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जिस बच्चे के बचने की डॉक्टर को भी नहीं थी उम्मीद...उसने हौसले और हिम्मत से जीती जिंदगी की जंग

7 साल की उम्र में शिविर को एक ऐसी बीमारी हुई जो बच्चों को इतनी कम उम्र में ना के बराबर होती है. शिविर के माता-पिता ने बताया कि वह लगातार बीमार रहने लगा था. उसे बार-बार बुखार आता था और उतरता ही नहीं था. सभी तरह के इलाज करवाने के बाद पता चला कि शिविर को ब्रेन में ट्यूबरक्लोसिस है.

Shivir Shivir
हाइलाइट्स
  • 14 दिन वेंटिलेटर पर रहा शिविर

  • घरवाले भी छोड़ चुके थे उम्मीद

8 साल की उम्र में जहां बच्चे नई पेंसिल पकड़ते हैं, नए खिलौनों से खेलते हैं उसी 8 साल की उम्र में शिविर ने अपने हाथ में सिर्फ सुईया और सलाइन की बोतलें देखीं. इस उमर में बच्चे जहां स्कूल में कदम रखते हैं उसने आईसीयू और वेंटीलेटर पर अपने दिन गुजारे. इस मासूम जिंदगी ने 12 दिन वेंटिलेटर पर रहकर मौत को हर रोज बहुत करीब से देखा और उसे हरा कर वापस अब अपनी नई जिंदगी जी रहा है.

दरअसल 7 साल की उम्र में शिविर को एक ऐसी बीमारी हुई जो बच्चों को इतनी कम उम्र में ना के बराबर होती है. शिविर के माता-पिता ने बताया कि वह लगातार बीमार रहने लगा था. उसे बार-बार बुखार आता था और उतरता ही नहीं था. सभी तरह के इलाज करवाने के बाद पता चला कि शिविर को ब्रेन में ट्यूबरक्लोसिस है. डॉक्टर ने कहा कि यह बीमारी बहुत गंभीर और जटिल है और इसलिए उसके बचने की उम्मीद सिर्फ 1% की ही है. ऐसे में इस खबर ने उनके परिवार को पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया था.

14 दिन वेंटिलेटर पर रहा शिविर
यह खबर शिविर की मां के लिए और भी असहनीय थी क्योंकि उस वक्त वो खुद प्रेग्नेंट थी और दूसरी बार मां बनने वाली थीं. ऐसे में जहां पहला बच्चा जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा हो और दूसरा बच्चा अभी दुनिया में आया ही नहीं था उनके लिए परिस्थितियां बेहद कठिन और गंभीर थी. शिविर की मां ने बताया कि उनका परिवार एक तरह से उम्मीद छोड़ चुका था. लेकिन शिविर के मनोबल और उम्मीदों ने उसका साथ नहीं छोड़ा. वह 42 दिनों तक अस्पताल में रहा. उसमें से 14 दिन वेंटीलेटर पर भी रहा. यह 14 दिन हमारी जिंदगी के सबसे कठिन दिन थे. हर रोज शिविर जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था. पता नहीं था कि वह अगली सुबह देख पाएगा या नहीं. लेकिन डॉक्टर का कहना था कि शिविर का मनोबल अपने आप में इतना अडिग है कि बड़ी से बड़ी परेशानी उसे हिला नहीं सकती. 42 दिनों के इलाज के बाद शिविर पूरी तरह से ठीक हो कर घर लौट चुका है.

घरवाले भी छोड़ चुके थे उम्मीद
घर वालों के लिए यह उसका दूसरा जन्म ही था. लेकिन तकदीर ने उसके जिंदगी में कुछ और ही लिखा था. घर लौटने के कुछ महीनों तक शिविर रोज हर दिन 18 से 20 दवाइयां लेता था. इन दवाइयों में स्टेरॉइड्स का इतना ज्यादा असर था कि उसकी देखने की शक्ति धीरे-धीरे कम होने लगी और कुछ महीनों बाद उसका विजन शून्य हो चुका था. शिविर के पिता ने बताया कि दवाइयों के असर के कारण वह देखने की क्षमता पूरी तरह से खो चुका था. हमें लगा था जैसे हमारे बच्चे के जिंदगी से उसके सभी रंग जा चुके हैं. फिर एक बार अस्पताल गए वहां पर इलाज करवाया. एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद दूसरी जंग शिविर का इंतजार कर रही थी.

डॉक्टर ने बताया कि शिविर अब दोनों ही आंखों से अपने विजन केपेसिटी खो चुका है. लेकिन शिविर को यह बेरंग सी दुनिया मंजूर नहीं थी. वह फिर 14 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा. उसकी आंखों का ऑपरेशन किया गया और अब वह पूरी तरह से ठीक है. शिविर का 65% विजन वापस आ चुका है. वह कहता है कि मैं एक बहुत ही स्ट्रांग बच्चा हूं और मैं किसी चीज से नहीं डरता.