scorecardresearch

Cafe Positive: इस अनोखे कैफे को चलाते हैं HIV+ युवा, जानिए कैसे एक समाज सेवी ने बदल दीं सैकड़ों जिंदगियां

भारत में कल्लोल घोष HIV+ बच्चों के कल्याण की दिशा में काम कर रहे हैं. उनका संगठन इन बच्चों को शिक्षा, आश्रय और रोजगार प्रदान करता है, और उन्होंने कैफे पॉजिटिव की शुरुआत की जिसे एचआईवी पॉजिटिव युवा चला रहे हैं.

Cafe Positive inspiring story Cafe Positive inspiring story
हाइलाइट्स
  • सालों से कर रहे हैं समाज सेवा 

  • HIV+ बच्चों के लिए शुरु किया आनंदघर

भारत में National AIDS Control Organization की साल 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एचआईवी से पीड़ित लोगों की संख्या लगभग 24 लाख होने का अनुमान है. दक्षिणी राज्यों में PLHIV (People Living With HIV/AIDS) की संख्या सबसे ज्यादा है. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक टॉप तीन राज्य हैं. भारत में 2021 में सालाना नए संक्रमण 62.97 हजार होने का अनुमान है. ये आंकड़े चिंता का विषय हैं लेकिन इसमें अच्छी बात यह है कि अब हमारे देश में एड्स और एचआईवी पर बात होने लगी है. सिर्फ बात ही नहीं बल्कि बहुत सी ऐसी पहलें हो रही हैं जो HIV+ लोगों को सम्मान से जीने की राह दिखा रही हैं. 

ऐसी ही एक पहल के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं. यह कहानी है एक सोशल वर्कर, एजुकेटर और चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट, कल्लोल घोष की, जिन्होंने कोलकाता में Cafe Positive की शुरुआत करके HIV+ लोगों को रोजगार के साथ-साथ पहचान भी दी है. साल 2018 में शुरु हुए इस कैफे को सिर्फ HIV+ लोग चलाते हैं. 'कैफे पॉजिटिव' का उद्देश्य जागरूकता फैलाना, मिथकों, अंधविश्वासों को तोड़ना और एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए रोजगार पैदा करना है. 

सालों से कर रहे हैं समाज सेवा 
घोष ने अपने कई मीडिया इंटरव्यूज में बताया है कि वह बचपन से ही ऐसे लोगों के लिए कुछ करना चाहते थे जिन्हें समाज में सम्मान से जीने के सही मौके नहीं मिल पाते हैं. रामकृष्ण सारदा मिशन और कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, कल्लोल घोष ने 1988 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ राष्ट्रीय सेवा स्वयंसेवक के रूप में अपनी सेवाएं दीं. बाद में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के साथ कुछ परियोजनाओं पर काम किया और उस दौरान उन्हें नेपाल में प्रतिनियुक्त किया गया. वह बाल कल्याण से जुड़ी गतिविधियों में रुचि रखते थे, और यूनिसेफ के साथ मिलकर एक छात्र विनिमय कार्यक्रम चलाया, जहां उन्होंने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों को पढ़ाने के लिए ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्कॉलर्स को शामिल किया.

1986 में, कल्लोल घोष ने OFFER (Organization for Friends, Energies, and Resources) की नींव रखी और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने देखा कि समाज में बहुत से बच्चों बेसहारा बच्चे हैं और उनकी की मदद के लिए उन्होंने फंड्स इकट्ठा करके 'अपनाघर' की भी शुरुआत की. इसके बाद, उन्होंने स्पेशल किड्स के लिए 'अपनाजन' की शुरुआत की. यहां पर इन स्पेशल किड्स की देखभाल की जाती है. साल 2000 में उन्हें लेकटाउन (उत्तरी कोलकाता) पुलिस से फोन आया कि सड़क पर एक नवजात शिशु मिला है. वहां जाकर देखा तो पता चला कि बच्चा सिर्फ 2 दिन का है. वह बच्चे को पास के अस्पताल में ले गएऔर पता चला कि बच्चे का जन्म उसी अस्पताल में हुआ था. कुछ टेस्ट के बाद उन्हें पता चला कि बच्चा एचआईवी पॉजिटिव है. 

HIV+ बच्चों के लिए शुरु किया आनंदघर
घोष ने इस बच्चे को अपने पास रखा और फिर एचआईवी पॉजिटिव बच्चों की परेशानियों को समझकर उन्होंन HIV+ बच्चों लिए एक घर खोला और इसका नाम 'आनंदघर' रखा जिसका अर्थ है 'खुशहाल घर.' दो महीने के बाद उन्होंने एचआईवी पॉजिटिव 2 और बच्चों को बचाया. अब उनके तीन घरों में कुल 473 बच्चे हैं. उन्होंन मीडिया को बताया कि जब उनके घर में 15-16 एचआईवी पीड़ित बच्चे थे तो उन्होंने उन्हें पढ़ाने के लिए स्कूल भेजा. स्कूल के पड़ोसियों और अभिभावकों ने आंदोलन शुरू कर दिया क्योंकि उनका मानना ​​था कि उनके बच्चों को भी एचआईवी हो सकता है और वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे एक साथ पढ़ें. 

उन्होंने कल्लोल घोष का बहिष्कार किया और उन पर हमला किया. उस दौरान मीडिया से उन्हें मदद मिली. मीडिया ने HIV पर रिपोर्टिंग की और उन्होंने ग्रामीणों को एचआईवी के बारे में प्रशिक्षित किया. आज समाज में उनके HIV+ बच्चों को भी बराबरी मिल रही है. समाज में उत्कृष्ट योगदान के कारण उन्हें 2008 में सीनियर अशोक फेलो चुना गया और उसी वर्ष इटली के राष्ट्रपति द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. 

ऐसे हुई कैफ पॉजिटिव की शुरुआत 
साल 2006 में घोष किसी काम के सिलसिले में म्यूनिख गए. उनका एक दोस्त उन्हें एक कैफे में ले गया, जहां पूरे कैफे का स्टाफ एचआईवी से पीड़ित था. यहां से उन्हे आइडिया आया कि जब उनके आनंदघर के बच्चे 18 साल के हो जाएंगे तो वह अपने शहर में भी ऐसा कुछ शुरू करेंगे. और साल 2018 में उन्होंने अपने आइडिया पर काम किया. उन्होंने आनंदघर के कुछ युवा वयस्कों के साथ 'कैफे पॉजिटिव' शुरू किया. हालांकि, शुरुआत में कोई उन्हें जगह नहीं दे रहा था. ऐसे में, उन्होंने एक गैराज में कैफे शुरू कर दिया. आज यह कैफे सफलतापूर्वक चल रहा है और इसके जरिए HIV+ लोगों को न सिर्फ रोजगार मिला है बल्कि सम्मान से जीवन जीने का अधिकार मिला है.