Pancreatic Cancer
Pancreatic Cancer हर साल पैंक्रिएटिक कैंसर के हजारों मामले सामने आते हैं. ब्रिटेन में 10 हजार लोग हर साल इससे ग्रसित होते हैं. उन लोगों में से ज्यादातर लोग वो होते हैं जिनको इस बीमारी का देर से पता चलता है और फिर ट्रीटमेंट में देरी हो जाती है. देर से पता चलने के कारण कुल 10% से कम लोग ही ऐसे होते हैं जो ट्रीटमेंट के बाद भी केवल पांच साल तक जीवित रहते हैं. दरअसल, ये कैंसर एक साइलेंट बीमारी है. कई लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं नजर आते, या फिर जब तक नजर आते है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. लेकिन अब रिसर्च में सामने आया है कि वजन कम होना और बढ़ा हुआ ब्लड शुगर लेवल पैंक्रिएटिक कैंसर का एक लक्षण है. इन लक्षणों की मदद से पहले ही कैंसर का पता लगाया जा सकता है.
सरे और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने मिलकर की है स्टडी
रिसर्च के मुताबिक, अगर हम यह बेहतर ढंग से समझ सकें कि पैंक्रिएटिक कैंसर से ग्रसित होने से पहले ये परिवर्तन कैसे और कब होते हैं, तो हम इस बीमारी का पता लगा सकते हैं. इसकी मदद से भविष्य में इस घातक बीमारी से प्रभावित कुछ लोगों के जीवन को बचाया जा सकता है. बता दें, ये स्टडी PLOS ONE में प्रकाशित हुई है. जिसे सरे यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर किया है.
10 लाख लोगों का डेटाबेस तैयार किया गया
बताते चलें कि इस शोध को करने के लिए, इंग्लैंड में 10 लाख से ज्यादा लोगों के एक बड़े डेटासेट का उपयोग किया गया. स्टडी के लिए पैंक्रिएटिक कैंसर के होने के बाद तीन विशेषताओं के बारे में जानकारी निकाली और जांच की कि वे समय के साथ लोगों के लिए कैसे बदलती हैं. इसमें लगभग 9,000 लोगों के बॉडी मास इंडेक्स और एचबीए 1 सी की तुलना लगभग 35,000 लोगों के समूह के साथ की, जिन्हें यह बीमारी नहीं थी. इसमें पाया गया कि पैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित लोगों में वजन कम होना आम है. और यह बीमारी से ग्रसित होने से दो साल पहले ही शुरू हो गया था.
इस बीमारी का नहीं है कोई परमानेंट इलाज
दरअसल, अभी तक भी कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका परमानेंट इलाज नहीं निकाला जा सका है. हालांकि, समय रहते पता चल जाए तो बीमारी का इलाज किया जा सकता है. पैंक्रिएटिक कैंसर पेट के निचले हिस्से (अग्न्याशय) के पीछे वाले अंग में होता है. इसके बारे में पता करना काफी मुश्किल हो जाता है. शुरुआत में बहुत कम ऐसा होता है कि इसके बारे में पता लग जाता है. इसे साइलेंट कैंसर के नाम से भी जानते हैं.