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हवन से होगा बैक्टीरिया का इलाज! अजमेर मेडिकल कॉलेज की अनूठी पहल को मिला पेटेंट, मिली लाखों की रिसर्च ग्रांट

यह नया उपचार बिल्कुल पारंपरिक लेकिन वैज्ञानिक आधार पर आधारित है. शोध के अनुसार, हवन में प्रयोग की जाने वाली विशेष जड़ी-बूटियां और प्राकृतिक सामग्री जब अग्नि में आहुत की जाती हैं, तो उससे उठने वाला धुआं वातावरण को कीटाणु रहित करने के साथ-साथ बीमारियों के कारक जीवाणुओं को भी निष्क्रिय कर देता है.

हवन से होगा बैक्टीरिया का इलाज हवन से होगा बैक्टीरिया का इलाज

चिकित्सा के क्षेत्र में एक अनोखी और परंपरागत भारतीय विधा को आधुनिक विज्ञान से जोड़ते हुए अजमेर मेडिकल कॉलेज ने एक नई पहल की है. जेएलएन मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. विजयलता रस्तोगी ने वर्षों की कड़ी मेहनत और शोध के बाद यह साबित किया है कि हवन से निकलने वाला धुआं जीवाणु जनित बीमारियों (बैक्टीरियल इंफेक्शन्स) के उपचार में प्रभावी हो सकता है. इस अभिनव शोध को पेटेंट भी मिल चुका है और इसके विस्तृत अध्ययन के लिए सरकार की ओर से लाखों रुपये की रिसर्च ग्रांट भी स्वीकृत की गई है.

क्या है यह नई उपचार पद्धति?
यह नया उपचार बिल्कुल पारंपरिक लेकिन वैज्ञानिक आधार पर आधारित है. शोध के अनुसार, हवन में प्रयोग की जाने वाली विशेष जड़ी-बूटियां और प्राकृतिक सामग्री जब अग्नि में आहुत की जाती हैं, तो उससे उठने वाला धुआं वातावरण को कीटाणु रहित करने के साथ-साथ बीमारियों के कारक जीवाणुओं को भी निष्क्रिय कर देता है.

डॉ. विजयलता रस्तोगी ने अपने रिसर्च में यह पाया कि हवन से उत्पन्न धुएं में जीवाणु-रोधी (antibacterial) गुण होते हैं, जो सांस के जरिए शरीर में जाकर रोगाणुओं को नष्ट करने में मदद करते हैं. इस उपचार के तहत, मरीज को एक विशेष रूप से डिजाइन किए गए कक्ष में रखा जाएगा, जहां पर वैज्ञानिक ढंग से हवन किया जाएगा. इस दौरान उत्पन्न होने वाला धुआं पूरे कक्ष में फैल जाएगा और रोगी उसे सांस के माध्यम से ग्रहण करेगा.

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वैज्ञानिकता के साथ परंपरा का संगम
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अनिल सामरिया ने बताया कि यह शोध विज्ञान और भारतीय परंपराओं के अद्भुत संगम का उदाहरण है. उन्होंने कहा, "हवन को आमतौर पर धार्मिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया माना जाता रहा है, लेकिन डॉ. विजयलता रस्तोगी के शोध ने इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रमाणित किया है. यह हमारे देश की प्राचीन विधाओं को पुनः स्थापित करने का प्रयास है, जिसे अब चिकित्सा क्षेत्र में भी अपनाया जा सकेगा."

क्या कहता है पेटेंट और ग्रांट?
इस तकनीक को पेटेंट मिलने का अर्थ है कि अब यह पद्धति कानूनी रूप से अजमेर मेडिकल कॉलेज के नाम दर्ज हो गई है और बिना कॉलेज की अनुमति के कोई भी इसका व्यावसायिक उपयोग नहीं कर सकता. इसके साथ ही, रिसर्च को आगे बढ़ाने और इसके प्रभावों का विस्तार से अध्ययन करने के लिए सरकार की ओर से लाखों रुपये का बजट भी स्वीकृत हुआ है.

अब मेडिकल कॉलेज की योजना है कि इस पद्धति को एक वैकल्पिक और पूरक चिकित्सा प्रणाली के रूप में विकसित किया जाए. आने वाले समय में इस तकनीक को अन्य शासकीय और निजी अस्पतालों में भी लागू करने की तैयारी की जा रही है. साथ ही, इस पर विस्तृत क्लिनिकल ट्रायल्स किए जाएंगे ताकि इसके वैज्ञानिक परिणामों को और अधिक मजबूती दी जा सके.

अजमेर मेडिकल कॉलेज की यह पहल न केवल चिकित्सा क्षेत्र में एक नया आयाम जोड़ती है, बल्कि यह भारतीय परंपराओं की वैज्ञानिकता को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है. 

(चंद्रशेखर शर्मा)