वित्त मंत्री ने हाल ही में बजट 2023 पेश किया और इसके बाद से लगातार इस पर चर्चा हो रही है. इस बार बजट के पिटारे से मिडिल क्लास के लिए राहत की खबर आई, क्योंकि लंबे समय बाद टैक्स स्लैब में बदलाव से सर्विस क्लास खुश है. हेल्थ सेक्टर के लिए भी इस बार राहत की खबर रही.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में हेल्थ सेक्टर पर विशेष जोर दिया है. फेलिक्स अस्पताल के चेयरमैन डॉ. डीके गुप्ता का कहना है कि इस बजट से हेल्थ सेक्टर में कई नए काम शुरु होंगे.
सिकल सेल एनीमिया का करना है खात्मा
हेल्थ से जुड़ी बड़ी घोषणाओं के बारे में बात करें तो सरकार साल 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए मिशन तैयार करेगी. प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में 40 की उम्र तक के 7 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जाएगी. सरकार इस बीमारी (एनीमिया) को खत्म करने को लेकर काफी अलर्ट मोड में है.
डॉक्टर डीके गुप्ता बताते हैं कि नए बजट में हेल्थ सेक्टर में रिसर्च को बेहद तवज्जो दी गई है. फार्मास्यूटिकल्स में अनुसंधान के लिए नए कार्यक्रम तैयार किए जाएंगे. रिसर्च में निवेश के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा. सार्वजनिक और निजी चिकित्सा संस्थानों द्वारा अनुसंधान के लिए आईसीएमआर की चुनिंदा प्रयोगशालाओं में सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी.
पहले से बढ़ा है हेल्थ सेक्टर का बजट
आंकड़ों के मुताबिक केंद्रीय बजट 2022-23 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को 86,200 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था. वित्त वर्ष 2020-21 में 73,932 करोड़ रुपये की तुलना में यह लगभग 16.5 प्रतिशत की वृद्धि थी. आने वाले समय में स्वास्थ्य प्रदाताओं और स्वास्थ्य सुविधाओं की डिजिटल रजिस्ट्रियां, यूनिक स्वास्थ्य पहचान और स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुंच शामिल होगी.
वहीं, डॉक्टर सुधीर पी श्रीवास्तव का कहना है कि हेल्थकेयर एक ऐसा सेक्टर है, जिसमें तकनीक लगातार बदलती रहती है. रोज नए प्रॉडक्ट सामने आते रहते हैं यानी इस सेक्टर से जुड़े लोगों का स्किल्ड होना बेहद जरूरी है. हेल्थकेयर की ट्रेनिंग में कंपनियां अपना खर्च बढ़ाएं. इंडस्ट्री इस पर प्रोत्साहन देने की मांग कर रही है. हेल्थ सेक्टर के उपकरण, खास तौर पर भविष्य की चिकित्सा प्रौद्योगिकियों के लिए कुशल जनशक्ति की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ा चैलेंज है.
शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर जोर
डाक्टर्स का मानना है कि बजट देश में मेंटल हेल्थ को मजबूत करने, रिसर्च को बढ़ाने, आम जन तक उत्तम स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने में मील का पत्थर साबित होगा. मौजूदा वक्त में महामारियों से निपटने के लिए उच्च स्तरीय देखभाल अस्पतालों की आवश्यकता है. स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत करने, नई तकनीकों का विस्तार करने, अनुसंधान पर जोर देने की आवश्यकता है ताकि इस क्षेत्र में अधिक आत्मनिर्भरता आ सके. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर फंडिंग जरूरी है ताकि देश में अगर फिर से कोरोना जैसी महामारी आए तो उससे अच्छे से निपट सकें.
हालांकि. डॉक्टर डीके गुप्ता ये मानते हैं कि देश डॉक्टरों की भारी किल्लत से जूझ रहा है. 2018 में देश में महज एक लाख 14 हज़ार एलोपैथिक डॉक्टर थे. इसी तरह नर्सों और दूसरे मेडिकल प्रोफेशनल्स की भी कमी है. हाल ही में, मेडिकल स्टूडेंट्स की सीटें बढ़ाने के लिए कुछ क़दम उठाए गए हैं. बड़े शहरों में तो अस्पताल सरकारी और प्राइवेट, दोनों सेक्टरों में हैं लेकिन, मझोले और छोटे शहरों में मुश्किल आती है. वहां प्राइवेट सेक्टर को अस्पतालों में निवेश करने के लिए लुभाना होगा. दवाओं का कच्चा माल, मेडिकल उपकरण, ये सब पूरी तरह देश में ही बनें, इसके लिए निवेश चाहिए.