Doctor Couple (Photo: Facebook/@Dr. Ravindra Kolhe & Dr. Smita Kolhe मेळघाटावरील मोहोर)
Doctor Couple (Photo: Facebook/@Dr. Ravindra Kolhe & Dr. Smita Kolhe मेळघाटावरील मोहोर) यह कहानी है डॉ. रवींद्र कोल्हे और डॉ. स्मिता कोल्हे की, जो पिछले 35 से ज्यादा सालों से महाराष्ट्र के आदिवासी गांवों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचा रहे हैं. उन्हें देशभर में एक रुपये वाले डॉक्टर कपल के तौर पर जाना जाता है क्योंकि इनकी कंसल्टेशन फीस मात्र दो रुपये और फिर फॉलो-अप फीस मात्र एक रुपये है. कोल्हे दंपत्ति ने महाराष्ट्र के अमरावती में मेलघाट क्षेत्र के सुदूर बैरागढ़ गांव के लोगों के लिए अपना जीवन समर्पित किया है.
उन्होंने इस इलाके में स्वास्थ्य को सुधारा है और साथ ही, शिशु मृत्यु दर काफी ज्यादा कम हुई है. सस्ता इलाज करने के अलावा, कोल्हे दंपत्ति ने ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें सस्टेनेबल खेती से जोड़ने में भी अहम योगदान दिया है. उनके अथक प्रयासों ने न सिर्फ बैरागढ़ में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाया है, बल्कि गरीबी, कुपोषण और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास जैसे मुद्दों पर भी काम किया है. इस डॉक्टर कपल को स्वास्थ्य क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों के विकास में योगदान के लिए 2019 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है.
डॉ. रवींद्र कोल्हे का जन्म 1960 में हुआ था. उन्होंने 1982 में महाराष्ट्र के नागपुर स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से MBBS की डिग्री पूरी की. कोल्हे दंपत्ति के काम पर लिखे गए एक रिसर्च पेपर के मुताबिक, डॉ. कोल्हे ने ग्रेजुएट होने के बाद 1984 से 1985 तक हाउस ऑफिसर के रूप में काम किया. इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के सुदूर इलाकों का दौरा किया और अमरावती जिले के एक हिस्से बैरागढ़ में पहुंचे. बैरागढ़ पहुंचने भी बहुत मुश्किल था क्योंकि अमरावती जिले की सड़कें हरिसाल में समाप्त हो जाती थीं और उसके बाद बैरागढ़ की यात्रा करने के 40 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती थी.
उन्होंने 1985 में बैरागढ़ में अपनी प्रैक्टिस शुरू की, जिसमें उन्हें मात्र दो रुपये की शुरुआती कंस्लटेशन फीस और उसके बाद सिर्फ एक रुपये में फॉलो-अप ट्रीटमेंट करना शुरू किया. उन्होंने इस क्षेत्र में अत्यधिक गरीबी और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी पर ध्यान दिया. हालांकि, यहां एक घटना के बाद उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें एमडी पोस्टग्रेजुएशन करनी चाहिए ताकि उनकी एक्सपर्टीज बढ़ जाए. दरअसल, एक व्यक्ति ने एक विस्फोट में अपना हाथ गंवा दिया और तब डॉ. कोल्हे को लगा कि सर्जिकल एक्सपर्टीज होने से वह इन लोगों की और ज्यादा मदद कर सकेंगे.
बैरागढ़ में अपनी सर्विसेज को फिर से शुरू करने से पहले एमडी की डिग्री पूरी करने के लिए नागपुर लौट आए. 1988 में, उन्होंने Prevention and Social Medicine में एमडी की डिग्री पूरी की और बैरागढ़ वापस जाने से पहले शादी करने का फैसला किया. किस्मत से उन्हें नागपुर से होम्योपैथिक डॉक्टर स्मिता मंजारे के रूप में अपनी जीवन साथी मिलीं. उनके पास कानून की डिग्री के साथ-साथ योग थेरेपी में सर्टिफिकेशन था. साथ में, इस दंपत्ति ने आदिवासी समुदाय के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने का प्रण लिया.
बैरागढ़ में डॉ. कोल्हे ने अपना ध्यान आदिवासी लोगों के मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार पर लगाया. 1990 में, यहां शिशु मृत्यु दर (IMR) प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 200 मौत थी. यहां मृत्यु दर के कई कारण थे, जिनमें गरीबी और कुपोषण शामिल थे. लेकिन बेहतर स्वास्थ्य सुधारों से वे समय के साथ IMR को प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 40 से कम मौतों तक कम करने में सफल रहे. इतना ही नहीं, अपने इस काम के लिए उन्हें आज तक जो भी प्राइज मनी या ग्रांट मिली है, उससे उन्होंने गांव में एक बेहतर सुविधाओं वाली मेडिकल फैसिलिटी बनाने पर ध्यान दिया.
अपने इस सफर में अपने गुरु का ज्ञान डॉ. कोल्हे के लिए बहुत काम आया. डॉ कोल्हे के कॉलेज में एक प्रोफेसर ने उन्हें इस तरह के इलाकों में प्रैक्टिस करने के लिए जरूरी मंत्र दिया कि गांवों में डॉक्टर के तौर पर काम करने के लिए तीन जरूरी मेडिकल स्किल्स सीखनी चाहिए:
कोल्हे कपल ने न सिर्फ सेहत बल्कि दूसरे मुद्दों पर भी काम किया. उन्होंने सस्टेनेबल कृषि पर जोर दिया. गांव में इसे सफल बनाने के लिए डॉ. रवींद्र कोल्हे ने डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ (PDKV) संस्थान, अकोला में इस तरह की खेती के बारे में पढ़ा और अपने एक दोस्त से पशु चिकित्सा विज्ञान के बारे में भी सीखा. उन्होंने 2005 में खुद से खेती शुरू की. उन्होंने सोयाबीन उगाई और अदरक, लहसुन, हल्दी और तरबूज जैसी नकदी फसलों के लिए इनोवेटिव तरीकों को अपनाया.
कोल्हे साल में दो बार युवाओं के लिए “करुणई” शिविर का आयोजन करते हैं, ताकि पर्यावरण के अनुकूल खेती की नई तकनीकों, किसानों के लिए मूल्यवान सरकारी योजनाओं और एचआईवी/एड्स सहित चिकित्सा सेवाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके. हजारों स्वयंसेवक ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से इसमें भाग लेते हैं. आज भी यह डॉक्टर कपल मेलघाट क्षेत्र के सभी गांवों में बेहतर सुविधाएं और बिजली की निर्बाध आपूर्ति लाने के लिए पूरी लगन से प्रयास कर रहे हैं. इतने सालों बाद भी वह मरीजों का इलाज 1-2 रुपये में ही कर रहे हैं.