Prashant Kishor
Prashant Kishor बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की पार्टी जन सुराज (Jan Suraj) को गेंम चेंजर कहा जा रहा था लेकिन मतगणना के दिन इस पार्टी का सूपड़ा साफ होता दिख रहा है. यानी प्रशांत किशोर (PK) की पार्टी जन सुराज (JSP) को एक भी सीट पर जीत मिलती नहीं दिख रही है. इस चुनाव में विधानसभा की कुल 243 सीटों में से जन सुराज ने 239 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. पीके ने खूब पदयात्रा की थी. चुनाव प्रचार के दौरान रोजगार और प्रवास का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था.
प्रशांत किशोर की उम्मीद को लगा गहरा झटका
चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने बिहार में तीन साल तक पदयात्रा की. उन्होंने 2 अक्टूबर 2022 से पदयात्रा शुरू की थी. पीके बिहार विधानसभा चुनाव 2025 तक लगातार बिहार की जमीन पर पसीना बहाते नजर आए. प्रशांत किशोर ने चुनाव प्रचार के दौरान रोजगार, बेरोजगारी, पलायन, स्कूलों और अस्पतालों की बदहाली का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था. प्रशांत किशोर बिहार के ही रहने वाले हैं. उन्हें लगा था कि बिहार के लोग उनकी बातों और वादों के आधार पर वोट जरूर देंगे. प्रशांत किशोर की इस उम्मीद को गहरा झटका लगा है.
PK ने कही थी ये बड़ी बात
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ऐलान किया था कि उनकी पार्टी या तो अर्श पर होगी या फर्श पर, बीच का रास्ता नहीं होगा. उन्होंने कहा था कि या तो उनकी पार्टी 150 से ज्यादा सीटें जीतेगी या फिर 10 से भी कम. PK ने चुनाव प्रचार के दौरान जन सुराज को नए बिहार की आवाज बताया था. उन्होंने जन सुराज पार्टी को बिहार की राजनीति का गेम चेंजर बताया था. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. प्रशांत किशोर की रैलियों में उमड़ी भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो सकी है. प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 25 से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाएगी और यदि इससे अधिक सीटें जीती तो वह राजनीति छोड़ देंगे. जदयू को बंपर जीत मिल रही है. अब देखना है कि इस चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के बावजूद प्रशांत किशोर उनकी पार्टी जन सुराज बिहार की राजनीति में बनी रहती है या नहीं.
जन सुराज पार्टी की हार के बड़े कारण
1. बिहार के लोगों में नीतीश सरकार से नाराजगी तो थी लेकिन यह गुस्सा इतना अधिक नहीं था कि लोग सरकार बदल दें. यदि सरकार बदलनी होती तो लोग प्रशांत या कोई अन्य विकल्प बिहार की जनता चुनती.
2. पीके ने रोजगार, बेरोजगारी, पलायन का मुद्दा उठाया था लेकिन रोजगार देने के वादे जदयू, बीजेपी से लेकर आरजेडी तक ने किए. एनडीए और महागठबंधन दोनों ने चुनाव जीतने के बाद करोड़ों नौकरियां देने का वादा किया. ऐसे में बिहार की जनता मतदान करते समय पीके के वादों को भूल गई और एनडीए गठबंधन को जमकर वोट दिया.
3. बिहार की 90 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है. जन सुराज पार्टी का प्रचार गांवों की जगह शहरी आबादी और डिजिटल तक सिमटा रहा. अधिकांश ग्रामीण जन सुराज पार्टी की चुनाव सिंबल और उम्मीदवारों से भी अपरिचित रहे. इसका खामियाजा जन सुराज पार्टी को उठाना पड़ा है.
4. बिहार की राजनीति हमेशा जाति पर होती रही है. प्रशांत किशोर किसी खास वर्ग और जाति को अपनी पार्टी की ओर से आकर्षित नहीं कर पाए, जो इस चुनाव में हार का कारण रहा.
5. प्रशांत किशोर अपनी पार्टी के साथ महिलाओं को जोड़ने में असफल रहे. इस चुनाव में महिला मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. महिलाओं ने जमकर एनडीए को वोट दिया है. पीके की बिहार में शराबबंदी खत्म करने की बात भी महिलाओं को पसंद नहीं आई.
6. प्रशांत किशोर खुद चुनाव लड़ने के लिए मैदान में नहीं उतरे. उनके इस फैसले से जन सुराज के समर्थकों में निराशा दिखी.
7. महागठबंधन ने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज को बीजेपी की 'बी-टीम' बताया था. इस छवि के कारण भी जन सुराज को नुकसान उठाना पड़ा.