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Blood Sugar Monitor: अब शुगर जांच के लिए नहीं पड़ेगी ब्लड सैंपल देने की जरूरत...सांस से हो जाएगी जांच

डायबिटीज का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है और खून में ग्लूकोज के लेवल को मापा जाता है. हालांकि, आईआईटी मंडी की टीम ने एक नई डिवाइस तैयार की है, जिसकी मदद से डायबिटीज टेस्ट के लिए खून का सैंपल देने की जरूरत नहीं पड़ेगी, सांस से ही इसकी जांच हो जाएगी.

Sugar Test Sugar Test
हाइलाइट्स
  • आईआईटी मंडी की टीम ने तैयार किया अनोखा डिवाइस

  • मोबाइल ऐप से जोड़ा गया है यह डिवाइस

अपने देश में शुगर यानी मधुमेह (Diabetes) की जांच करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे अच्छी डिवाइस ग्लूकोमीटर (Glucometer) मानी जाती है. इसके जरिए खून के सैंपल से चंद सेकेंड में शुगर की जांच हो जाती है. आने वाले समय में शुगर की जांच के लिए अब खून के सैंपल की भी जरूरत नहीं होगी. हिमाचल प्रदेश में स्थित आईआईटी मंडी (IIT Mandi) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी डिवाइस तैयार की है जिसमें गुब्बारे में सांस भरकर शुगर की जांच संभव हो सकेगी. अभी तक इस डिवाइस से लिए गए सैंपल के बेहतर परिणाम सामने आए हैं. इस डिवाइस का नाम नॉन इनवेसिव ग्लूकोमीटर (non invasive glucometer) है.

 कैसे करता है काम?
शोधकर्ताओं के अनुसार व्यक्ति को शरीर में शुगर होने का उस समय पता चलता है, जब वह अपने खून की जांच करवाता है. लेकिन इस डिवाइस के माध्यम से व्यक्ति बिना खून की जांच से अपनी शुगर के बारे में पता कर सकता है. शोधकर्ताओं की इस टीम में सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. ऋतु खोसला, शोध प्रमुख डॉ.वरुण के साथ रितिक शर्मा, यशवंत राणा, स्वाति शर्मा, वेदांत रस्तोगी, शिवानी शर्मा और छात्र-छात्राएं भी शामिल हैं.

इस डिवाइस में मल्टी सेंसर लगाए गए हैं जो खून में शुगर का पता लगाने में सक्षम है. डिवाइस में ब्लड प्रेशर, ब्लड ऑक्सीजन लेवल, लिंग और नाम जैसी जानकारी डालनी होती है जिसे मोबाइल ऐप से जोड़ा गया है. इसके बाद सेंसर की मदद से यह डिवाइस व्यक्ति की शुगर की पहचान करता है. साथ ही खून में शुगर की मात्रा कितनी है, इसके बारे में भी बताता है. 

सामने आए बेहतर परिणाम
ऋतु खोसला ने बताया कि हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में जहां मेडिकल सुविधाओं का अभाव है, वहां पर यह डिवाइस कारगर साबित हो सकती है. लेकिन इसे किसी विशेषज्ञ के परामर्श पर नहीं बनाया गया है. फिलहाल यह डिवाइस बेहतर रिजल्ट दे रही है.इस डिवाइस की सफलता को जांचने के लिए एम्स बिलासपुर के सहयोग से 492 रोगियों के सांस के सैंपल लिए गए थे. जिसमें इस डिवाइस के बेहतर परिणाम सामने आए हैं.

गलती की कितनी संभावना
सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट ऋतु खोसला का दावा है कि इस डिवाइस के परिणाम में मात्र एक प्रतिशत गलती होने की गुंजाइश है जबकि ग्लूकोमीटर के सैंपल में परिणाम गलत होने की संभावना 5 प्रतिशत है. इस डिवाइस के माध्यम से अभी तक 560 लोगों के सैंपल लिए जा चुके हैं. उन्होंने बताया कि मल्टी सेंसर होने के नाते यह डिवाइस 16 हजार रुपए तक उपलब्ध हो सकेगी जिससे आने वाले समय में सभी लोगों को इसका फायदा मिलेगा.

लगाए गए हैं सेंसर
इस डिवाइस में 8 से 10 सेंसर इस्तेमाल किए गए हैं, जो बेहतर रिजल्ट देने में सक्षम हैं. इस डिवाइस के भविष्य में और बेहतर परिणामों के लिए वे और डाटा एकत्रित कर रहें हैं. इसके साथ ही इस डिवाइस को और छोटा बनाने का प्रयास किया जा रहा है. एम्स बिलासपुर (AIIMS Bilaspur) के सहयोग से अभी और सैंपल एकत्रित किए जा रहे हैं जिसमें अन्य घातक बीमारियों जैसे हार्ट अटैक का पूर्वानुमान लगाने के लिए इस डिवाइस में और सेंसर भी जोड़े जा रहे हैं. इस पर अभी शोध चल रहा है.अगर वह सेंसर इस डिवाइस में बेहतर रिजल्ट देने में सक्षम होते हैं तो हार्ट अटैक का भी पता पहले ही चल जाएगा.

(धरम वीर की रिपोर्ट)