में बेशक आम आदमी पार्टी कुरुक्षेत्र की एकमात्र सीट नहीं जीत पाई, जो उसे गठबंधन के तौर पर मिली थी लेकिन वहां भी हार काफी कम अंतर से हुई. कांग्रेस को फायदा हुआ और उसे 9 में से 5 सीटों पर जीत मिली.
ऐसे समय में जब अरविंद केजरीवाल के हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जेल से बाहर आने की चर्चा है, वैसे में कांग्रेस को केजरीवाल के साथ हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर को साधने का बेहतर विकल्प दिख रहा है. वजह ये भी है कि और भी गठबंधन आम आदमी पार्टी को अपने साथ लाना चाहता हैं. कांग्रेस मानती है कि ऐसा होने से विरोधी वोटों का बिखराव हो सकता है और जीती बाजी पलट सकती है. युवा, महिला और शहरी वोटरों के कुछ हिस्सों पर केजरीवाल का प्रभाव अच्छा है. हरियाणा न सिर्फ केजरीवाल का पैतृक प्रदेश है बल्कि जिस दिल्ली के केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं, उसकी सीम तीन ओर से हरियाणा से ही लगती है. बात सिर्फ हरियाणा की ही नहीं है बल्कि अगले साल शुरुआत में दिल्ली विधानसभा चुनाव भी होने हैं. ये प्रयोग सफल रहा तो दिल्ली में भी गठबंधन कर बीजेपी को रोकने की रणनीति राहुल के दिमाग में चल रही होगी.