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कहानी वाली दीदी: शादी के बाद लगी लगन तो लिख डाली 185 कहानियां

शाहजहांपुर के बंथरा गांव में रहने वाली आशा जब दुल्हन के जोड़े में ससुराल पहुंची तो उनकी उम्र महज 15 साल थी. उन्होंने लगन से पढ़ाई की और उनकी बेटी के एक आईडिया ने आशा के जीवन में नई आशा जगा दी. परिणाम यह हुआ कि आशा अब तक 185 साहित्य से जुड़ी कहानियां लिख चुकी हैं। आज प्रतिलिपि एप इनकी 35 कहानियों के अधिकार ले चुकी हैं. इसके साथ उनकी कहानियों पर वेब सीरीज बनाने के ऑफर भी उन्हें मिल चुके हैं.

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हाइलाइट्स
  • अब तक आशा 185 साहित्य से जुड़ी कहानियां लिख चुकी हैं

  • प्रतिलिपि एप इनकी 35 कहानियों के अधिकार ले चुकी हैं

  • 30 कहानियों के लिए मिल चुका है पुरस्कार

क्या आप जानते हैं सबसे खूबसूरत तस्वीर कौन सी होती है? जब मेहनत और किस्मत दोनों के रंग मिलते हैं तब जो तस्वीर बनती है वह सबसे खूबसूरत होती है. जब आपके सपने ही आपका शौक बन जाएं तो आपको मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता. शाहजहांपुर की आशा एक ऐसा ही नाम है, जिन्होंने शौक को ही उनकी सफलता की मंजिल बना दिया. 15 साल की उम्र में दुल्हन बन जब आशा ससुराल पहुँची तो किताबों और कापियों के पन्ने इतने ही पलटे थे कि हल्का-फुल्का पढ़ लेती थी. बिटिया ने जब उन्हें आइडिया दिया तो, उन्होंने लगन से पढ़ाई की और इसी एक आइडिया ने आशा के जीवन में नई आशा जगा दी. नतीजा यह हुआ कि आशा अब तक 185 साहित्य से जुड़ी कहानियां लिख चुकी हैं.

कहानी वाली दीदी

तीन साल पहले बिटिया ने दिया आइडिया 

शाहजहांपुर के बंथरा गांव में रहने वाली आशा जब दुल्हन के जोड़े में ससुराल पहुंची तो उनकी उम्र महज 15 साल थी. उस वक्त तक उन्होंने किताब कॉपियों के पन्ने इतने ही पलटे थे कि चिट्ठी पत्री पढ़ लेती थीं. हालांकि शादी के बाद जिंदगी आसान नहीं थी लेकिन पढ़ाई की लगन और 3 साल पहले बिटिया के आईडिया देने पर उनके जीवन में नई आशा की किरण जग गई.

30 कहानियों के लिए मिल चुका है पुरस्कार  

बता दें आशा अब तक 185 साहित्य से जुड़ी कहानियां लिख चुकी हैं. ये कहानियां उन्होंने एक मोबाइल एप के लिए लिखी हैं. 48.61 लाख लोग उनकी रचनाओं को ऑनलाइन पढ़ चुके हैं, 8 पुस्तकें एक प्रमुख वेबसाइट पर  बिक्री के लिए आ चुकी हैं, साथ ही कुक्कू एफ एम पर उनकी कहानी आती है.

आशा की ‘शहादत एक इबादत’, ‘जिद जीत की’, ‘दो टूक जिंदगी की’ कविताएं साहित्यिक पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुकी हैं. दहेज प्रथा और बेमल शादी, उपन्यास जल बिच मीन प्यासी जल्द प्रकाशित होने वाला है. आशा की कहानियों की अगर बात करें तो ये आम जीवन से जुडी होती होती हैं. उनकी लिखी 30 कहानियां पुरस्कार जीत चुकी हैं.

आज प्रतिलिपि एप इनकी 35 कहानियों के अधिकार ले चुकी हैं. इसके साथ उनकी कहानियों पर वेब सीरीज बनाने के ऑफर भी उन्हें मिल चुके हैं. 

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बेटी की जिद पर लिखी पहली कहानी 

बंथरा गांव की आशा ने आठवीं तक पढ़ाई की है. उनके पिता श्याम नारायण अवस्थी ने 1987 में उनकी शादी हरदोई निवासी ब्रज किशोर शुक्ला से कर दी. जब आशा को लगा कि बिना पढ़ाई के जिंदगी में अंधेरा है, ऐसे में उन्होंने नौवीं कक्षा में प्रवेश लिया. सुबह स्कूल और दोपहर को बच्चों के बीच उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा की. बेटी की जिद पर आशा ने मोबाइल फोन पर प्रतिलिपि एप पर पहली कहानी लिखी और अपलोड कर दी।

आशा के पिता श्याम नारायण अवस्थी कहते हैं, “बेटी की कामयाबी पर खुशी होती है. इनसे पढ़ने के लिए गांव की लड़कियां आती है, वो इन्हें कहानी वाली दीदी के नाम से बुलाती है। मुझे अपनी बेटी की सफलता पर गर्व है।” 

आशा के जीवन की कहानी संघर्षो से भरी थी लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कभी निराशा को नहीं आने दिया बल्कि उन्होंने अपने आशा नाम को सार्थक कर अपने जीवन को एक नई दिशा दी। 
 
(विनय पाण्डेय की र‍िपोर्ट