
किताबें, ये किताबें हमारी जिंदगी ने बहुत अहम किरदार निभाती है, या यूं कहे कि हमारा चरित्र इन किताबों का ही आइना है. वैसे तो किताबों कभा बोलती नहीं है, मगर इनके अलफाज हमारे मन में गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं. दरअसल किताबों के बारे में ये विचार एक ऐसे शख्स के हैं जिसने अपनी किताबों के जरिए युवा पीढ़ी को आध्यात्मिकता से वाकिफ करावाया. इनकी किताबों के माध्यम से आज का युवा आध्यात्म के साथ, जिंदगी के फलसफा भी सिख सकता है. हम बात कर रहे हैं भारत के विख्यात लेखक अमीश त्रिपाठी की.
नास्तिक के आस्तिक बनने का सफर
आज के समय में महादेव के इतने बड़े भक्त अमीश हमेशा से ऐसे नहीं थे. एक समय ऐसा भी था, जब अमीश को अध्यात्म में बिलकुल भी विश्वास नहीं था. बनारस के एक ब्राह्मण परिवार में जन्में अमीश वैसे तो एक धार्मिक परिवार से आते है. लेकिन IIM से ग्रेजुएट करने के बाद अमीश का ईश्वर से भरोसा उठ गया. अमीश की जिंदगी भी साधारण तरीके से चल रही थी, वह घर से दूर बैंकर होकर अच्छा पैसा कमा रहे थे. लेकिन हमेशा ही कुछ बेहतर करने की तलाश में रहने वाले अमीश ने जब लिखना शुरू किया तो मानों उनकी दुनिया ही बदल गई. इन्हें शुरू से ही पढ़ने लिखने के काफी शौक था, और धार्मिक संस्कार तो विरासत में मिले थे. एक समय में भगवान में विश्वास ना रखने वाले अमीश ने शिव की कहानी अपने तरीके से लिखनी शुरू की, और समय के साथ-साथ उनका विश्वास भगवान में बढ़ता चला गया. पहली किताब 'मेलुहा के मृत्युंजय' छपकर आई तो सुपर-डुपर हिट हुई. फिर शिव की कहानी पर दो और किताबें आईं, जो भारत में सबसे तेजी से बिकने वाली बुक सीरीज बनी.
अध्यात्म पर बदला नजरिया
वैसे तो धर्म से जुड़ी गाथाएं और धार्मिक कहानियां हम सभी ने कहीं ना कहीं पढ़ी या सुनी होंगी, लेकिन उनसे मिली सिख का असल जिदंगी में पालन करना हमारे लिए नामुमकिन सा है. अमीश कि किताबों के जरिए आप इन धार्मिक कथाओं के काफी हद तक अपने जीवन से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे. एक इंटरव्यू में अमीश बताते हैं, 'रामायण की बहुत व्याख्याएं हैं. ज्यादातर उत्तर भारतीयों से पूछेंगे तो वे तुलसी रामायण को ही रामायण समझते हैं. उनसे पूछिए कि क्या लक्ष्मण रेखा का कोई वर्णन है रामायण में? वे कहेंगे- हां, लेकिन वाल्मीकि रामायण में कोई जिक्र नहीं है इसका. मैं बस एक उदाहरण दे रहा हूं. ऐसे बहुत हैं. अगर आप पूछें कि राम जी ने कभी रावण की प्रशंसा की थी क्या? लोग कहेंगे नहीं. लेकिन कम्ब रामायण में बहुत मशहूर सीन है, जिसमें राम और रावण ने एक-दूसरे की प्रशंसा की, फिर दोनों में युद्ध हुआ. अगर आप पूछेंगे कि जो मुख्य रावण है, उसका वध किसने किया. ज्यादातर लोग कहेंगे श्रीराम, लेकिन हजार साल पुराने अद्भुत रामायण में सीता मां ने मां काली का रूप लेकर बड़े रावण का वध किया. अलग-अलग पहलू हैं राम जी के पास जाने के. एक वर्जन मेरा भी है.'
असहिष्णुता पर छिड़ी बहस
देश में असहिष्णुता पर छिड़ी बहस के बीच अमिष त्रिपाठी के एक बयान पर विवाद की स्थिति बन गई थी. अमिष ने कहा था कि मेरी कहानी के राम एक सामान्य इंसान हैं. वो क्षत्रिय थे तो मांस खाते थे, ऐसा ही वाल्मीकि के रामायण में था, उन्हें रामचरितमानस में भगवान के रूप में दिखाया गया है. हमारा देश खुले विचारों वाला देश है. कुछ लेखक प्रचार के लिए खुद विवाद खड़ा करते हैं. मुझे उसका सहारा नहीं लेना पड़ा, क्योंकि मैं अपने विषय और धर्म का सम्मान करता हूं.
अर्थशास्त्र से अध्यात्म का 360 डिग्री टर्न
मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद त्रिपाठी ने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की. उन्होंने IIM कलकत्ता से एमबीए पूरा किया. चौदह वर्षों तक स्टैंडर्ड चार्टर्ड, डीबीएस बैंक और आईडीबीआई फेडरल लाइफ इंश्योरेंस सहित कई फर्मों में मार्केटिंग और उत्पाद प्रबंधक के रूप में वित्त के क्षेत्र में काम किया. त्रिपाठी के लिए जीवन की अलग-अलग योजनाएँ थीं. पहली किताब को खत्म करने में उन्हें लगभग पांच साल लगे. अमीश का पहला उपन्यास 'द इम्मोर्टल्स ऑफ मेलुहा' 2010 में प्रकाशित हुआ था. अमीश त्रिपाठी की बेस्टसेलर 'द शिवा ट्रिलॉजी' ने एक बड़ी सफलता हासिल की और इतिहास में सबसे तेजी से बिकने वाली किताब बन गईं. इसका 14 विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है.