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CAR-T थेरेपी: जड़ से खत्म होगा कैंसर! कोरिया ने निकाला रामबाण इलाज

दक्षिण कोरिया में इस जादुई एंटी कैंसर ड्रग CAR-T का पहला क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया गया है. कोरिया एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (KAIST) ने क्लीनिकल ट्रायल के लिए CAR-T थेरेपी की इस टेक्नोलॉजी को क्यूरोसेल (Curocell) को ट्रांसफर करने की घोषणा की है। जहां इसके फेज-1 और फेज-2 ट्रायल्स हो रहे हैं.

CAR-T थेरेपी CAR-T थेरेपी
हाइलाइट्स
  • इस थेरेपी में कैंसर मरीज के शरीर से कार-टी सेल निकाला जाता है

  • इस थेरेपी के क्लीनिकल ट्रायल में मरीजों पर इसके सकारात्मक नतीजे निकले हैं

  • CAR-T सेल थेरेपी एक जीवनदायिनी के रूप में सामने आ सकती है

दुनिया की सबसे घातक बीमारियों की जब बात होती है तो हमारे ज़ेहन में कैंसर का नाम सबसे पहले आता है. लेकिन अगर हम कहें कि इसका उपचार भी संभव है? जी हां, कैंसर के उपचार के लिए हमने एक ऐसे तकनीक खोज ली है जिससे इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है. ‘काइमरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल’ या ‘ CAR-T’ थेरेपी एक ऐसी थेरेपी है जो एक रामबाण के तौर पर सामने आई है.

आपको बता दें दक्षिण कोरिया में इस जादुई ड्रग का पहला क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया गया है. हाल ही में कोरिया एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (KAIST) ने क्लीनिकल ट्रायल के लिए CAR-T थेरेपी की इस टेक्नोलॉजी को क्यूरोसेल (Curocell) को ट्रांसफर करने की घोषणा की। जहां इसके फेज-1 और फेज-2 ट्रायल्स हो रहे हैं.

क्लीनिकल ट्रायल में आए हैं सकारात्मक परिणाम 

बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर किम चान-ह्युक के नेतृत्व में टीम ने ल्यूकेमिया और लिम्फोमा वाले चूहों के मॉडल पर इस थेरेपी का परीक्षण किया है. जिसमें इसके काफी सकारात्मक नतीजे सामने आये हैं. KAIST के अनुसार, क्यूरोसेल ने इस थेरेपी के फेज-1 क्लीनिकल ट्रायल में 10 मरीजों पर परीक्षण किया है। वहीं, फेज-2 क्लीनिकल ट्रायल अगले साल शुरू किया जाएगा, जिसमें 70 मरीजों पर इसके प्रभाव को परखा जाएगा।

Source: KAIST
Photo: KAIST

CAR-T थेरेपी कैसे काम करती है?

दरअसल, CAR-T सेल थेरेपी में T कोशिकाओं में सीएआर जीन (CAR-gene) जेनरेट करके कैंसर वाली सेल को खत्म करती हैं. कैंसर के इलाज के दौरान शरीर की इम्यून कोशिकाओं (टी-लिम्फोसाइट्स) को मॉडिफाई किया जाता है और फिर ये कैंसर सेल (Tissues) को ढूंढकर खत्म करती हैं.

अब अगर इसे आसान शब्दों में समझें, तो इस थेरेपी में कैंसर मरीज के शरीर से कार-टी सेल निकाला जाता है. इसके बाद मेडिकल लैब में उनकी जीन एडिटिंग होती है. इसमें इस कार-टी सेल में कैंसर को पहचानने व उसे नष्ट करने की क्षमता विकसित की जाती है. इसके बाद इस डोज को रोगी के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है और ये सेल शरीर के अंदर और ग्रो करती हैं. यह एक लिविंग ड्रग होता है जो चुन-चुन कर कैंसर सेल्स को खत्म करती हैं. 

CAR-T थेरेपी होगा बड़ा मील का पत्थर साबित
 
दुनियाभर में इस थेरेपी के क्लीनिकल ट्रायल में मरीजों पर इसके सकारात्मक नतीजे निकले हैं, खासतौर से उन मरीजों पर जो गंभीर रूप से खून के कैंसर से पीड़ित हैं। इसको लेकर केएआईएसटी में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्चर ली योंग-हो ने इसे चिकित्सा क्षेत्र में बड़ा मील का पत्थर बताया है. वे कहते हैं, “हमें उम्मीद है कि यह लिम्फोमा के रोगियों के लिए एक आवश्यक उपचार के रूप में उभरेगा. यह मौजूदा उपचारों से अलग होगा. सीएआर-टी थेरेपी कैंसर के क्षेत्र में एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा।”

दुनियाभर में बढ़ रहे हैं कैंसर के मरीज 

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) के मुताबिक साल 2020 में दुनियाभर में कैंसर के करीब 1.93 करोड़ मामले सामने आए, जबकि एक करोड़ लोगों की मौत हुई. पांच में से एक व्यक्ति को पूरे जीवन काल में कैंसर होने का अनुमान है। वहीं अगर भारत की बात करें, तो ICMR द्वारा पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले पांच सालों में कैंसर के मामलों की संख्या में 12 फीसदी की बढ़त होगी. अब अगर हम अनुमान लेकर चलें तो साल 2025-26 तक भारत कैंसर के मरीजों की संख्या लगभग 15 लाख से अधिक पहुंच जाएगी.ऐसे में CAR-T सेल थेरेपी एक जीवनदायिनी के रूप में सामने आ सकती है.