
भारत में हर साल करीब 1.7 लाख लोग आत्महत्या करते हैं. आमतौर पर इसके पीछे तनाव, बेरोज़गारी, रिश्तों में खटास या आर्थिक तंगी जैसे कारण बताए जाते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे जैविक और मानसिक बदलाव भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. इन्हीं रहस्यों को समझने के लिए दिल्ली के एम्स (AIIMS) में एक अनोखी पहल की गई है.
क्या है ब्रेन बायो बैंक?
टीवी 9 की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रेन बायो बैंक एक वैज्ञानिक व्यवस्था है, जहां आत्महत्या कर चुके लोगों के मस्तिष्क के सैंपल सुरक्षित रखे जाएंगे. इन सैंपल्स पर 5 सालों तक शोध होगा ताकि यह समझा जा सके कि आत्महत्या की प्रवृत्ति किन जैविक और मानसिक कारणों से उत्पन्न होती है.
इस बैंक में मस्तिष्क के तीन हिस्सों- प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (PFC, हिपोकैंपस और एमिग्डला के नमूने संरक्षित किए जाएंगे. ये हिस्से निर्णय लेने और भावनात्मक नियंत्रण में अहम भूमिका निभाते हैं.
रिसर्च का दायरा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग
लाइव हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक, एम्स ने यह प्रोजेक्ट अमेरिका के यूटा विश्वविद्यालय के साथ मिलकर शुरू किया है. अमेरिकी NIH (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ) ने इस रिसर्च को फंड किया है. भारत में आत्महत्या करने वाले 4,000 लोगों और अमेरिका में 8,000 सैंपल्स पर रिसर्च किया जाएगा. अभी तक एम्स में लगभग 250 आत्महत्या पीड़ितों के मस्तिष्क सैंपल सुरक्षित रखे जा चुके हैं.
क्यों ज़रूरी है यह शोध?
एम्स के फॉरेंसिक विभाग के प्रोफेसर डॉ. चित्तरंजन बेहरा ने लाइव हिंदुस्तान को बताया कि आत्महत्या करने वाले लोगों में कई जीन में बदलाव पाए गए हैं. शुरुआती अध्ययनों से पता चला कि इन्फ्लेमेट्री मार्कर (जैसे IL-1β, IL-4, IL-6) में भी बदलाव देखा जाता है. यह बदलाव क्यों होता है, इसे समझने के लिए बड़े स्तर पर सैंपल स्टडी की जा रही है.
क्या हो सकते हैं फायदें
आत्महत्या भारत में एक गंभीर सामाजिक-स्वास्थ्य समस्या है. 20 से 40 वर्ष की उम्र में इसके मामले सबसे ज्यादा आते हैं. एम्स में शुरू हुआ यह ब्रेन बायो बैंक न केवल भारत बल्कि दुनिया के लिए आत्महत्या के जैविक रहस्यों को सुलझाने का एक बड़ा कदम है. इस रिसर्च से आने वाले वर्षों में हज़ारों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं.
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