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Humanity: एंबुलेंस नहीं आई तो बस बनी अस्पताल... ड्राइवर-कंडक्टर की सूझबूझ से बची जच्चा-बच्चा की जान

इस घटना ने जहां बस स्टाफ की जिम्मेदारी को सराहा, वहीं स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही भी सामने आई.

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मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए पन्ना-भोपाल यात्री बस के ड्राइवर सिद्दीक राइन और कंडक्टर आशीष पाल ने अपनी सूझबूझ और तत्परता से एक गर्भवती महिला और उसके नवजात शिशु की जान बचा ली. इस घटना ने जहां बस स्टाफ की जिम्मेदारी को सराहा, वहीं स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही भी सामने आई.

एम्बुलेंस नहीं आई, बस बनी अस्पताल
जिले के सिमरिया गांव की रहने वाली निशा कुशवाहा को प्रसव पीड़ा होने लगी. परिजनों ने पूरी रात 108 एम्बुलेंस को फोन किया, लेकिन सुबह तक कोई एम्बुलेंस नहीं पहुंची. मजबूरी में परिवार ने पन्ना-भोपाल यात्री बस का सहारा लिया.

जैसे ही महिला बस में चढ़ी, उसकी प्रसव पीड़ा तेज हो गई. यात्रियों ने सलाह दी कि उसे पास के अमानगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया जाए, लेकिन महिला ने बताया कि डॉक्टरों ने जिला अस्पताल जाने की सलाह दी है. इसके बाद बस ड्राइवर और यात्रियों ने फैसला लिया कि बस को सीधे जिला अस्पताल ले जाया जाएगा.

बस में ही शुरू हुआ प्रसव, चिंता बढ़ी
रास्ते में अचानक स्थिति गंभीर हो गई, क्योंकि महिला के बच्चे का सिर बाहर आ चुका था. यात्रियों की चिंता बढ़ गई, लेकिन ड्राइवर सिद्दीक राइन और कंडक्टर आशीष पाल ने घबराए बिना समझदारी दिखाई. उन्होंने तुरंत बस की स्पीड बढ़ाकर तेजी से पन्ना जिला अस्पताल की ओर गाड़ी दौड़ाई.

अस्पताल के गेट पर पहुंचते ही बस स्टाफ ने सूचना दी. तुरंत अस्पताल की दाइयां बस में आईं और वहीं पर सुरक्षित प्रसव कराया. इसके बाद मां और बच्ची को अस्पताल के अंदर शिफ्ट किया गया.

दोनों स्वस्थ, ड्राइवर-कंडक्टर की सराहना
डॉक्टरों की टीम लगातार मां और बच्ची पर नजर बनाए हुए है. फिलहाल, दोनों की स्थिति पूरी तरह से स्वस्थ बताई जा रही है. पीड़िता निशा कुशवाहा ने कहा, “हमने एम्बुलेंस को कई बार फोन किया, लेकिन कभी कहते उपलब्ध नहीं है, कभी कहते भेज रहे हैं. जब एम्बुलेंस नहीं आई, तो बस से जाना पड़ा. सफर यादगार और डरावना था, लेकिन राहत की बात है कि मेरी बेटी सुरक्षित है.” इस घटना के बाद बस चालक और कंडक्टर की सूझबूझ की पूरे जिले में सराहना हो रही है.

(दिलीप शर्मा की रिपोर्ट)

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