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Exclusive: कैसे बने भरतनाट्यम और पद्मश्री गीता चंद्रन एक दूसरे के पर्याय, जानिए उनके नृत्य, अभिनय और अंदाज के पूरे सफर के बारे में 

शास्त्रीय संगीत की एक खूबसूरत विधा भरतनाट्यम और पद्मश्री गीता चंद्रन आज एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं.  महज 5 साल की उम्र में उन्होंने इसकी शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी.

Bharatanatyam dancer Geeta Chandran Bharatanatyam dancer Geeta Chandran
हाइलाइट्स
  • संगीत, नृत्य और पोएट्री यही जीवन का सार 

  • एक ऑडियंस से नृत्य कर रहे इंसान का कोर्डिनेशन है जरूरी

भारत को भरतनाट्यम की वजह से जाना जाता है. शास्त्रीय संगीत की एक खूबसूरत विधा भरतनाट्यम और पद्मश्री गीता चंद्रन आज एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं.  महज 5 साल की उम्र में उन्होंने इसकी शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी. और यही कारण है कि आज उनकी कला हर ख़ास-ओ-आम को लुभा रही है. उनके नृत्य, अभिनय और अंदाज में एक अलग कशिश है जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती है. 

GNT Digital ने भरतनाट्यम जगत का जाना पहचाना नाम पद्मश्री गीता चंद्रन से उनके सफर के बारे में बात की. चलिए पढ़ते हैं बातचीत के मुख अंश 

शुरू से लेकर अब तक का पूरा सफर कैसा रहा?

अपने सफर के बारे में गीता चंद्रन कहती हैं, “ये पूरा सफर मेरे लिए बहुत सुंदर रहा. क्यूंकि जब 5 साल से मैंने सीखना शुरू किया तब कोई अंदाजा नहीं था कि मैं डांसर बनूंगी या ऐसे कोई ख्वाब ही नहीं थे. पढ़ना लिखना हमारे परिवार में बहुत जरूरी माना जाता था. तो साथ में हमने नृत्य और संगीत की शिक्षा शुरू की. मेरी मां ने सोचा की इसमें हम टेक्नीकली साउंड फाउंडेशन होना जरूरी है. आगे चलकर जो भी आप करें वो आपकी मर्जी होती है. तो इसीलिए उन्होंने मुझे 5 साल की उम्र में शास्त्रीय संगीत की गुरु श्रीमती स्वर्ण सरस्वती जी के पास लेकर गयीं और संगीत की शिक्षा श्रीमती मीरा श्रीदादरी जी से मैंने सीखना शरू किया जब में 7 साल की थी. उसके बाद मैंने लेडी श्री राम से पढ़ी और उसके बाद इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन से पढ़ाई की.”

गीता बताती हैं कि एक समय ऐसा भी था कि उन्होंने नौकरी करनी शुरू कर दी थी. लेकिन डांस को अपना पूरा समय देने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़कर भरतनाट्यम पूरी तरह सीखना शुरू कर दिया. इस समय के बारे में वे जिक्र करते हुए बताती हैं,  “ एक समय आया कि मुझे लगा कि मैं काम भी कर लुंगी और नृत्य भी. उसके बाद मुझे लगा कि अब मुझे अपना पूरा समय मेरे डांस को देना  चाहिए. तो इसलिए सुबह सोचा की रिजाइन दे दूं और दे दिया और गुरु के एन दक्षिणा मूर्ति  जी के पास चली गईं. मैं तब 6 से 7 घंटे प्रैक्टिस किया करती थी. फिर उसके बाद मैंने मुड़कर नहीं देखा. और बस आगे बढ़ती गईं.  ये सबसे खूबसूरत दौर रहा था. अब काफी आज़ादी है अब हमें टेक्निक के बारे में जुडा नहीं सोचना पड़ता है. तो आप अब अपनी आत्मा के साथ नाचते हैं.”

इस खूबसूरत विधा को लोगों के सामने लाना था 

गीता चंद्रन कहती हैं, “जब मैं लेडी श्री राम में थी तब मेरे जो दोस्त थे, जो साथ वाले थे वो अच्छा सिनेमा देखता थे. अच्छा थिएटर देखते थे. उसपर लिखते थे, रिसर्च करते थे. लेकिन जब नृत्य की बारी आती थी तब वो मुझे कहते थे कि तुम्हारी ड्रेस बहुत अच्छी थी. वे लोग इसके अंदर नहीं घुस पाते थे. वो इसकी सुंदरता नहीं पहचान पाते थे. मुझे वो बहुत ख़राब लगता था. कि बाकि विधाओं में इतनी इंटेलेक्चुअल डिबेट होती हैं, लेकिन जब संगीत और नृत्य की बात आती थी तब वो बात क्यों नहीं होती थी. रस की बात क्यों नहीं हो रही है. इसमें डूबने की बात क्यों नहीं हो रही है. तो मुझे लगता है कि इसके वजह से मुझे लेना पड़ा. तब मैनें सोचा कि मैं इसमें करके दिखाउंगी. क्लासिकल डांस काफी सशक्त माध्यम होता है.  इसी माहौल से मुझे लगता है कि इंस्पिरेशन मिली. मुझे इस नृत्य शैली की मूल बात को लोगों के सामने लाना है. तो मेरे गुरुओं ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया.”

ऑडियंस से नृत्य कर रहे इंसान का कोर्डिनेशन कितना जरूरी है?

हालांकि, गीता बताती हैं कि दर्शकों के साथ जुड़ाव बेहद जरूरी है क्योंकि भरतनाट्यम केवल देखें की ही चीज़ नहीं है बल्कि  इसे महसूस भी करना होता है. वे कहती हैं,  “पहले जब हम नृत्य सीखते हैं तब हमें दर्शकों की इतनी नहीं पड़ी होती है. हमें आइडिया नहीं होता है. तब हमें लगता है कि हमारे लिए हमारे गुरु की शाबासी जीतना और टेक्निक सही करना ज्यादा जरूरी होता है. जब हम स्टेज में परफॉर्म करना लगते हैं तो बहुत अलग अलग ऑडियंस को एड्रेस करना पड़ता है. जैसे एक बार मैं राजस्थान के बूंदी गई थी, वहां करीब 4000 दर्शक थे. तो मैंने वहां मीरा के पद से शुरू किया. तो हमें करते करते इसका आईडिया हो जाता है. फिर हम अपने हिसाब से परफॉर्म करने लगते हैं. नृत्य आप देखते नहीं है आप उसे अनुभव करते हैं.”

आज की पीढ़ी को कितना करीब पाती हैं इस नृत्य के?

आपको बता दें, गीता चंद्रन वो शख्सियत हैं जिन्होंने भरतनाट्यम को मनोरंजन तक सीमित न रखते हुए इसे जीवन से जोड़ने की कामयाब कोशिश की. यही वजह है कि जब वे परफॉर्म  करती हैं तो सभी दर्शक उनसे जुड़ जाते हैं. हालांकि, उस दौर और मौजूदा समय की बात करते हुए वे कहती हैं कि मुझे लगता है आज भी जो भरतनाट्यम सीख रहे हैं, जो बच्चे मेरे साथ 20-25 साल से हैं. वो बहुत साधना करते हैं. ये लोग इतना काम करते हैं. टैलेंट में कोई कमी नहीं है. समय के साथ चीज़ें बदलती हैं. उस वक्त कॉम्पिटिशन कम था लेकिन आज ये बढ़ गया है."

वे आगे कहती हैं, "अब हर चीज बदल गई है. पहले हमारे पास 3-3 घंटे का समय होता था. अब सब कुछ फास्ट हो गया है. आपको अब कुल 1 या डेढ़ घंटा मिलता है. उसमें आपको बात कहनी है. हमें समय के साथ बदलना है. अब हमारा रहन-सहन बदल गया है. हमारा खान-पान बदल गया है. हमारी कॉस्ट्यूम बदल गई है. तो फिर हम कैसे सोच सकते हैं कि हमारी डांस फॉर्म नहीं बदलेगी. अब युवाओं के सामने एक सबसे बड़ी दिक्क्त है. ऑप्शन बहुत हैं, उनके पास इतनी  सारी चॉइस हो जाती हैं कि लोग बहुत कुछ करने की चाह में आप एक चीज़ को पर्फेक्ट्ली नहीं कर पाते. आसानी से शिफ्टिंग हो जाती है. ठहराव के लिए धीरे धीरे चलना होता है.”

आज के समय में कितनी प्रासंगिक हैं भरतनाट्यम की विधाएं? 

विधाओं की प्रासंगिकता पर वे कहती हैं, “ये शैलियां ये एक कम्युनिकेशन टूल है. ये कंटेंट और फॉर्म का मिक्स है. कंटेंट को आप अपने हिसाब से ढाल सकते हैं. संदर्भ के हिसाब से प्रेजेंटेशन भी बदल रहा है. लाइटिंग आ गई है, सांड इक्विपमेंट आ गए हैं, उसमें स्टेज क्राफ्ट आ गई है. तो इतनी चीजे हैं, कॉस्ट्यूम बदल रही हैं. लेकिन आप सोच का बगैर कुछ नहीं कर सकते हैं. आज सभी आर्टिस्ट सोचते हैं कि हम संदर्भ के साथ कैसे लोगों से कनेक्ट करें और आज के माहौल के लिए अपनी बात आर्ट फॉर्म के जरिए कैसे रखें, ये हमारा कर्तव्य है.”

क्या इतना ही मुश्किल है भरतनाट्यम सीखना?

दरअसल पिछले कई सालों से गीता चंद्रन सिलेबस में इस डांस विधा को सिखाने और जोड़ने की बात कर रही हैं. उनका मानना है कि डांस या म्यूजिक सिखाना नहीं होता है, रसिक पैदा करना होता है. उसके प्रति एक रूचि पैदा करना जरूरी है. इस सुंदर  ट्रेडिशन को सिखाना नहीं है बताना है. तभी इसे बच्चे सीख पाएंगे. इसपर वे कहती हैं, “ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है. मैथ्स और साइंस की पढ़ाई से ज्यादा मुश्किल नहीं है ये. इसमें बहुत रस की बात है. हां, सभी में मेहनत है."

वे आगे बताती हैं, "ये एक धारणा बन गई है कि क्लासिकल एक हौव्वा है. बात बस इतनी है कि  एक्सपोजर नहीं है. जबतक इसकी समझ नहीं होगी तबतक ये मुश्किल ही लगेगा. एक सही उम्र में एक्सपोजर दे पा रहे हैं. लेकिन बताया जाए समझाया जाए तो समझ जायेंगे.  आर्ट्स एजुकेशन में हम पीछे रह गए. हम इन्हे स्कूलों में ट्रांसमिट नहीं कर पा रहे हैं. डांस या म्यूजिक सिखाना नहीं होता है, रसिक पैदा करना होता है. उसके प्रति एक रूचि पैदा करना जरूरी है. इस सुंदर  ट्रेडिशन को सिखाना नहीं है बताना है. इसमें जो दिग्गज कलाकार हैं उनकी जीवनी को बताना है. उनका स्ट्रगल देखिये. उसपर लेख लिखिए. स्कूलों में इसकी कमी ही सबसे बड़ा कारण यही है.”

संगीत, नृत्य और पोएट्री यही जीवन का सार 

पद्मश्री गीता चंद्रन मुस्कुराते हुए कहती हैं, “एक दिग्गज कलाकार ने कहा था कि अगर हमने भारत में संगीत की शिक्षा दी होती तो हमारा बंटवारा नहीं होता. संगीत और नृत्य जो है वो पैन्डेमिक के दौर में हम सभी ने संगीत का आश्रय लिया. ये हमें दिमागी तौर पर शांत करता है. उस समय में पोएट्री और संगीत ने हमें मदद की ये सबसे बड़ा उदाहरण था कि खुद को शांत रखने के लिए सबसे जरूरी डांस, म्यूजिक और पोएट्री ही है. अगर सोसाइटी में बचपन से हम विधाएं सिखाएं तो इसका आस्वादन करना बहुत जरूरी है. सिखने से ज्यादा आस्वादन करना जरूरी है.”

पूरा इंटरव्यू यहां देखें