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Bihar Election: BJP को तीर की तरह चुभ रहे हैं आरके सिंह के बयान, फिर भी एक्शन से परहेज, क्या पवन सिंह हैं वजह?

बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के बयानों से बीजेपी असहज हो गई है. लेकिन फिलहाल पार्टी किसी भी तरह का कोई एक्शन लेने के मूड में नहीं है. पार्टी का आंकलन है कि आरके सिंह की कमी को भोजपुर स्टार पवन सिंह पूरी कर दी है. इसलिए पार्टी अभी आरके सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई से परहेज कर रही है.

RK Singh and Pawan Singh RK Singh and Pawan Singh

बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग कल यानी 5 नवंबर को होगी. इससे पहले बीजेपी के दिग्गज लीडर आरके सिंह ने पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और नौकरशाह से नेता बने आरके सिंह ने न केवल अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं नित्यानंद राय और सम्राट चौधरी को असहज किया है, बल्कि नीतीश सरकार पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं. चुनाव और मतदान के ठीक पहले बीजेपी अब उनके बयानों के असर और संभावित नुकसान का आकलन करने में जुटी है, हालांकि पार्टी फिलहाल उनके खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई करने के मूड में नहीं है.

आरके सिंह के बोल से किसको नुकसान?
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि आरके सिंह के ये बयान उन्हें ही नुकसान पहुंचा रहे हैं और उनकी अपनी राजनीतिक संभावनाओं को खत्म कर रहे हैं. आरके सिंह ने न केवल बीजेपी नेताओं के खिलाफ प्रशांत किशोर के बयानों का समर्थन किया, बल्कि उन्होंने प्रधानमंत्री और पार्टी की सभाओं से भी दूरी बनाए रखी है.

बीजेपी का मानना है कि अगर अभी उनके खिलाफ कार्रवाई की गई तो विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाकर भुनाने की कोशिश करेगा. पार्टी चाहती है कि आरके सिंह को 'राजनीतिक शहीद' न बनने दिया जाए. इसी वजह से बीजेपी ने अपने नेताओं को हिदायत दी है कि वे आरके सिंह के बयानों पर कोई प्रतिक्रिया न दें.

नुकसान की भरपाई कर रहे हैं पवन सिंह?
पार्टी के अंदर यह भी आंकलन है कि आरके सिंह और उनके बयान से कोई बड़ा चुनावी नुकसान नहीं होने वाला है. दरअसल, भोजपुरी सुपरस्टार और सिंगर पवन सिंह को पार्टी में शामिल करके बीजेपी ने आरके सिंह के प्रभाव को काफी हद तक कम कर दिया है. आरा और आसपास के इलाकों में सीमित प्रभाव रखने वाले आरके सिंह के मुकाबले पवन सिंह की लोकप्रियता पूरे बिहार में है, खासकर युवाओं और महिलाओं के बीच. उनकी चुनावी सभाओं में उमड़ती भीड़ बीजेपी को राहत दे रही है.

आरा से लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ही आरके सिंह पार्टी से नाराज बताए जाते हैं. उनका आरोप है कि उन्हें बाहरी विपक्ष ने नहीं, बल्कि पार्टी के अंदरूनी लोगों ने हरवाया. दिलचस्प यह है कि उसी क्षेत्र से आने वाले पवन सिंह भी राजपूत समुदाय से हैं. बीजेपी को डर था कि आरके सिंह की नाराजगी से राजपूत वोटर दूर न हो जाएं, लेकिन पवन सिंह के आने से पार्टी ने इस नाराजगी को काफी हद तक न्यूट्रल कर दिया है.

अलग-थलग पड़ गए हैं आरके सिंह-
बीजेपी ने इस बार टिकट बंटवारे में भी राजपूत समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया है. पार्टी ने करीब दो दर्जन राजपूत उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि आरा, सासाराम, बक्सर और काराकाट जैसे जिलों में पवन सिंह की सभाओं पर विशेष जोर दिया जा रहा है. इन इलाकों में राजपूत मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है, और पार्टी का संगठन पूरी तरह पवन सिंह के साथ खड़ा है, जिससे आरके सिंह लगभग अलग-थलग पड़ गए हैं.

बीजेपी को भरोसा है कि बिहार की जनता और राजपूत मतदाता यह अच्छी तरह समझते हैं कि पार्टी ने आरके सिंह को हमेशा सम्मान और जिम्मेदारी दी. ऐसे में चुनाव के समय उनके नाराजगी भरे बयानों का असर बहुत सीमित रहेगा.

(हिमांशु मिश्रा की रिपोर्ट)

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