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Farmer Success Story: चार साल की मेहनत का मिला फल, हिमाचल के इस किसान ने खड़ी की हींग की फसल... जानिए कैसे हुआ संभव

तोग चंद लाहौल घाटी के सालग्रा गांव के रहने वाले हैं. वह पेशे से एक किसान हैं. चंद से पहले कई किसानों ने अपनी जमीन पर हींग की खेती करने की कोशिश की लेकिन इसे कोई अंजाम नहीं दे पाया. चंद ने यह सफलता कैसे हासिल की? आइए जानते हैं.

Representational Image: Freepik Representational Image: Freepik

हिमाचल प्रदेश लाहौल स्पीति जिले के रहने वाले एक किसान ने अपनी ज़मीन पर हींग (Asafoetida) उगाकर एक ऐसी पहल शुरू की है जो भारत को हींग के आयात से मुक्त कर सकती है. एक समय पर जहां भारत में हींग की खेती को असंभव समझा जाता था, वहीं तोग चंद ने इस मसाले की खेती को स्वदेशी स्तर पर करने का रास्ता दिखा दिया है. आइए जानते हैं यह कैसे संभव हुआ और तोंग चंद का सफर कैसा रहा. 

विज्ञान की मदद से हो पाया संभव
तोग चंद लाहौल घाटी के सालग्रा गांव के रहने वाले हैं. वह पेशे से एक किसान हैं. चंद की जमीन पर हींग की खेती विज्ञान और उनकी कला के संगम से संभव हो पाई है. पालमपुर के  हिमालय जैविक संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (CSIR-IHBT) के वैज्ञानिकों ने चार साल पहले उन्हें खास बीज दिए थे. इन्हीं की बदौलत उन्होंने इस काम को अंजाम दिया है. वैज्ञानिकों की टीम ने देशभर में हींग की खेती के लिए टेस्ट किए थे, लेकिन उन्हें कहीं सफलता नहीं मिली थी.

आखिर उन्होंने लाहौल स्पीति की जलवायु को हींग की खेती के लिए उपयुक्त पाया था और चंद सहित कई किसानों को हींग के बीज दिए थे. ईटीवी भारत की एक रिपोर्ट बताती है कि सीएसआईआर-आईएचबीटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने हाल ही में चंद के खेत का दौरा किया जहां वह उनकी मेहनत देखकर प्रभावित हुए. इससे पहले भारत हींग के आयात के लिए अफगानिस्तान और ईरान पर निर्भर था लेकिन चंद की सफलता भारत के लिए हींग खेती के क्षेत्र में उम्मीद की एक किरण बनकर आई है.

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चंद ने कैसे किया असंभव को संभव?
अपनी इस दुर्लभ उपलब्धि पर किसान तोग चंद ने बताया कि चार साल पहले सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर से हींग के बीज मिलने के बाद उन्होंने इस मसाले की खेती पर कुछ बुनियादी शोध किया. ईटीवी भारत की रिपोर्ट चंद के हवाले से कहती है, "मैंने पाया कि मेरे आस-पास के इलाकों की जलवायु और तापमान हींग की खेती के लिए उपयुक्त है. इसके चलते मैंने इसकी खेती की और चार साल की कड़ी मेहनत के बाद अब बीज भी तैयार हैं." 

एक बीघा ज़मीन पर हींग की सफलतापूर्वक खेती करने वाले चंद को उम्मीद है कि लाहौल स्पीति के अन्य किसान भी इस सफलता को दोहराएंगे और भारत को इस मसाले में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेंगे. उन्होंने कहा, "बीज तैयार होने के बाद हम बड़े पैमाने पर इसकी खेती करेंगे और अन्य किसानों को भी इसके बारे में जागरूक करेंगे." 

क्या है भारत में हींग की स्थिति?
हींग भारतीय रसोई में एक लोकप्रिय मसाला है. इसका इस्तेमाल पौधे की जड़ों और प्रकंदों से प्राप्त सूखे लेटेक्स के रूप में किया जाता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली 'हाथरस' हींग के अलावा घरेलू खेती ना के बराबर है. आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, भारत सालाना 1500 टन हींग की खपत करता है. यह ज्यादातर अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और ईरान से आयात किया जाता है. ज्यादा मांग के बावजूद भारत में इसकी खेती अभी तक वैज्ञानिकों की पहुंच से दूर रही. 

सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर के वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत में हींग की खेती एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ हो सकता है. यह प्रोजेक्ट 2018 में शुरू हुआ था जब भारत की वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने ईरान से हींग के बीजों की छह किस्मों का आयात किया था. साल 2020 में सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लाहौल स्पीति में 800 पौधे लगाए.