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जूनागढ़: अंबाजी मंदिर में रोपवे के जरिए भेजी गई वैक्सीन, महंतों और पर्यटकों को लगा टीका

जूनागढ़ के अंबाजी मंदिर में रोपवे के जरिए वैक्सीन भेजकर नया रिकॉर्ड बनाया गया है. 3,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मंदिर में रोपवे के जरिए वैक्सीन भेजी गई है, जहां लोगों को टीका लगा है.

मंदिर में महंत को टीका लगाती स्वास्थ्यकर्मी. मंदिर में महंत को टीका लगाती स्वास्थ्यकर्मी.
हाइलाइट्स
  • 1200 साल पुराना है जूनागढ़ का यह मंदिर

  • गिरनार पर्वत पर बसा अंबा जी का धाम

  • रोपवे के जरिए पहुंची वैक्सीन

गुजरात के जूनागढ़ के अंबाजी मंदिर में रोपवे के जरिए वैक्सीन भेजकर नया रिकॉर्ड बनाया गया. 3500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मंदिर में रोपवे के जरिए वैक्सीन भेजी गई. शनिवार को वैक्सीन पहुंचने पर स्वास्थ्यकर्मियों ने महंत और पर्यटकों को टीका लगाया. 

मंदिर के महंत तनसुख गिरि को भी वैक्सीन लगाई गई. कार्यक्रम की शुरुआत डीएम रचित राज ने की. अंबाजी मंदिर जूनागढ़ का एक धार्मिक पर्यटन स्थल है, जहां जाने के लिए लोग रोपवे का भी इस्तेमाल करते हैं. बेहद ऊंचाई पर मंदिर होने की वजह से रोपवे के जरिए वैक्सीन भेजी गई, जिससे जल्द से जल्द लोगों का टीकाकरण कर दिया जाए.

डीएम रचित राज ने गुड न्यूज टुडे से बातचीत में कहा, 'हमने रोपवे और मंदिर स्थल में टीकाकरण शिविर आयोजित किया जिससे यह तय हो सके कि सभी पर्यटकों, संतों और रहने वाले लोगों को उनकी उचित खुराक दी जाए. मुख्य संत तनसुख गिरि और अन्य संतों ने गरबा गृह में अपनी उचित डोज ली. वहीं पर्यटकों को भी वैक्सीनेट किया गया.'

वैक्सीनेशन के साथ-साथ प्रशासन ने प्लास्टिक के कचरे को सीमित करने और स्वच्छता अभियान को लेकर मंत्र दिया. स्थानीय प्रशासन ने कहा कि इस क्षेत्र में लोग कम से कम प्रदूषण और कचरा फैलाएं, जिससे परिसर की स्वच्छता बनी रहे.

मंदिर में बड़ी संख्या में जुटते हैं श्रद्धालु
मंदिर में बड़ी संख्या में जुटते हैं श्रद्धालु.

गिरनार पर्वत के शिखर पर स्थापित है मंदिर

जूनागढ़ स्थित अंबाजी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं. यहां लोग पर्यटन की वजह से भी बड़ी संख्या में जुटते हैं. यह मंदिर गिरनार पर्वत के शिखर पर स्थित है. भारत के प्राचीन मंदिरों में इसकी गिनती होती है. माना जाता है कि 12वीं सदी की शुरुआत में इस मंदिर की स्थापना हुई थी. 


मंदिर में है माता के पैरों के निशान
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में माता अंबे के पैरों के निशान हैं. करीब 1200 साल पुराने इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1975 में पहली बार किया गया. तब से अब तक मंदिर लगातार देश में प्रसिद्धि पा रहा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर का शिखर 103 फीट ऊंचा है, वहीं शिखर पर 300 से अधिक कलश बिठाए गए हैं.