Borewell Sharing Formula
Borewell Sharing Formula आंध्र प्रदेश के पल्यावानापल्ली गांव के कुछ किसानों ने वाटर शेयरिंग फॉर्मूला अपनाकर खेती की तस्वीर बदल दी. उन्होंने इसकी मदद से पानी की कमी की दूर किया और अब अच्छी-खासी खेती कर रहे हैं. किसानों ने बोरवेल के साझा इस्तेमाल के लिए वॉटरयूजर ग्रुप बनाया. किसानों ने 10 साल तक नए बोरवेल नहीं करने का समझौता किया. उनकी इस कोशिश से भूजल के लेवल में काफी सुधार हुआ है. इतना ही नहीं, इस पहल से 73 गांवों जुड़ गए हैं.
साझा बोरवेल से फायदा-
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक पल्यावानापल्ली गांव में किसान इस तरह से खेती करते हैं. वे बताती है कि पहले पानी की कमी के चलते खेती करने में दिक्कत होती थी. खेती भी अच्छी नहीं होती थी. किसानों का कहना है कि पानी साझा करने से उनको काफी फायदा हुआ है. किसानों की इस कोशिश से इलाके में भूजल स्तर में सुधार हुआ है.
गांव में 16 किसानों के कॉमन कनेक्शन-
पल्यावानापल्ली गांव में 38 एकड़ जमीन पर साझा बोरेवेल बिछाए गए हैं. इसमें 16 किसानों के कॉमन कनेक्शन हैं. इस गांव में इस कार्यक्रम की शुरुआत साल 2012 में हुई थी. सबसे पहले इन किसानों एक वॉटर शेयरिंग ग्रुप बनाया. सभी किसानों 2500-2500 रुपए दिए और इसका रजिस्ट्रेशन कराया. सभी किसानों ने स्टाम्प पेपर पर समझौता किया कि वे एक दशक तक बोरवेल नहीं खोदेंगे. इन 16 किसानों में से 4 के पास बोरवेल है. जबकि 12 किसान बिना बोरवेल वाले हैं.
2200 फुट पाइप का नेटवर्क-
पल्यावानापल्ली गांव में 2200 फुट पाइट से खेतों को जोड़ा गया है. इस पाइप के जरिए पानी की सप्लाई होती है. इसका ज्यादा फायदा खरीफ की फसल के समय होती है. खरीफ के सीजन में बोरवेल किसान कॉमन पाइपलाइन से इस ग्रुप से जुड़े किसानों को पानी देते हैं. इसमें बुआई, फूल या फल आने और कटाई के समय पानी की जरूरत पड़ती है.
कैसे हुई थी इसकी शुरुआत-
साल 2007 में हैदराबाद के वॉटरशेड सपोर्ट सर्विसेस एंड एक्टिविटीज नेटवर्क (वासन) ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी. आज इस प्रोग्राम से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के 73 गांव जुड़े हैं. रिपोर्ट के मुताबिक वासन के एक्जीक्यूटिव सेक्रेटरी ए. रवींद्र बताते हैं कि साल वासन ने वर्ल्ड बैंक और एपडीएमपी की मदद से इस प्रोग्राम की शुरुआत की थी. लेकिन अब लगातार इससे किसान जुड़ते गए. अब हालात ये हैं कि किसान खुद इस कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं. इसका फायदा भी हो रहा है. इन गांवों में भूजल स्तर में काफी सुधार हुआ है.