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कोरोना से बचने के लिए कारगर है ये दवा, अस्पताल में भर्ती होने की नहीं आएगी नौबत

शोधकर्ताओं ने इस साल 15 जनवरी से 6 अगस्त के बीच 739 मरीजों पर फ्लूवोक्सामाइन का इस्तेमाल किया. ये कोविड 739 मरीज ब्राजील के थे. वहीं 733 रोगियों के एक अन्य समूह को प्लेसबो दिया गया. जिन मरीजों को फ्लुवोक्सामाइन दिया गया था, उन्हें 28 दिनों तक देखा गया और विशषज्ञों ने उनके स्वास्थ्य पर नज़र रखी कि क्या उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता है. जिन लोगों को फ्लुवोक्सामाइन दिया गया था, उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं थी.

कोविड मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की दर में 30 प्रतिशत कमी कोविड मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की दर में 30 प्रतिशत कमी
हाइलाइट्स
  • कोविड मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की दर में 30 प्रतिशत कमी

  • ओसीडी, अवसाद, चिंता के इलाज के लिए होता है इस दवा का इस्तेमाल

दुनिया भर में कोरोना का कहर जारी है. लगातार दुनिया भर के डॉक्टर और वैज्ञानिक इस महामारी का इलाज ढूंढ़ने में लगे हुए हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि डिप्रेशन को ठीक करने वाली दवा से कोरोना के खतरा को टाला जा सकता है.

एंटीडिप्रेसेंट से टलेगा कोरोना का खतरा
लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, एंटीडिप्रेसेंट दवा फ्लुवोक्सामाइन (Fluvoxamine) ज्यादा जोखिम वाले कोविड मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की दर को 30 प्रतिशत तक कम करने में मदद कर सकती है. इस दवा का उपयोग आमतौर पर मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति जैसे कि ओसीडी, अवसाद, चिंता और इस तरह के इलाज के लिए किया जाता है.

मरीजों पर कारगर साबित हुआ दवा
शोधकर्ताओं ने इस साल 15 जनवरी से 6 अगस्त के बीच 739 मरीजों पर फ्लूवोक्सामाइन का इस्तेमाल किया. ये कोविड 739 मरीज ब्राजील के थे. वहीं 733 रोगियों के एक अन्य समूह को प्लेसबो दिया गया. जिन मरीजों को फ्लुवोक्सामाइन दिया गया था, उन्हें 28 दिनों तक देखा गया और विशषज्ञों ने उनके स्वास्थ्य पर नज़र रखी कि क्या उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता है. शोध से निकले डेटा की माने तो जिन लोगों को फ्लुवोक्सामाइन दिया गया था, उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं थी. Fluvoxamine इंजेक्शन वाले रोगियों को अस्पताल में भर्ती होने की दर में 30 प्रतिशत की कमी आई थी. वहीं वो मरीज  जो सभी डॉक्टरों की बताई गई दवाएं ले रहे थे, उनमें अस्पताल में भर्ती होने की दर में 65 प्रतिशत की कमी देखी गई थी.

कैसे टलेगा कोरोना का खतरा?
वाशिंगटन विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर और शोध की सह-लेखिका एंजेला रीयर्सन बताती हैं कि ये दवा साइटोकिन्स (Cytokins) नाम के सूजनरोधी मॉलीक्यूल को शरीर में बनने से रोकती है. कोरोनावायरस इस मॉलीक्यूल को बढ़ावा दे सकता है.  दवा को इसके गुणों के लिए चुना गया था और क्योंकि यह माना जाता था कि दवा में कोविड रोगियों में साइटोकिन तूफान को कम करने की क्षमता है.

गेमचेंजर साबित हो सकता है ये प्रयास
स्टडी से जुड़े और कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एडवर्ड मिल्स का कहना है कि कोविड-19 अभी भी कम संसाधनों और टीकाकरण तक सीमित पहुंच वाले देशों में व्यक्तियों के लिए एक जोखिम है. ऐसे में यह अध्ययन उत्साहजनक है. इस दवा से कोरोना के हर उपचार की लागत महज 300 रुपये आती है. यह दवा कोरोना से मुकाबले में अहम साबित हो सकती है.