
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के पड्डर क्षेत्र में माता मचैल यात्रा मार्ग पर 14 अगस्त की दोपहर हुए बादल फटने से भारी तबाही मच गई. चशोती नाले के उफान पर आने से पूरा इलाका जलमग्न हो गया, जिससे अब तक 65 लोगों की मौत हो चुकी है और कई अभी भी लापता हैं.
इस आपदा में स्थानीय युवाओं का एक समूह 'चशोती बाइकर्स' मसीहा के रूप में सामने आया. ये युवा पहले यात्रियों को चशोती से हामुरी गांव तक पहुंचाने का काम करते थे, लेकिन आपदा के समय उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रियों की जान बचाने और राहत कार्यों में अहम भूमिका निभाई.
पीड़ितों के लिए देवदूत बने युवा
20 साल के लक्ष्मण सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "जैसे ही बादल फटने की आवाज सुनी, मैंने और कुछ साथी बाइकरों ने यात्रियों को चेतावनी दी और उन्हें नाले से दूर सुरक्षित जगहों की ओर ले जाने लगे." लक्ष्मण तब अपनी टीवीएस अपाचे आरटीआर 180 पर खड़े होकर यात्रियों का इंतजार कर रहे थे.
चशोती के इन 150-160 बाइकरों का मुख्य काम मचैल यात्रा के दौरान यात्रियों को अंतिम मोटरेबल प्वाइंट हामुरी तक पहुंचाना होता था, जहां से श्रद्धालु 3 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर 2,880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मचैल माता मंदिर पहुंचते हैं. लेकिन हादसे के बाद, ये बाइकर सबसे पहले राहत और बचाव कार्य में जुट गए.
संभाला मोर्चा, बचाई जानें
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पानी कम होने के बाद हम लोग वापस मौके पर गए, जहां हर जगह कीचड़, चट्टानें और उखड़े हुए पेड़ थे. इन युवाओ ने थालियों, बाइक के औजारों और जो भी हाथ लगा, उससे फंसे हुए लोगों को निकालना शुरू किया. करीब 30-45 मिनट बाद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और राज्य पुलिस की टीमें मौके पर पहुंचीं, लेकिन तब तक बाइकरों ने दर्जनों लोगों को बचा लिया था.
केंद्रीय मंत्री ने की तारीफ
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इन बाइकरों की बहादुरी की सराहना करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, "उनकी निस्वार्थ सेवा और साहस की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है."
लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि उन्होंने कई ऐसे लोगों को बचाया जिन्हें कीचड़ में केवल उनकी गर्दन देखकर पहचाना गया. उन्होंने एक महिला और उसकी बच्ची को होमस्टे के मलबे से जिंदा निकाला, जबकि उनके साथी बाइकर दीपक परिहार ने नौ महीने के शिशु को कीचड़ से बाहर निकाला.
मुश्किलों में भी नहीं छोड़ा हौसला
हालांकि, इस आपदा ने बाइकर्स को भी नहीं बख्शा. कई की बाइकें बाढ़ में बह गईं, जबकि कुछ के परिजन घायल हो गए. चशोती बाइकरों ने न केवल दर्जनों यात्रियों की जान बचाई बल्कि कई शवों को भी कीचड़ और मलबे से निकालने में मदद की. आपदा के समय उनकी तुरंत कार्यवाई और साहसिक पहल से आज वह इस त्रासदी में आशा की किरण बन गए हैं.
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