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National Cancer Survivors Day: कैंसर से लड़ाई और गुड पेशेंट बनने के बीच जीत ली मौत-ए-जंग, अब दूसरों को भी इससे लड़ने की दे रहे हैं हिम्मत 

National Cancer Survivors Day 2022: जून के पहले रविवार को हर साल नेशनल कैंसर सर्वाइवर डे मनाया जाता है. इस मौके पर GNT डिजिटल ने कैंसर से जंग जीत चुके रजनीश सिंह से बात की. उन्होंने अपने पूरे सफर के बारे में बताया कि उन्हें जुलाई 2021 में कैंसर होने के बारे में पता चला. जिसके बाद उन्होंने डटकर इसका सामना किया और इस जंग को जीत लिया. चलिए पढ़ते हैं उनकी कहानी...

Rajneesh Singh (Photo: Facebook) Rajneesh Singh (Photo: Facebook)
हाइलाइट्स
  • मानसिक तौर पर रहें स्ट्रॉन्ग 

  • आखिर में सब कुछ ठीक होगा….. 

National Cancer Survivors Day 2022: हम जब कैंसर का नाम सुनते हैं तो हमारे दिमाग में एक ऐसी बीमारी की तस्वीर बन जाती है जो ठीक नहीं हो सकती है. जिसमें मरीज जीने की उम्मीद छोड़ने लगता है. लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं जो इसका डटकर मुकाबला भी करते हैं और इसे हरा भी देते हैं. 58 साल से रजनीश सिंह (Rajneesh Singh) इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हुआ था जिसमें एक शख्स ने ‘गुड पेशेंट’ (The Good Patient) यानि ‘अच्छा मरीज’ होने की बात कही थी. ये शख्स कोई और नहीं बल्कि रजनीश ही थे. मार्च में कैंसर को मात देकर ठीक हुए रजनीश अब कई कैंसर के मरीजों की हिम्मत बढ़ाने का काम कर रहे हैं. और उन्हें कैंसर से लड़ने में मदद करते हैं.    

दरअसल, पिछले साल 2021 में ही उन्हें पहली बार कैंसर का पता. बीमारी से लड़ने के लिए जहां उन्होंने खुद को बखूबी संभाला वहीं अपने आसपास के लोगों को भी हिम्मत दी.

आज वर्ल्ड कैंसर डे के मौके पर GNT डिजिटल ने रजनीश सिंह से बात की. चलिए पढ़ते हैं उन्होंने ये जंग कैसे जीती-

कैंसर से जंग जीत लेने के पूरे सफर के बारे में उन्होंने हमें बताया कि उन्हें जुलाई 2021 में खुद को कैंसर होने के बारे में पता चला. रजनीश कहते हैं, “दरअसल, ये जुलाई 2021 की बात है मुझे पेट में कुछ महसूस हुआ तब मैं जनरल फिजिशियन से ही दवाई लेता रहा. लेकिन जब एक दिन स्टोन में ब्लड निकला तो उस समय लगा कि किसी स्पेशिलिस्ट से मिलें. जब चेक करवाया तब इंटेस्टाइन में ट्यूमर जैसा कुछ दिखा. और वो बढ़ रहा था. जब उन्होंने पहली बार ये शेयर किया तो शुरुआत में तो यकीन नहीं होता है किसी को भी कि हमारे साथ ये कैसे हो सकता है? क्यूोंकि आपको लगता है कि आप नॉर्मल लाइफ जी रहे हैं और सब कुछ ठीक है आपके शरीर के साथ, आपकी दिनचर्या के साथ. और फिर अचानक से कैंसर की न्यूज सुनें तो जाहिर सी बात है मुझे 1 मिनट के लिए लगा कि ये क्या हो गया? लेकिन फिर मैंने उसे 1 मिनट में जाने भी दिया. मैंने सोचा कि अब ये समय आया है तो इसे जाने देते हैं और बाद का सोचते हैं. मैंने डॉक्टर से कहा कि अब अगला कदम क्या है. तो उन्होंने कहा कि आपके सभी स्कैन और जांच हुई है. बहुत बाद में पता चला कि मुझे चौथी स्टेज का कैंसर है. जो काफी सीरियस है. उस समय तक मैंने खुद को संभालकर रखा. डॉक्टर्स ने कहा कि हमें सर्जरी करनी है मैंने कहा ठीक है चलते हैं.”

मानसिक तौर पर रहें स्ट्रॉन्ग 

दरअसल, किसी भी बिमारी से लड़ने के लिए मानसिक तौर पर हिम्मत बनाए रखना सबसे जरूरी होता है. रजनीश इसे लेकर कहते हैं, “मानसिक तौर पर आप कितने स्ट्रॉन्ग हैं ये सबसे ज्यादा जरूरी है. आप मानसिक तौर पर फिट होने चाहिए और किसी भी परिस्थिति से लिए तैयार होने चाहिए. ये सबसे जरूरी फैक्टर होता है."

रजनीश आगे कहते हैं, “ये एक तरह का एक्सीडेंट जैसा होता है. आपको पता भी नहीं होता है और अचानक हो जाता है. तो उसमें बहुत जरूरी है कि आप खुद को मानसिक तौर पर स्ट्रॉन्ग रखें. मेरे पूरे सफर में सबसे बड़ा फैक्टर यही रहा कि मैंने इस दौरान खुद को काफी स्ट्रॉन्ग रखा  और पूरी कोशिश की कि इसके बारे में ज्यादा सोचूं नहीं. मेरी सर्जरी जब हुई उसके बाद मेरे जैसे ही टांके कटे में काम में जुट गया. और खुद को पूरी तरह से व्यस्त कर लिया.  मुझे था कि मैं काम में जुट जाऊंगा तो मेरा ध्यान इस चीज़ से थोड़ा अलग हट जायेगा. इससे दो फायदे होते हैं कि आपके जो आसपास लोग होते हैं उन्हें आप संदेश देते हैं कि सबकुछ कंट्रोल में हैं और फिर आपके सपोर्ट सिस्टम भी और ज्यादा स्ट्रॉन्ग हो जाते हैं. कहने का मतलब है कि अगर आप ढीले पड़े तो आपके आसपास के लोग जो आपका सपोर्ट सिस्टम हैं वो भी ढीले पड़ जायेंगे. मेरे लिए ये कहानी मेरी थी.”

Rajneesh Singh (Photo: The Good Patient)

लाइफ इज गुड… 

वे कहते हैं, "मेरे परिवार में जितने भी लोग हैं और एक बड़ा समूह दोस्तों का था सब हैरान था जानकर कि इस इंसान के साथ ऐसा क्यों हुआ है? और कैसे हो गया? मैं असल जिंदगी में काफी हंसमुख हूं और सोशल मीडिया पर भी एक्टिव रहता हूं. इस दौरान सभी लोग जो मुझसे जुड़े हुए थे सभी मेरे ठीक होने की प्रार्थना कर रहे थे. मैंने सभी को पहले ही कह दिया था कि यहां सिम्पेथी (Sympathy) या सांत्वना में नहीं चाहता हूं. मैं नहीं चाहता था कि कोई मुझे बेचारा कहे या मेरे लिए बस सिम्पथी रखे कि मुझे कैंसर हुआ है. मेरा हमेशा से रवैया था कि सब ठीक हो जायेगा. लाइफ इज गुड."

अब लोगों को भी करता हूं मोटिवेट 

गुड पेशेंट के बारे में रजनीश ने GNT डिजिटल को बताया,  “दरअसल, मैं कभी हॉस्पिटल नहीं गया था. शुरू से ही मेरी बकेट लिस्ट (Bucket List) में था कि मैं कम से कम 15 दिन अस्पताल में रहूं और बड़ी तबीयत से वहां आराम करूं, अच्छा अच्छा खाना खाऊं और लोग मेरी देखभाल करें. तो जब ये पल आया कि मुझे ऑपरेशन थिएटर जाना है तो मैंने सोचा कि Let Me be the Good Patient. उस घड़ी मैंने सोचा कि डॉक्टर्स जो कहेंगे मैं सिंसेयरली फॉलो करूंगा. जब भी नर्स या डॉक्टर्स आते थे तो मैं हंसता रहता था. ताकि पॉजिटिविटी (Positivity) बनी रहे. गुड पेशेंट केवल एक कैंसर की जर्नी (Cancer Journey) नहीं है बल्कि एक लाइफ की स्टोरी है कि आप अपनी जिंदगी को कैसे जीते हैं. और कुछ भी दुर्घटना होने पर आपको उससे कैसे डील करना है.”

रजनीश बताते हैं कि अब वे दूसरे लोगों को भी हिम्मत देते हैं. वे कहते हैं, “द गुड पेशेंट के वायरल हो जाने के बाद से ही मेरे पास कई कॉल्स और लोग आते हैं कि हम किसे पॉजिटिव रहें या कैसे इससे जीतें. करीब हर हफ्ते मैं कम से कम 1 या 2 कैंसर मरीजों से बात करता हूं और उन्हें मोटीवेट करता हूं. तो मुझे लगता है कि ये द गुड पेशेंट अब मेरे लिए एक मिशन की तरह बन गया है कि मैं किस तरह से लोगों इसे एक बड़े लेवल पर ले जाऊं और कैंसर पेशेंट को मोटीवेट कर सकूं.”

कैंसर से ठीक होने के बाद अब और भी एक्टिव हो गया हूं.. 

रजनीश कहते हैं कि वे कई ट्रीटमेंट और सर्जरी के बाद शारीरिक तौर पर जल्दी थक जाते हैं. लेकिन ये केवल शारीरिक तौर पर बदलाव आया है. जबकि कैंसर के बाद वे अब और भी ज्यादा अवेयर हो गए हैं. वे अब लोगों से ज्यादा मिल रहे हैं. साथ ही उनमें अब और भी एनर्जी आ गई है. वे कहते हैं कि मार्च से वे जबसे बाहर निकले हैं तबसे वे मानसिक (Mentally) तौर पर और भी ज्यादा एक्टिव हो गए हैं. 

वे कहते हैं कि कैंसर के इस पूरे सफर में उनकी पत्नी ने उनका खूब साथ दिया. वे उनके लिए एक बूस्टर की तरह थीं. उनका भी यही कहना था कि सब ठीक हो जाएगा.

आखिर में सब कुछ ठीक होगा….. 

रजनीश कहते हैं, “दरअसल, कैंसर एक तरह की पूरी जर्नी (Cancer is a Journey) है. ये एक सफर है जिससे बहुत लोग जुड़े होते हैं. इस दौरान ध्यान रखें कि जितने भी प्रिकॉशन (Precautions) डॉक्टर्स ने बताए हैं उनका ख्याल रखें, लापरवाही न करें और हिम्मत न हारें. सबसे अच्छी बात है कि अब हमारी मेडिकल की दुनिया काफी एडवांस हो गई हैं. अगर आप आंकड़ें देखेंगे तो पाएंगे कि केस बढ़े हैं लेकिन उसमें भी रिकवरी के केस (Cancer Recovery Case) ज्यादा हो रहे हैं. ये बहुत अच्छी खबर है. अगर आप इसे अच्छे से हैंडल करें और डॉक्टर के हिसाब से सब करें तो आप आसानी से इससे मात दे देंगे. मेरा जब ट्रीटमेंट खत्म हुआ तो मैं अकेले ड्राइव पर निकल गया था ताकि में देख सकूं कि आखिर मुझमें क्या बदलाव आए हैं."

आखिर में रजनीश कहते हैं कि मुझे लगता है कि जितना आप सोचेंगे और दिमागी तौर पर स्ट्रॉन्ग रहेंगे तो जल्द ही ठीक हो जायेंगे. 70 प्रतिशत मामलों में यही देखने को मिलता है. बेहद कम ऐसे मामले होते हैं जो एकदम आखिर स्टेज है उनके लिए भी यही कि ये जो भी समय है उसे पूरी जियें. जो भी करना चाहते हैं वो करें. जो भी आखिरी स्टेज के लोग हैं उन्हें भी हम मोटीवेट कर सकें. मैंने कई केस देखे हैं जिसमें सबकुछ ठीक हो जाता है. बस ध्यान रखें कि सब कुछ ठीक होगा (Everything will be fine).”