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265 साल पुरानी परंपरा से मनाई जाती है दुर्गा पूजा, आज भी होता हो शाही परंपरा का पालन

हर साल, उपनगरों और जिलों से हजारों दर्शक 5 दिनों तक चलने वाले भव्य समारोह का हिस्सा बनने के लिए आते हैं, हालांकि महामारी के कारण 2021 में आगंतुकों की संख्या कम हो गई है. नियम के अनुसार, किसी को भी मंडप के अंदर जाने की अनुमति नहीं है.

मशहूर है रानी रासमनी की पूजा मशहूर है रानी रासमनी की पूजा
हाइलाइट्स
  • कोलकाता में दो शताब्दियों से अधिक पुरानी जमींदारी-शैली से मनाई जाती है दुर्गा पूजा

  • राजा-महाराजों के वंशज धूमधाम से करते हैं दुर्गा पूजा का आयोजन

कोलकाता में दुर्गा पूजा का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में नए-नए तरीकों से इस त्योहार को मनाया जाता है. लेकिन कोलकाता में कई हिस्से ऐसे भी हैं जहां आज भी दुर्गा पूजा को 265 साल पुरानी परंपरा के अनुसार मनाया जाता है. कोलकाता के महलों में अभी भी दो शताब्दियों से अधिक पुरानी जमींदारी-शैली से दुर्गा पूजा मनाई जाती है.  दुर्गा-पूजा की रस्मों में जमींदारों और राजा-महराजाओं को तौर-तरीके आज भी देखने को मिलते है.

राजा नवकृष्ण देव के वंशज मनाते हैं दुर्गा-पूजा
जमींदारी शैली की दुर्गा-पूजा को आगे बढ़ाने में सबसे अहम भूमिका निभाई है राजा नवकृष्ण देव के वंशजों ने, जो आज भी राजसी ठाठ से दुर्गा-पूजा मनाते हैं. कोलकाता के शोभाबाजार राजबाड़ी में 265 सालों से जमींदारी-शैली से दुर्गा-पूजा मनाई जा रही है.  शोभाबाजार के रहने वाले देबराज मित्रा बताते हैं कि राजा नबकृष्ण देव की आठवीं पीढ़ी अब इस त्योहार को मना रही है. 36 से अधिक परिवार एक साथ मिलकर धूमधाम से दुर्गा-पूजा मनाते हैं. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि किसी भी परंपरा के साथ छेड़छाड़ न हो, परंपरा के अनुसार रस्मों का पालन किया जाता है.

कौन है राजा नवकृष्ण देव?
नवकृष्ण देब ने 1757 में शोभाबाजार राजबाड़ी में दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. इस पूजा को शोभाबाजार बड़ो राजबाड़ी के तौर पर जाना जाता है. राजा नवकृष्ण वैसे एक शाही खानदान से ताल्लुक रखते थे, लेकिन मुगल नवाब सिराजुद्दौला को तख्ती से हटाने के लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकुमत को काफी संपत्ति अर्जित कर दी थी. लॉर्ड रॉबर्ट क्लाइव और गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स के करीबी विश्वासपात्र, राजा नबा कृष्ण देब के पारिवारिक घर की ''छोटो तारफ'' (कैडेट शाखा) की दुर्गा पूजा एक बंद दरवाजा के अंदर की जाती है. इसमें पारिवारिक मामलों और आगंतुकों को केवल पूर्व नियुक्ति के द्वारा ही अनुमति दी जाती है.

रानी रासमनी की पूजा
रानी रासमनी को कोलकाता के सुप्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर के संस्थापक के रूप में जाना जाता है. उनके पारिवारिक घर की पूजा भी मशहूर है. रानी रश्मोनी परिवार के वंशज प्रसून हाजरा बताते हैं कि यहां दुर्गा पूजा की शुरूआत 1792 में हुई थी. हमारी दुर्गा का रंग 'तप्त कंचन' यानि पिघला हुए सोना जैसा है. रामकृष्ण परमहंस यहां आकर इस आंगन को आशीर्वाद दिया था. 

हजारों की संख्या में आते हैं दर्शक
हर साल, उपनगरों और जिलों से हजारों दर्शक 5 दिनों तक चलने वाले भव्य समारोह का हिस्सा बनने के लिए आते हैं, हालांकि महामारी के कारण 2021 में आगंतुकों की संख्या कम हो गई है. नियम के अनुसार, किसी को भी मंडप के अंदर जाने की अनुमति नहीं है.

दशमी को होगा विर्सजन
परंपरा के अनुसार, देवी को दशमी पर विसर्जित किया जाएगा. सिंदूर खेला के बाद, देवी की प्रतिमा को दो नावों पर रखकर गंगा के चक्कर लगवाए जाते हैं.  मूर्ति को दो नावों के बीच में रखा जाएगा जो धीरे-धीरे अलग हो जाएंगी. इसके बाद मूर्ति को गंगा में विसर्जित किया जाएगा.