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सब्जी के छिलकों से पेपर बना रही हैं 11 साल की मान्या, समाज के लिए बनीं मिसाल

कक्षा 6 में पढ़ने वाली मान्या बेंगलुरु की रहने वाली हैं. उन्होंने इन कचरों को पेपर के रूप में बदला है. दैनिक भास्कर से बात करते हुए मान्या ने बताया कि उनकी परवरिश हमेशा ही उनकी दादी के घर हुई है. दादी के घर की हरियाली के बीच पली-बढ़ी मान्या को हमेशा प्रकृति से प्यार रहा है. जैसे ही मान्या ने शहर में कचरे की बढ़ती समस्या को देखा, इसके लिए कुछ करने का सोचा.

सब्जी के छिलकों से पेपर बना रही हैं 11 साल की मान्या सब्जी के छिलकों से पेपर बना रही हैं 11 साल की मान्या
हाइलाइट्स
  • 11 साल की यंग रिसाइकलर मान्या हर्ष ने ये कारनामा कर दिखाया है

  • लहसुन के छिलके, आलू के छिलके, मटर के छिलके या मक्का के छिलके से कागज बना रही है

कागज को वैसे तो बायोडिग्रेडेबल वेय्ट माना जाता है, लेकिन कागज बनने कि प्रक्रिया में पेड़ों को काफी नुकसान पहुंचता है. ऐसे में सब्जी के छिलकों से बने कागज काफी बेहतर साबित हो सकते हैं. सब्जी के छिलकों से बने कागज के बारे में सुनकर आप भी हौरान हो जाएंगे. 11 साल की यंग रिसाइकलर मान्या हर्ष ने ये कारनामा कर दिखाया है. मान्या लहसुन के छिलके, आलू के छिलके, मटर के छिलके या मक्का के छिलके से कागज बना रही है. 

कचरे की समस्या से निजात दिलाएगा ये पेपर
दरअसल ये पेपर कई पहलूओं पर कारगर साबित हो सकता है. शहरों में कूड़ा एक बड़ी समस्या है, ऐसे में अगर सब्जी के छिलकों से पेपर बनेंगे तो कूड़े पर भी काफी नियंत्रण होगा. भारत में औसतन हर घर में हर दिन लगभग 300 ग्राम सब्जियों का कचरा निकलता है. लेकिन अगर इस कचरे का सही इस्तेमाल किया जाए तो कचरे की समस्या से निजात मिल सकता है. कक्षा 6 में पढ़ने वाली मान्या बेंगलुरु की रहने वाली हैं. उन्होंने इन कचरों को पेपर के रूप में बदला है. दैनिक भास्कर से बात करते हुए मान्या ने बताया कि उनकी परवरिश हमेशा ही उनकी दादी के घर हुई है. दादी के घर की हरियाली के बीच पली-बढ़ी मान्या को हमेशा प्रकृति से प्यार रहा है. जैसे ही मान्या ने शहर में कचरे की बढ़ती समस्या को देखा, इसके लिए कुछ करने का सोचा. इसके लिए मान्या ने एक अनूठी पहल की है. वो प्याज, लहसुन, मटर, आलू, कॉर्न, नारियल इन सबके छिलको से ईको-फ्रेंडली पेपर तैयार कर रही हैं. 

क्रांति लाने वाली पहल
कचरे से निजात पाना कोई आम समस्या नहीं है. इतनी छोटी सी उमर में इतना क्रिएटिव सोचना कोई आम बात नहीं है. अगर सरकार इस पहल को बढ़ावा देती है तो कई तरह की समस्याओं का समाधान ढूंढा जा सकता है.  यदि सब्जियों के कचरे से कागज बनाने की इस पहल को सभी बच्चों के लिए घरेलू गतिविधि बना दिया जाए, तो हम पेड़ों को काटने से बनने वाले कागजों के उपयोग को कम करने में सक्षम हो सकते हैं। यह विचार तो बस एक शुरुआत है, इसे प्रोत्साहित किया जाए तो यह एक बहुत बड़ी क्रांति बन सकती है.

ऐसे बनते हैं ईको फ्रेंडली पेपर
मान्या बताती है कि इस ईको फ्रेंडली पेपर को बनाने के लिए पहले सब्जियों और फलों के छिलकों को इकट्ठा किया जाता है. फिर उन्हें पानी में उबाला जाता है. उबालने के बाद सभी का पेस्ट बनता है. पेस्ट बनाने के बाद मान्या उसे एक फ्लैट कंटेनर या सरफेस पर रख देती हैं. पेस्ट से जो भी एक्स्ट्रा पानी होता है उसे छानने के बाद सूखने के लिए छोड़ देती हैं. इस तरह छिलको से ईको-फ्रेंडली पेपर तैयार हो जाता है. इन पेपर्स पर आप आसानी से लिख सकते हैं, साथ ही आर्ट-क्राफ्ट कर सकते हैं, पेंट कर सकते हैं, और उसे मोड़ भी सकते हैं.

मान्या करती हैं फेस्टिव वेस्ट मैनेजमेंट
मान्या ने 8 साल की उम्र में, स्थानीय समुदाय के बच्चों के वॉकथॉन के लिए उन्हें बुलाकर पानी बचाने के लिए जागरूक करने का बीड़ा उठाया था. इतना ही अपने पिता के साथ मिलकर मान्या ने अपने क्षेत्र को साफ करने के लिए भी एक मिशन शुरू किया था.  वह लोगों को कूड़ेदान का उपयोग करने और झील में कचरा नहीं फेंकने की सलाह देती हैं. इसके साथ ही मान्या अपने हर जन्मदिन पर पौधे भी लगाती हैं. यहां तक कि 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मान्या ने ऑटो ड्राइवर्स, बस कंडक्टर्स, ट्रैफिक पुलिससवालों को पौधे बांटें थे. अभी वो फेस्टिवल वेस्ट मैनजमेंट को लेकर भी काम कर रहीं हैं. त्योहारों में लोग फूल का काफी इस्तेमाल करते हैं और उसे फेंक देते हैं. मान्या ने इन फेंके हुए फूलों से भी पेपर बनाना शुरू किया है.

"डू इट योरसेल्फ"
इन पेपर्स को मान्या ने do it yourself का नाम दिया है. यानी इसे कोई भी आसानी से बना सकता है. इस पेपर के कई फायदे हैं. एक तो इससे कचरा कम होगा, साथ ही प्रदूषण पर भी रोकथाम होगी. अपनी इस पहल से मान्या सभी के लिए एक उदाहरण बन चुकी हैं.