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75 सालों में कितना बदला भारतीय सिनेमा, एक नजर दुनिया की नंबर एक फिल्म इंडस्ट्री पर

कहते हैं फिल्में समाज का आइना होती हैं, इस आइने में सबकुछ साफ नजर आए इसके लिए फिल्म मेकर्स समय-समय पर एक्सीपेरिमेंट भी करते हैं. अब फिल्मों से मार्केटिंग और बिजनेस जैसी अलग-अलग चीजें भी जुड़ गई हैं. डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से छोटी फिल्मों को अब ज्यादा स्कोप मिल रहा है.

सिनेमा में बदलाव सिनेमा में बदलाव
हाइलाइट्स
  • आजादी के बाद भारतीय सिनेमा में भी लगातार बदलाव आए हैं.

  • फिल्मों में समाज में बदलाव लाने की क्षमता होती है.

देश आजादी के 75 साल पूरा होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इन 75 सालों में देश ने बहुत तरक्की की. आजादी के बाद भारतीय सिनेमा में भी लगातार बदलाव आए हैं. कहते हैं फिल्में समाज का आइना होती हैं, इस आइने में सबकुछ साफ नजर आए इसके लिए फिल्म मेकर्स समय-समय पर एक्सीपेरिमेंट भी करते हैं. फिल्मों में समाज में बदलाव लाने की क्षमता होती है. भारत की आजादी तक सिनेमा ने कई रचनात्मक और व्यावसायिक उतार-चढ़ाव देखे गए लेकिन अबओटीटी प्लेटफॉर्म्स की घर-घर तक पहुंच और सिनेमाघरों से लोगों की बढ़ती दूरी के बीच बॉक्स ऑफिस पर एक फिल्म को सफल बनाना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है. चलिए देखते हैं कि पिछले कुछ दशकों में भारतीय सिनेमा में क्या बदलाव आए हैं...

एक नजर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पर

आजादी से पहले ही भारत में फिल्मों का निर्माण होने लगा था. भारत की पहली फिल्म बनाने का श्रेय दादा साहेब फाल्के को जाता है, जिन्होंने 1913 में भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी. राजा हरिश्चंद्र के बाद भारतीय सिनेमा जगत में एक हजार से अधिक मूक फिल्में बनीं लेकिन दुर्भाग्यवश ये सभी फिल्में उपलब्ध ही नही हैं. बोलती फिल्मों की शुरुआत 1931 में 'आलम आरा' के साथ हुई. उस दौरान बनी कुछ यादगार फिल्मों में जिंदा लाश, अछूत कन्या, दुनिया ना माने, पुकार, किस्मत और रतन शामिल हैं. साल 1913 में राजा हरिश्चंद्र फिल्म से शुरू हुई भारतीय फिल्म इंडस्ट्री आज 109 साल की हो चुकी है. उस वक्त कीफिल्मों ने न केवल भारत की तब सामाजिक दिशा दिखाई, बल्कि अपने समय से आगे की सोच को भी बड़े पर्दे पर उकेरा. विमल रॉय, वी शांताराम, महबूब, गुरु दत्त, सत्यजीत रे ने सिनेमा को एक सार्थक दिशा देने में अपना योगदान दिया.

तब और अब में क्या कुछ बदला

फिल्म की कहानी, गीत, संगीत, पटकथा से लेकर लेटेस्ट तकनीक को लेकर भी सिनेमा में बहुत बदलाव हुआ है. सिनेमा के इस बदलाव में डिजिटल कैमरा और आधुनिक तकनीक का भी अहम योगदान है. 70 के दशक तक व्यवसायीकरण के साथ-साथ भारतीय सिनेमा में क्लासिक और आर्ट फिल्में भी बनती रहीं.  2000 के शुरुआती दौर में ज्यादातर मसाला फिल्में बनीं. एक बार फिर भारतीय सिनेमा ने करवट ली है और समाज को प्रभावित करने वाली और बायोपिक फिल्मों का दौर चल पड़ा. अगर बीते दस सालों की बात करे तों लेखन के स्तर पर बहुत बदलाव आए हैं. अब छोटे छोटे मुद्दों पर फिल्म बन रही हैं. उनके लिए ऑडियंस भी है. सामानांतर फिल्मों में क्षेत्रीय सिनेमा का योगदान पहले भी ज्यादा था और अब भी है. भारतीय सिनेमा के इस सफर में न सिर्फ मेकर्स बल्कि दर्शकों ने भी काफी अहम किरदार निभाया है. अब एक बार फिर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री खराब कंटेंट के कारण दर्शकों की नाराजगी झेल रही है. '83', 'जयेशभाई ज़ोरदार', 'सम्राट पृथ्वीराज', 'बच्चन पांडे' और 'धाकड़' और न जाने कितनी ही ऐसी फिल्में हैं जिसे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया. इसका सबसे बड़ा कारण है कमजोर कंटेंट का होना. कभी सलमान शाहरुख और अक्षय पर मरने वाले सिनेप्रेमी अब महेश बाबू, रामचरण और यश में भी रुचि दिखाने लगे हैं. अब फिल्मों से मार्केटिंग और बिजनेस जैसी अलग-अलग चीजें भी जुड़ गई हैं. डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से छोटी फिल्मों को अब ज्यादा स्कोप मिल रहा है. अब कहानी कहने के तरीकों में बदलाव आया है.

तारीफ हुई तो आलोचना भी झेलनी पड़ी

भारत में लगभग सभी प्रदेशों की अपनी फिल्म इंडस्ट्री है. हर साल भारत लगभग 1500-2000 फिल्में प्रोड्यूस करता है जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्री बनाते हैं. हिंदी फिल्मों को जितनी तारीफ मिली है. उतनी ही आलोचना भी. बॉलीवुड पर अक्सर साउथ की फिल्मों को कॉपी करने का आरोप लगता रहा है. पिछले 10 साल में रिलीज हुई फिल्मों की लिस्ट निकालकर देख लें तो कहीं न कहीं ये आरोप सच भी लगते हैं. सलमान खान से लेकर अमिताभ बच्चन तक, सभी बड़े स्टार आज साउथ की रीमेक में काम कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि अच्छी फिल्में नहीं बन रहीं लेकिन इनकी तादाद इतनी कम है कि दर्शक इनसे ऊब चुके हैं. हिंदी सिनेमा का कारोबार कभी भारत के गांव-कस्बों या दिल्ली-बॉम्बे जैसे बड़े शहरों तक सीमित था लेकिन अब सात समंदर पार भी इनकी लोकप्रियता है. आमिर खान की फिल्में भारत से ज्यादा चीन में पसंद की जाती हैं.

भारत में बढ़ता ओटीटी का बाजार

भारत की ओटीटी इंडस्ट्री दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की तरक्की कर रही है. भारतीय (ओवर-द-टॉप) ओटीटी बाजार जो वर्तमान में 1.5 अरब डॉलर का है, साल 2030 तक 12.5 अरब डॉलर को पार कर जाएगा. 2012-13 में ही ओटीटी प्लेटफॉर्म 'डिट्टो टीवी', 'इरॉस नाऊ', 'स्पुल', 'बिगफ्लिक्स', 'सोनी लिव' लॉन्च हो गए थे. भारत में अब तक 95 से ज्यादा OTT प्लेटफॉर्म लॉन्च हो चुके हैं. अमिताभ बच्चन, आलिया भट्ट, अक्षय कुमार अपनी फिल्में ओटीटी पर ला रहे हैं. कोरोना के दौरान नए यूजर्स द्वारा सब्सक्रिशन लेने के मामले में 51 प्रतिशत  की बढ़त देखी गई है. आने वाले 5 सालों में यह ग्रोथ 12.5 बिलियन डॉलर यानि 10 लाख करोड़ रुपये तक होने की संभावना है.