स्मृति ने गरीबी, अपमान और अभावों के बीच भी हार नहीं मानी. गुड़गांव के एक टूटे-फूटे घर में रहने वाली स्मृति के जीवन में तब बड़ा मोड़ आया जब एक बेटे की चाह में उनके पिता ने उनकी माँ को ताने मारे और साल 1983 में दोनों अलग हो गए. 7 साल की स्मृति ने अपनी माँ को घर छोड़ते हुए देखा और उसी पल यह संकल्प लिया कि "जिस घर से आज मेरी माँ को रुसवा होकर निकलना पड़ा है, एक दिन आएगा जब इसी घर को अपने कमाए पैसों से खरीदेगी."