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Sahitya AajTak 2025: 'फट्टे जूते और मुंबई की वो बारिश..' साहित्य आजतक में मनोज मुंतशिर ने सुनाई बॉलीवुड में संघर्ष की कहानी

साहित्य आजतक 2025 के दूसरे दिन मशहूर कवि, लेखक और गीतकार मनोज मुंतशिर शुक्ला ने शिरकत की. मनोज मुंतशिर ने अपने फट्टे जूते का किस्सा सुनाया. जिसके बाद वो मुंबई की बारिश में आधे घंटे तक रोते रहे. उन्होंने कहा कि अगर आज के जमाने में कोई राइटर ये कहे कि मैंने 100 फीसदी ओरिजिनल लिखा. तो वो झूठ बोल रहा है. मैंने 800 गाने और 100 फिल्में लिखने के बाद मैं कहा रहा हूं कि मैंने एक ओरिजिनल गाना नहीं लिखा है.

Author, Poet & Lyricist Manoj Muntashir Shukla (Photo Credits: Chandradeep Kumar) Author, Poet & Lyricist Manoj Muntashir Shukla (Photo Credits: Chandradeep Kumar)

दिल्ली में मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक 2025 के दूसरे दिन 'स्टेज 1- हल्ला बोल चौपाल' पर मशहूर कवि और लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला ने शिरकत की. उन्होंने एक किस्सा सुनाया. उन्होंने बताया कि कॉलेज टाइम में मैंने अपना माशूका को बता दिया कि मुझे फिल्मों में जाना है और ये वो टाइम था, जब हर किसी को डॉक्टर बनना था, इंजीनियर बनना था, सीए बनना था. मुझे बार-बार श्योर किया गया कि तुम्हें कहानियां लिखना है. मैंने कहा कि हां, गाने लिखने हैं. तुम अमेठी के एक छोटे से गांव के हो, तुमको मुंबई में कौन खड़ा करेगा? सपने औकात में रहकर देखो. इसपर मैंने जवाब दिया था कि औकात में रहकर तो किराए के मकान देखे जाते हैं.

मनोज मुंतिशर की फट्टे जूतों वाला किस्सा-
मनोज मुंतिशर ने फट्टे जूतों वाली कहानी बताई. उन्होंने कहा कि इस दुनिया में जो भी बड़ा होता है, जो भी सार्थक होता है, वो हम मिट्टी के सपूतों से होता है. बुलंदियों का रिश्ता डिजाइनर फुटवेयर से नहीं, फट्टे हुए जूतों से होता है. इसलिए जूते फट्टे पहनकर आकाश पर चढ़े थे, सपने हमारे हरदम औकात से बड़े थे.

उन्होंने कहा कि मुंबई की बारिशें अमीर को अमीर बना देती हैं और गरीब को और गरीब बना देती हैं. बारिश में आप एक्सपोज हो जाते हैं. मेरे पैरों में फट्टे हुए जूते थे, जिनमें अंदर तक पानी भरा हुआ था. वो जूते पहनकर मैं एक बहुत बड़े प्रोडक्शन हाउस के ऑफिस में काम मांगने पहुंच गया. ये 2001 की बात थी. जैसे ही उनका फर्श और कारपेट मेरे फट्टे जूतों के पानी से खराब होना शुरू हुआ, उनका डोरकीपर मुझकर चिल्लाया, कौन हो तुम, बाहर निकलो. फट्टे जूते लेकर अंदर आ गए, निकलो बाहर. उसके बाद मैं बाहर निकलकर घंटों रोता रहा और अपने आप से वादा किया कि कभी यहां आऊंगा और ये 8वीं मंजिल बैठे साहब हैं, ये मुझे रिसीव करने आएंगे किसी दिन, अब आते हैं, अच्छा लगता है.

मनोज मुंतिशर ने कहा कि अगर आपकी जेब सपनों के सिक्के से भरे हैं तो आपकी जेब खाली नहीं है. जो एक्चुअल करेंसी दुनिया में वर्क करती है, वो सपनों के सिक्के हैं. 

मनोज ने सुनाई पहली फिल्म की कहानी-
मनोज ने कहा कि हम सबकी कहानी एक जैसी है. ये जो छोटे भाई है, इनकी भी ये कहानी होगी. ये मंच पर बैठेंगे, ये सुनाएंगे. मैं मंच पर हूं और आप वहां है तो मैं ऊंचा नहीं हो जाता. हम सब सहयात्री हैं. उन्होंने कहा कि 2005 में मेरी पहली फिल्म रिलीज हुई थी. अमेठी का एक लड़का, जिसने सपना देखा, उसकी पहली फिल्म रिलीज हो रही है. मैं अपने बचपन के दोस्त और पत्नी के साथ फिल्म देखने गया तो आधे घंटे लग गए टिकट लेने में. काउंटर पर काफी भीड़ थी. जब मैंने टिकट काउंटर पर फिल्म 'यू बोम्सी एंड मी' का टिकट मांगा तो उसने कहा कि साहब, साइड में हटिए, 3 आदमी के लिए हम फिल्म नहीं चलाते. मनोज ने कहा कि फिर मैंने पूछा कि ये इतनी लंबी लाइन लगी है. तो उसने बताया कि ये लंबी लाइन सलमान खान की फिल्म 'नो एंट्री' के लिए है. मैं साइड में खड़े होकर आधा घंटा वेट किया. लेकिन कोई चौथा फिल्म देखने नहीं आया. मैंने इंतजार किया. इसके बाद साल 2017 में फिर से मेरी एक फिल्म रिलीज होती है. अब जमाना बुक माइ शो का था. मैं इस साइड पर 3 टिकट बुक करने के लिए जाता हूं. लेकिन फिर से मुझे टिकट नहीं मिलता, क्योंकि मुंबई नहीं, पूरी हिंदुस्तान के थियेटर में एक महीने तक एक भी सीट खाली नहीं थी. पूरा देश ये जानने के लिए टूट पड़ा था कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? मनोज ने कहा कि उस दिन मैंने लाइफ से ये सीखा कि जिंदगी में हाउसफुल का बोर्ड वहीं देखता है, जो खाली थियेटर देखके घबराता नहीं है. इस दुनिया में उसको सबकुछ मिलता है, जो खोने से घबराता नहीं है.

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