Actor Jaideep Ahlawat (Photo Credits: Chandradeep Kumar)
Actor Jaideep Ahlawat (Photo Credits: Chandradeep Kumar) दिल्ली में मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक 2025 के तीसरे और आखिरी दिन 'स्टेज 1- हल्ला बोल चौपाल' के मंच पर बॉलीवुड के मशहूर एक्टर जयदीप अहलावत ने शिरकत की. उन्होंने एक्टिंग से लेकर बचपन तक के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि मेरे लिए घर का माहौल भी स्कूल जैसा था. सारे बच्चे स्कूल से घर जाते थे, मैं स्कूल से स्कूल जाता था. जयदीप ने बताया कि साहित्य में हमेशा से रुचि थी. लेकिन प्रोफेशन के तौर पर अभिनव को मैंने कभी नहीं सोचा था.
जब एक्टिंग में जाने को लेकर घर में बताया तो क्या हुआ?
जयदीप अहलावत ने कहा कि मेरे पापा ओपन माइंडेड थे, उन्होंने कहा कि तुमको क्या करना है, चूज करो. जयदीप ने कहा कि जब मैंने पिताजी को बताया कि मुझे फिल्म इंस्टीट्यूट जाना है, एक्टिंग स्कूल जाना है पढ़ने के लिए तो थोड़ी देर के लिए उनको समझ नहीं आया कि इसका मतलब क्या है? एक्टिंग पढ़ोगे, तो कैसे पढ़ोगे? उन्होंने 10-15 सेकंड का पॉज लिया. इसके बाद उन्होंने पूछा कि ये क्या होता है? तो मैंने बताया कि उसमें ट्रेनिंग मिलती है, फिर पासआउट होते हैं. फिर उन्होंने कहा कि तुमको यही करना है तो मैंने कहा- हां, तो वो बोले- जाओ. इसके बाद मैं शॉक्ड था कि ये बड़ा ईजी हो गया. मैं जब फिल्म इंस्टीट्यूट जा रहा था, तब भी मैंने नहीं सोचा था कि एक्टिंग को प्रोफेशन बनाना है. मुझे एक्टिंग पसंद था. लेकिन जब पढ़ना शुरू करते हैं और सिनेमा समझ आता है तो लगता है कि हां, इसमें किया जा सकता है.
एक्टिंग से पहले से डांस करता था- अहलावत
जयदीप अहलावत ने कहा कि एक्टिंग बाद में आई, डांस पहले से था. शादियों में बहुत नाचा हूं. पापा ने दो-तीन बार डांट दिया था, दूसरों की शादियों में नाचने पर. एक बार घर के सामने से बारात जा रही थी, बढ़िया बाजा बज रहा था, मेरा नाच निकल गया. मैं नाचने लगा. पापा ने बहुत डांटा था, पूछ तो लो, किसकी शादी है.
कहानी के मुताबिक नायक होना चाहिए- जयदीप
मैं पहले भी ये बोल चुका हूं कि जनरली क्या होता है कि हम एक कहानी लिखते हैं, प्रेमचंद जी ने जब कफन लिखी होगी तो उनके दिमाग में दो किरदार हैं, उनका कोई चेहरा नहीं होगा. मेरा पर्सनल मानना है कि नायक पहले चुन लिया गया तो कहानी उसके इर्द-गिर्द बुननी पड़ेगी. कहानी का अपना एक नायक होता है, अगर कहानी को ज्यादा अहमियत दी गई. तो उसके बाद नायक चुना जाता है. अगर आपने कहानी लिखी है और उसके मुताबिक आपने नायक चुना तो बेहतर होता है. उन्होंने कहा कि पाताललोक की कहानी पहले लिखी गई थी, उसके बाद मुझे चुना गया. अगर सोचिए, पहले नायक को चुना जाता और फिर कहानी लिखी जाती तो कैसा होता? वो बेहतर नहीं होता.
जयदीप ने घटाया था वजन-
जयदीप अहलावत ने कहा कि महाराज लॉकडाउन के बाद की पहली फिल्म है. लॉकडाउन में वेट बढ़ गया था, मैं 110 किलो का हो गया था. फिर ट्रेनिंग शुरू की और अगले 6 महीने बाद 83 तक पहुंच गया. उन्होंने कहा कि उस किरदार के लिए डायरेक्टर के दिमाग में जो सोच थी, वो सफल हो रही थी. वो इंसान का जैसा भी विचार है, वो दिखने में उससे विपरीत है. दिमाग विभत्स हो सकता है, दिखने में विभत्स नहीं है. तो वो जो सोच थी, वो उनको चाहिए था. लेकिन वो 6 महीने मेरे लिए भारी पड़ गया.
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