Irregular sleep cycle
Irregular sleep cycle कभी समय पर तो कभी देर रात...अगर आपका भी सोने का पैटर्न हर दिन बदलता रहता है तो ये आपके फेफड़ों के लिए ठीक नहीं है. हाल ही में हुई एक स्टडी में दावा किया गया है कि नींद के अनियमित पैटर्न से फेफड़ों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है.
नेचर कम्युनिकेशंस पब्लिश हुई है रिसर्च
इस अध्ययन के मुताबिक असामान्य नींद का पैटर्न शरीर की बायलॉजिकल क्लॉक को बाधित करता है जोकि फेफड़ों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. ये रिसर्च 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुई है. शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि कैसे बायलॉजिकल क्लॉक मॉलिक्यूल (आरईवी-ईआरबीए) फेफड़ों को प्रभावित करने में योगदान देता है. जो लोग रोजाना 11 घंटे से ज्यादा सोते हैं या चार घंटे से कम नींद लेते हैं, उनमें पल्मोनरी फिब्रोसिस होने का खतरा दो से तीन गुना ज्यादा होता है.
पल्मोनरी फाइब्रोसिस की बढ़ जाती है आशंका
पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक फेफड़ों की बीमारी है जो फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान या निशान के कारण होती है. इससे सांस लेने में कठिनाई होती है. बेशक दवाएं पल्मोनरी फाइब्रोसिस के लक्षण को कम कर देती हैं लेकिन लंग डैमेज को कोई भी दवा ठीक नहीं कर सकती है. अध्ययन के लेखक बताते हैं कि सर्कैडियन रिदम प्रोटीन, आरईवी-ईआरबीए की कमी, कोलेजन और लाइसिल ऑक्सीडेज के प्रोडक्शन को बढ़ाकर चूहों में फेफड़े के निशान (पल्मोनरी फाइब्रोसिस) में योगदान देता है. इससे फेफड़े कठोर हो जाते हैं.
चूहों पर की गई रिसर्च
पल्मोनरी फाइब्रोसिस रोगियों के फेफड़ों के नमूनों में आरईवी-ईआरबीए का स्तर कम और कोलेजन और लाइसिल ऑक्सीडेज का लेवल ज्यादा पाया गया. आरईवी-ईआरबीए का लेवल आम तौर पर पूरे दिन बढ़ता घटता रहता है. दोपहर में ये सबसे हाई लेवल पर होता है और मिड नाइट में सबसे निम्न स्तर पर. लेकिन पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित चूहों में रात के समय लाइसिल ऑक्सीडेज और कोलेजन प्रोटीन ज्यादा था.
ऐसा संभवत: रात में काम करने की वजह से हुआ हो. वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में पाया कि रात में आरईवी-ईआरबीए सक्रियण से उत्पन्न फेफड़े के फाइब्रोसिस के खिलाफ कम सुरक्षा होती है. चूहों पर किए गए शोध में पता चला है कि जैविक घड़ी में बदलाव होने से फेफड़ों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है.