
दादा साहब फाल्के के बाद भारतीय सिनेमा में जो सबसे बड़ा नाम आता है, वो है सत्यजीत रे का. साल 1948 में कोलकाता में फिल्म सोसायटी की शुरुआत करने वाले पहले पहले फिल्मकार ‘सत्यजीत रे’ का आज यानी 02 मई को जन्मदिन है. सत्यजीत रे ने विदेशों में भी भारतीय सिनेमा का परचम लहराया है. सत्यजीत रे को फिल्मोग्राफी का इंस्टीट्यूशन कहा जाता है. वो केवल एक फिल्मकार नहीं थे, बल्कि उन्हें लिखने का भी बहुत शौक था. उनका मानना था कि अगर फिल्म को डायरेक्ट करना है, तो लिखना भी आना चाहिए. उन्होंने बहुत-सी शॉर्ट स्टोरी और उपन्यास तथा बच्चों पर आधारित किताबें भी लिखी हैं. सत्यजीत रे को 1958 में ‘पद्मश्री, 1965 में ‘पद्म भूषण’ और 1976 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया. 1967 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला. उन्होंने कुल 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी अपने नाम किए. 1992 में ही सत्यजीत रे को भारत रत्न से नवाजा गया.
डिजाइनर के तौर पर शुरू किया था करियर
1943 में जब सत्यजीत कोलकाता आए तो उन्होंने बतौर ग्राफिक्स डिजाइनर अपने करियर की शुरुआत की. उस वक्त उन्होंने जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ जैसे कई पॉपुलर किताबों के कवर डिजाइन किए. यहां पर उन्हें किताबों के डिजाइन में क्रिएटिविटी दिखाने की पूरी छूट थी. उस वक्त किसे पता था कि ये डिजाइनर एक दिन दुनिया में बतौर फिल्ममेकर भारत का परचम लहराने वाला है. इसी दौरान उन्होंने बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय के उपन्यास ‘पाथेर पांचाली’ के बाल संस्करण पर भी काम किया. जिसका नाम था आम आटिर भेंपू. सत्यजीत इस उपन्यास से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पहली फिल्म इसी पर बनाई.
फिल्म बनाने के लिए बेचे पत्नी के जेवर...सरकार ने की मदद
1952 में सत्यजीत रे ने एक नौसिखिया टीम को लेकर फिल्म की शूटिंग शुरू की, क्योंकि इस नए फिल्मकार के साथ कोई भी दाव लगाने को तैयार नहीं था. उनके पास जितने भी पैसे थे, वो सारे उन्होंने फिल्म में लगा डाले. इतना ही नहीं फिल्म के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर तक बेच दिए थे. जब तक पैसे थे तब तक फिल्म की शूटिंग चलती रही, लेकिन पैसे खत्म होने के बाद फिल्म की शूटिंग रोकनी पड़ी. जिसके बाद उन्होंने कुछ लोगों से मदद लेने की कोशिश की. लेकिन वो लोग फिल्म में अपने हिसाब से कुछ बदलाव चाहते थे. लेकिन रे इसके लिए तैयार नहीं थे. आखिर में पश्चिम बंगाल सरकार ने उनकी मदद की और 1955 में पाथेर पांचाली पर्दे पर आई.
उनके लिए भारत आया था ऑस्कर
सिनेमा जगत का सबसे प्रतिष्ठित ऑस्कर अवॉर्ड, सत्यजीत रे के काम को देखते हुए खुद उनके पास चलकर आया था. दरअसल 1992 में जब सत्यजीत के को ऑस्कर देने की घोषणा की गई, उस वक्त वो काफी बीमार थे. जिस कारण वो अवॉर्ड लेने नहीं जा सके. ऐसे में ऑस्कर के पदाधिकारियों फैसला लिया कि ये अवॉर्ड उनके पास पहुंचाया जाएगा. ऑस्कर के पदाधिकारियों की टीम कोलकाता पहुंची और सत्यजीत रे के घर जाकर उन्हें अवार्ड से सम्मानित किया.