देश ही नहीं विदेश के चिकित्सा जगत में भी राजधानी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) का नाम फेमस है. यहां के डॉक्टरों ने एक बार फिर कमाल कर इतिहास रच दिया है. जी हां, पहली बार 78 वर्षीय ब्रेन डेड डोनर से निकाली गई दो किडनी को एक महिला मरीज में ट्रांसप्लांट करने में सफलता पाई है. इस तरह से 51 वर्षीय महिला मरीज को नई जिंदगी मिली है.
सर्जिकल अनुशासन विभाग और नेफ्रोलॉजी विभाग ने ओआरबीओ के सहयोग से दोहरा किडनी प्रत्यारोपण किया. एम्स के सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. असुरी कृष्णा ने बताया कि यह काफी जटिल ऑपरेशन था. इसमें कई डॉक्टरों की टीम ने मिलकर काम किया. अच्छी बात है कि सर्जरी सफल रही.
अंगदान की दी थी सहमति
एम्स के डॉक्टरों ने बताया कि 78 वर्षीय महिला सीढ़ियों से गिर गई थी. इससे उसके सिर में गंभीर चोट लगी थी. उसे 19 दिसंबर 2023 को एम्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था. उसे बचाया नहीं जा सका और उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया. इसके बाद डॉक्टरों ने इस बुजुर्ग महिला के परिजनों को अंगदान के बारे में बताया. इसके बाद महिला के घरवालों ने अंगदान की सहमति दे दी. हालांकि इसके बाद भी डॉक्टरों के सामने एक चुनौती थी. चूकि महिला की उम्र ज्यादा थी. इस वजह से डायलिसिस पर चल रहे किसी मरीज के लिए एक किडनी काफी नहीं थी.
दोनों किडनियां अच्छी तरह से कर रहीं काम
डॉक्टरों ने बुजुर्ग महिला की दोनों किडनी को किसी एक ही मरीज में प्रत्यारोपित करने का फैसला किया. किडनी की तलाश कर रही 51 वर्षीय महिला डायलिसिस पर थी. इसे देखते हुए डॉ.असुरी कृष्णा, डॉ. सुशांत सोरेन और प्रोफेसर वी. सीनू ने सर्जरी कर दोनों किडनियों को प्राप्तकर्ता के दाहिनी ओर एक के ऊपर एक रख कर प्रत्यारोपित किया. सर्जरी के बाद प्राप्तकर्ता की दोनों किडनियां अच्छी तरह से काम कर रही हैं. महिला की हालत में काफी सुधार हुआ है.
अंगों की मांग और पूर्ति के बीच अंतर होगा कम
डॉ. कृष्णा ने बताया कि ये अपनी तरह की इकलौती सर्जरी है. एक ब्रेन डेड डोनर की किडनी आमतौर पर दो मरीजों को दी जाती है. उन्होंने कहा कि हालांकि ऐसे बुजुर्ग दाताओं में किडनी की कार्यप्रणाली पहले से ही खराब होती है. इसलिए जिस मरीज को किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, उसे एक किडनी देने से उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है.
इसको देखते हुए दोनों किडनी किसी एक मरीज लगाई गई. उन्होंने बताया कि देश में अंगों की कमी के बीच सीमित संसाधनों का इस्तेमाल हमें और मौका देती है. उन्होंने बताया कि इस तरह के ऑपरेशन के जरिए अंगों की मांग और पूर्ति के बीच के बड़े अंतर को कम किया जा सकता है. भारत में आम तौर पर उम्रदराज मरीजों के अंगों को नाकार दिया जाता था, लेकिन इस मामले में उनका इस्तेमाल किया गया.