
हिमाचल प्रदेश के सिदबाड़ी इलाके की महिलाएं साथ में मिलकर बदलाव की मुहिम चला रही हैं. और यह संभव हो रहा है चिन्मय ऑर्गेनाइजेशन फॉर रूरल डेवलपमेंट (CORD) की नेशनल डायरेक्टर, क्षमा मैत्रेय के नेतृत्व में, जिन्हें लोग 'डॉक्टर दीदी' के नाम से जानते हैं. क्षमा को उनके कामों के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है. उन्होंने गांवों की महिलाओं को साथ में जोड़कर महिला मंडल बनाए हैं.
इन मंडलों में महिलाएं 20 रुपये जैसे छोटे योगदान से शुरुआत करती हैं, लेकिन उससे लेकर सड़क निर्माण जैसे बड़े कार्यों को भी अंजाम देती हैं. मंडल में प्रधान, सचिव और कोषाध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से किया जाता है. आज यह मुहिम हिमाचल तक ही सीमित नहीं है. हिमाचल, उत्तराखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों में कुल 2186 महिला मंडल सक्रिय हैं, जिनसे करीब 91 हजार सदस्याएं जुड़ी हुई हैं.
क्यों हुई यह शुरुआत
सालों से क्षमा मैत्रेय चिन्मय ऑर्गनाइजेशन फॉर रूरल डेवलपमेंट (CORD) के तहत ग्रामीण विकास के लिए काम कर रही हैं. उनका उद्देश्य था कि महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकलें, खुलकर अपनी बात कहें और सामूहिक रूप से समाधान खोजें. उन्होंने देखा कि शादी के बाद महिलाएं सामाजिक गतिविधियों से कट जाती हैं. इस सोच को बदलने के लिए उन्होंने महिला मंडलों की नींव रखी.
महिलाओं ने असंभव को किया संभव
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, इन महिला मंडलों की महिलाएं आज ऐसे-ऐसे काम कर चुकी हैं जो लोगों को शायद असंभव लगें. साल 2021 में तंगरोटी खास पंचायत के वार्ड नंबर 2 की महिलाओं ने देखा कि कई बार अनुरोध करने के बाद भी सड़क नहीं बन रही है. उन्होंने फैसला लिया कि अब इंतजार नहीं किया जाएगा. सभी ने मिलकर चंदा जुटाया और खुद काम शुरू कर दिया. महिलाओं ने खुद ईंटें ढोईं, बच्चियों ने मिट्टी उठाई और जिनके पति मिस्त्री थे, उन्होंने मुफ्त में निर्माण कार्य किया. बिना सरकारी मदद के सड़क बनकर तैयार हो गई.
इसी तरह झियोल गांव की अनीता देवी ने अपने घर में ऑर्गेनिक सब्जियां उगाईं और आसपास के बाजारों में बेचना शुरू किया. 2023 में उन्होंने CORD के ई-कॉमर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम में भाग लिया और ऑनलाइन बिक्री के तरीके सीखे. आज वे कई शहरों में ऑर्गेनिक सब्जियां सप्लाई कर रही हैं, जिससे उनकी आमदनी भी बढ़ी है. वहीं, कांगड़ा जिले की चाहड़ी पंचायत की महिला प्रधान छाया देवी आरक्षित वर्ग से चुनी गई थीं. शुरू में उन्हें पंचायत भवन में एक कोने में बिठा दिया जाता था और बोलने तक नहीं दिया जाता था. जब महिला मंडल को इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया.
महिलाओं ने साफ कहा कि प्रधान का पद संवैधानिक है, और उसे पूरा सम्मान मिलना चाहिए. अधिकारियों ने गलती मानी और उचित बैठने और भागीदारी की व्यवस्था की. हिमाचल की महिलाओं ने यह दिखा दिया है कि अगर इच्छाशक्ति और एकता हो, तो किसी भी समस्या का हल संभव है. महिला मंडलों ने सिर्फ सामाजिक बदलाव नहीं लाया, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त भी बनाया है.