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यहां 181 वर्षों से हर साल हो रही है रामलीला, भारत-चीन युद्ध के दौरान भी नहीं रुका आयोजन

टेलीवीजन, मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को भूलते जा रहे हैं, लेकिन भारत का एक राज्य आज भी इस सभ्यता को बनाए हुए है. मध्यप्रदेश के रीवा में धार्मिक और पौराणिकता को जीवित रखने के लिए 18 दशक से रामलीला का निरंतर मंचन किया जा रहा है.

Nritya Raghav Temple, Rewa Nritya Raghav Temple, Rewa
हाइलाइट्स
  • वर्षों पहले हाथी घोड़े पर निकलती थी भगवान राम की सवारी

  • भारत-चीन युद्ध के दौरान भी नहीं रुका रामलीला का आयोजन

  • काशी विश्वनाथ की रामलीला से प्रभावित होकर की थी शुरुआत

टेलीवीजन, मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को भूलते जा रहे हैं, लेकिन भारत का एक राज्य आज भी इस सभ्यता को बनाए हुए है. मध्यप्रदेश के रीवा में धार्मिक और पौराणिकता को जीवित रखने के लिए 18 दशक से रामलीला का निरंतर मंचन किया जा रहा है. प्राचीन नृत्य राघव मंदिर में यह रामलीला 181 वर्षो से होती चली आ रही है. यहां लगभग 450 प्राचीन नृत्य राघव मंदिर में भगवान राम की नृत्य करती हुई दुनिया की इकलौती मूर्ति स्थापित है.

भगवान राम की नृत्य करती हुई दुनिया की इकलौती मूर्ति
रीवा के नृत्य राघव मंदिर में निरंतर 181 सालों से रामलीला का मंचन किया जा रहा है. भक्तिमय, पौराणिक, आध्यत्मिक और धार्मिक परंपरा को जीवित रखने के लिए यह रामलीला निरन्तर चली आ रही है. दूर-दूर से श्रध्दालु इसे देखने आते हैं और देर रात तक रामलीला का रसपान करते हैं. काशी विश्वनाथ की रामलीला से प्रभावित होकर रीवा रियासत के महाराज रघुराज सिंह ने नृत्य राघव मंदिर में रामलीला की शुरुआत की थी. प्राचीन नृत्य राघव मंदिर लगभग 450 वर्ष पुराना है यहां भगवान राम की नृत्य करती हुई दुनिया की इकलौती मूर्ति स्थापित है.

काशी विश्वनाथ की रामलीला से प्रभावित होकर शुरू हुआ आयोजन

ऐसा कहा जाता है की बघेल राजपूत महाराज रघुराज सिंह एक बार काशी विश्वनाथ गए थे और वहां उन्होंने रामनगर की रामलीला का दर्शन किया था. महाराज को ये रामलीला इतनी पसंद आई की उन्होंने इसे रीवा में करने का संकल्प लिया. उसके बाद रीवा में भी रामलीला का आयोजन शुरू हो गया. 

भारत चीन युद्ध के दौरान भी नहीं रुका आयोजन
इसके बाद से 181 सालों से निरंतर नृत्य राघव शरण मंदिर में रामलीला का आयोजन चलता आ रहा है. इसकी शुरआत महाराजा रघुराज सिंह ने 1840 ई. में की थी. भारत-चीन युद्ध के दौरान 1962 में देशभर के सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई थी, मगर यहां रामलीला का आयोजन चलता रहा. कोविड 19 महामारी के दौरान भी यहां कलाकारों ने रामलीला का मंचन किया. इस आयोजन का रामलीला के कलाकार बेसब्री से इंतजार करते हैं. वह इसे पूर्वजों की धरोहर मानते हैं और इसे जीवित रखने के लिए पूरा प्रयास कर रहे है. 

महाराजा उठाते थे पूरा खर्चा
रामलीला के दौरान महाराजा रघुराज सिंह इस आयोजन का पूरा खर्चा देते थे. किले की तरफ से हांथी, घोड़े भेजे जाते थे. भगवान श्रीराम हांथी पर सवार होकर नदी में स्नान करने जाया करते थे. गाजे बाजे और बहमूल्य पोशाकों का इंतजाम किले की तरफ से किया जाता था. रामलीला समाप्त होने के बाद कलाकारों को सम्मानित भी किया जाता था. ये रामलीला पहले पूरे एक महीने तक चलती थी लेकिन अब नौ दिन होती है. अब इस मंदिर की पूरी जिम्मेदारी सरकार के हांथो में है. 

रीवा से विजय कुमार विश्वकर्मा की रिपोर्ट