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Sleep Apnea: क्या होता है स्लीप एपनिया... किसको है ज्यादा रिस्क.... कैसे करें बचाव

नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी की इस स्टडी में चेतावनी दी गई है कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो साल 2100 तक स्लीप एपनिया के मामलों में दोगुनी बढ़ोतरी हो सकती है.

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गर्मियों में नींद का खराब होना आम बात है, लेकिन एक नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी भविष्य में नींद से जुड़ी गंभीर बीमारी स्लीप एपनिया को और ज्यादा लोगों तक फैला सकती है. 

नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी की इस स्टडी में चेतावनी दी गई है कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो साल 2100 तक स्लीप एपनिया के मामलों में दोगुनी बढ़ोतरी हो सकती है. रिसर्च में 41 देशों के 1.16 लाख लोगों की 6.2 करोड़ रातों के नींद के डेटा का विश्लेषण किया गया, जिससे पता चला कि गर्म रातों में ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) का खतरा 45% तक बढ़ जाता है.

स्लीप एपनिया क्या है?
स्लीप एपनिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें नींद के दौरान व्यक्ति की सांसें रुक जाती हैं. यह दो कारणों से हो सकता है:

  • एयरवे ब्लॉकेज (Obstructive Sleep Apnea- OSA): गले की मांसपेशियों के अत्यधिक ढीले हो जाने से वायुमार्ग बंद हो जाता है.
  • दिमाग से सांस लेने के संकेतों में गड़बड़ी (Central Sleep Apnea- CSA): मस्तिष्क सांस से संबंधित मांसपेशियों को संकेत नहीं देता. 

जब सास रुक जाती है, तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी एक सर्वाइवल रिफ्लेक्स को एक्टिव करती है, जिससे व्यक्ति हल्का जाग जाता है और फिर से सांस लेता है. हालांकि, यह रिफलेक्स जिंदगी के लिए जरूरी है, लेकिन यह इससे नींद बार-बार खराब होती है जिससे गहरी, आरामदायक नींद नहीं हो पाती. समय के साथ यह दिल पर दबाव डाल सकता है और गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है. 

स्लीप एपनिया कितना सामान्य है?
एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 30 से 69 वर्ष की आयु के लगभग 1 अरब लोग ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से प्रभावित हैं. सेंट्रल स्लीप एपनिया कम है, लेकिन यह भी दुर्लभ नहीं है.

लक्षण क्या हैं?

  • रात में बार-बार जागना
  • सोते समय सांस रुकना (अक्सर सोने वाला नहीं, बल्कि साथ सोने वाला व्यक्ति इसे नोटिस करता है)
  • असामान्य सांस लेने के पैटर्न
  • खर्राटे लेना
  • घुटन या सांस की तकलीफ से जागना
  • दिन में थकान या नींद आना
  • सुबह सिरदर्द
  • रात को पसीना आना
  • मूड में बदलाव (उदासी या चिंता)
  • सेक्सुअल समस्याएं
  • बेचैनी

कारण क्या हैं?

  • वायुमार्ग में रुकावट
  • मस्तिष्क से सांस लेने के संकेतों में गड़बड़ी

रिस्क फैक्टर 

  • बायोलॉजिकल फैमिली पर अगर किसी को है तो 
  • हृदय संबंधी बीमारियां या हाई ब्लड प्रेशर
  • बड़े टॉन्सिल्स
  • मोटापा
  • बढ़ती उम्र
  • पुरुषों में 50 साल से पहले  ज्यादा संभावना
  • किसी भी शारीरिक आकार के व्यक्ति को हो सकता है

इससे क्या दिक्कत होगी 

  • दिन में ज्यादा नींद आना या "माइक्रो स्लीप" (कुछ सेकंड के लिए अचानक नींद आ जाना)
  • दिल की धड़कन इररेगुलर होना
  • हाई ब्लड प्रेशर
  • हार्ट फेलियर 
  • अचानक कार्डियक अरेस्ट या मृत्यु

किसे है ज्यादा खतरा?

  • जिनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) ज्यादा है
  • पुरुषों में महिलाओं की तुलना में खतरा अधिक
  • ज्यादा देर तक सोने वाले लोगों को ज्यादा असर
  • उम्र के साथ रिस्क में ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया

ऐसे करें अपना बचाव 

  • स्वस्थ वजन बनाए रखें
  • संतुलित आहार और नियमित व्यायाम करें
  • नींद के लिए अच्छा वातावरण बनाएं
  • उच्च रक्तचाप, डायबिटीज जैसी बीमारियों को नियंत्रित रखें
  • धूम्रपान और शराब से परहेज करें
  • नियमित चेकअप करवाएं

सेल्फ-केयर के सुझाव 

  • जीवनशैली में बदलाव करें- आहार और व्यायाम पर ध्यान दें.
  • इलाज की योजना का पालन करें.
  • समस्याएं होने पर डॉक्टर से बात करें.
  • नियमित फॉलो-अप करवाएं. 

इलाज की चुनौतियां
अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत, ब्राज़ील और इज़राइल जैसे कम जीडीपी वाले देशों में इस बीमारी का असर अधिक हो सकता है, क्योंकि वहां एयर कंडीशनिंग और स्लीप डिसऑर्डर के इलाज की सुविधाएं सीमित हैं.