
मध्य प्रदेश वन विभाग अब जंगलों की कटाई और अतिक्रमण रोकने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित एक खास सिस्टम इस्तेमाल करने जा रहा है. यह सिस्टम सेटेलाइट तस्वीरों और मशीन लर्निंग तकनीक पर आधारित है और इसे भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी अक्षय राठौर ने तैयार किया है. अक्षय आईआईटी रुड़की से पढ़े हैं और इस सिस्टम को बनाने में उन्होंने ChatGPT की भी मदद ली.
इस सिस्टम का नाम है रियल-टाइम फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम (Real-Time Forest Alert System). इसे पहले फेज में शिवपुरी, गुना, विदिशा, बुरहानपुर और खंडवा जिलों में लागू किया जा रहा है. ये वे इलाके हैं जहां सबसे ज्यादा अवैध पेड़ कटाई और जमीन पर कब्जे की घटनाएं दर्ज होती हैं.
कैसे काम करता है रियल-टाइम फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम
यह क्लाउड-आधारित सिस्टम सेटेलाइट डेटा, मशीन लर्निंग और फील्ड से मिलने वाली जानकारी को मिलाकर जंगलों की निगरानी करता है. जंगल में अगर 10x10 मीटर की जगह में भी बदलाव हुआ है तो यह उसे भी पकड़ सकता है. जैसे ही जंगल क्षेत्र में खेती, निर्माण या जमीन के इस्तेमाल में कोई बदलाव होता है, सिस्टम तुरंत DFO को अलर्ट भेजता है. इसके बाद मौके पर बीट गार्ड को भेजा जाता है ताकि तुरंत कार्रवाई हो सके.
यह पहली बार है जब मध्य प्रदेश में जंगलों की रक्षा के लिए AI का इस्तेमाल हो रहा है. 2023 की फॉरेस्ट सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र (85,724 वर्ग किलोमीटर) वाला राज्य है, लेकिन यहीं सबसे ज्यादा जंगलों (612.41 वर्ग किलोमीटर) की कटाई भी हुई है.
कैसे आया आइडिया
अक्षय राठौर ने बताया कि उन्होंने यह सिस्टम तब बनाने का सोचा जब उन्होंने खुद क्लाइमेट चेंज के असर को जमीनी स्तर पर महसूस किया. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने इस टॉपिक पर पेपर पब्लिश किए हैं और फिर AI की मदद से रिसर्च की. इसके अलावा, गुना में अतिक्रमण से जुड़ी उनकी एक स्टडी से भी उन्हें मॉडल बनाने में मदद मिली.
राठौर ने बताया कि 2024 की दिवाली के आसपास दो समुदायों के बीच जमीन को लेकर विवाद हुआ था जिसमें एक नेता की जान चली गई और आगजनी हुई. इसी घटना ने उन्हें जमीन प्रबंधन के लिए AI आधारित सॉल्यूशन बनाने की प्रेरणा दी. पहले वन विभाग जंगल की निगरानी मैन्युअल तरीके से करता था. लेकिन अब यह काम तकनीक से होगा. अक्षय ने कर्नाटक के एक पुराने अलर्ट सिस्टम का भी अध्ययन किया, जहां हर 21 दिन में एक बार अलर्ट आता था. लेकिन उनका सिस्टम हर 2-3 दिन में अलर्ट देगा.
ट्रायल पर हो रहा काम
राठौर ने बताया कि मानसून से पहले एक बड़ा डेटा बेस तैयार किया जाएगा जिससे सिस्टम को पूरी तरह ट्रेन किया जा सके. एक बार सिस्टम 99% सटीकता पर पहुंच जाए, तो यह भविष्यवाणी करने वाला टूल बन जाएगा जो अवैध गतिविधियां पहचानने, बजट और स्टाफ की सही तैनाती में मदद करेगा.
फिलहाल, स्टाफ को हर अलर्ट ज़ोन से फोटो अपलोड करने होते हैं जिससे उनकी जवाबदेही तय हो सके. लेकिन दूसरे फेज में सिस्टम को पूरी तरह ऑटोमैटिक बनाने की योजना है, जिसमें इंसानों की जरूरत कम होगी. आगे चलकर इसमें ड्रोन भी शामिल किए जा सकते हैं, ताकि निगरानी का काम तेज और सटीक हो सके. साथ ही, साल-दर-साल का डेटा जोड़कर सिस्टम को और मजबूत बनाया जाएगा, जिससे मौसमी बदलावों से होने वाली ग़लतियों को रोका जा सके.