गले में माला पहने मानवेंद्र
गले में माला पहने मानवेंद्र
बुलन्दशहर के मानवेन्द्र सेरेब्रल पाल्सी नामक दिमाग की बीमारी के शिकार हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिसको ब्रेन स्ट्रोक भी कहा जाता है.इसमें शरीर की अधिकांश नस काम नहीं करती हैं. इस नाम की बीमारी से ग्रस्त मानवेन्द्र ने यूपीएससी को पहले अटेम्प्ट में क्लियर कर 112 वीं रेंक हासिल की. हैरत की बात है कि उन्होंने उस परीक्षा को पहले अटेम्प्ट में पास किया जिसके लिए आम लोगों को सालों लग जाते हैं. इसे और खास बना देती है उनकी रैंक. इन दोनों चीज़ का मेल दिखाता है कि बेशक वह एक बीमारी के शिकार हैं, लेकिन मेहनत इतनी की कि बीमारी को आड़े नहीं आने दिया.
क्या है सेरेब्रल पाल्सी?
यह दिमाग की एक ऐसी बीमारी है जिसको ब्रेन स्ट्रोक भी कहा जाता है. इसमें जिसमें शरीर की अधिकांश नस काम नहीं करती हैं. इस बीमारी से ग्रस्त होते हुए यूपीएससी को पहले अटेम्प्ट में क्लियर करके मानवेन्द्र यह दिखा दिया कि अगर मेहनत की जाए तो आसमान में भी छेद हो सकता है. बुलन्दशहर के मानवेंद्र सिंह ने अपनी मेहनत के दम पर पहले ही अटेम्प्ट में यूपीएससी क्लियर कर 112 वीं रैंक प्राप्त की और आई.ए.एस में सिलेक्ट हुए.
मानवेंद्र की सफलता
मानवेंद्र के पिता की मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी, नानी के यहां रहकर उसने सारी तैयारियां की. मानवी की मां का कहना है कि उन्हें पता था कि उनका बच्चा हुनरमंद है भले ही मानसिक रूप से किसी बीमारी का शिकार है. मानवेंद्र मां को हमेशा दिलासा देते थे कि मैं सब कुछ सही करूंगा और उसने ऐसा कर भी दिखाया 10वीं और 12वीं क्लास में उसने टॉप 10 में जगह बनाई, तो मां को भी विश्वास हो गया कि मानवेंद्र कुछ भी कर सकता है उसने पहले ही अटेम्प्ट में जे.ई.ई में 63 वीं रेंक पाकर क्लियर किया. जिसके बाद आई.आई.टी पटना से बी.टेक किया. इस वर्ष यूपीएससी की तैयारी कर 112 रैंक लाकर इस में सिलेक्शन पाया.
क्या कहती है उनकी मां?
मानवेंद्र की मां शहर एक मोंटेसरी स्कूल में प्रिंसिपल हैं. वह बताती हैं कि बचपन में जब मानवेंद्र 6 महीने का था जब से उसका इलाज चल रहा है, और हर तरीके का इलाज मानवेंद्र की मां और उनके मां-बाप ने मानवेंद्र को दिया. जिसमें आयुर्वेदिक होम्योपैथिक, नेचुरोपैथी, फिजियोथैरेपी और एलोपैथिक. मानवेंद्र को इतना आत्मविश्वास नानी-नाना ने दिया कि मानवेंद्र अपने पैरों पर काफी कुछ करने लगे. मानवेंद्र में खुद भी आत्मविश्वास आ गया इसलिए उसने हॉस्टल में रहकर चार-चार किलोमीटर तक साइकिल भी चलाई, अपने कपड़े धोए ,अपना खाना बनाया, साथ-साथ पढ़ाई की और आज यह मुकाम हासिल किया. इस सब के पीछे मानवेंद्र की मां बताती हैं कि ईश्वर का सबसे बड़ा योगदान है. उसके बाद नानी नाना ने बहुत सहयोग किया है. मानवेंद्र के एक भाई और है और एक बहन है, बहन भी यूपीएससी की तैयारी कर रही है.
- मुकुल शर्मा की रिपोर्ट