Lung (Photo/Meta AI)
Lung (Photo/Meta AI) सर्दी में हवा में घुले जहरीले कण बच्चों के लिए सबसे खतरनाक साबित हो रहे हैं. एक स्टडी में सामने आया है कि PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कण बच्चों के फेफड़ों के सबसे निचले हिस्से में जमा हो रहे हैं, जहां से उनका साफ होना बहुत मुश्किल होता है. सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषक डॉ. मनोज कुमार के ने बताया कि साल 2019 में किए गए मेरे पीयर-रिव्यू स्टडी में पाया गया कि 8–9 साल के बच्चों में PM2.5 का 40 फीसदी हिस्सा सीधे पल्पोनरी रीजन में जमा होता है.
बच्चों के लिए PM10 से ज्यादा PM2.5 खतरनाक-
शिशुओं में भी इसके खतरनाक लेवल देखे गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक शिशुओं के फेफड़ों में पीएम2.5 के जमाव की दर 30 फीसदी है, जो पीएम10 से कहीं ज्यादा है. पीएम10 का सिर्फ 1-4 फीसदी हिस्सा ही डीप लंग तक पहुंच पाता है. रिपोर्ट के मुताबिक पीएम10 का बड़ा हिस्सा नाक या गले में ही फंस जाता है. जबकि पीएम2.5 हवा के साथ सीधे फेफड़ों के सबसे गहराई वाले हिस्से तक पहुंच जाता है.
शिशुओं से लेकर किशोरावस्था तक बच्चों में अधिक समय तक जोखिम का सामना करना पड़ता है. बच्चों ज्यादा असुरक्षित होते हैं, क्योंकि उनके फेफड़े अभी बढ़ रहे होते हैं. उनके सांस लेने के रास्ते संकरे होते हैं. बच्चे वयस्कों की तुलना में तेजी से सांस लेते हैं. पॉल्यूशन फेफड़ों के टिशू में आसानी से जमा हो जाते हैं.
डॉक्टर कुमार ने बताया कि पीएम2.5 सबसे गहराई तक पहुंचता है और सबसे अधिक समय तक बना रहता है और सबसे अधिक संवेदनशील एज ग्रुप को प्रभावित करता है.
डॉक्टर ने बताया कि स्टडी में इस्तेमाल किया गया एमपीपीडी मॉडल भारतीयों शहरों में एक जैसा जमाव पैटर्न दिखाता है. उन्होंने कहा कि हर जगह इसकी शारीरिक संरचना एक जैसी है और जोखिम भी एक जैसा है.
चेन्नई और वेल्लोर में स्टडी में क्या मिला?
ScienceDirect में प्रकाशित इस पीयर-रिव्यूड स्टडी के मुताबिक चेन्नई और वेल्लोर में शिशुओं, बच्चों और वयस्कों के फेफड़ों में जमाव की जांच की गई. जिसमें ये तथ्य सामने आए.
PM10 कहाँ जमा होता है?
PM2.5 और PM1 जमा होते हैं-
दिल्ली में सर्दी में पॉल्यूशन का मुख्य कारण PM2.5-
एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा पॉल्यूशन कंट्रोल पॉलिसी में भी पीएम10 को प्राथमिकता दी जाती है. जबकि सर्दियों के दौरान दिल्ली के पार्टिकुलेट पॉल्यूशन में पीएम2.5 का योगदान करीब 70 फीसदी है.
18 अक्टूबर से 16 नवंबर तक CPCB AQI बुलेटिन के आंकड़ों के मुताबिक 15 दिनों तक पीएम2.5 मुख्य प्रदूषक रहा. जबकि 13 दिनों तक पीएम2.5 और पीएम10 का प्रभुत्व रहा. एक दिन पीएम2.5 + ओजोन का प्रभुत्व रहा. जबकि एक दिन पीएम2.5+PM10+ओजोन का प्रभुत्व रहा.
डॉ. कुमार ने बताया कि दिल्ली की सर्दियों की हवा में पीएम2.5 करीब हर दिन हावी रहता है. फिर भी पॉलिसी डस्ट कंट्रोल करने पर है. उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि डस्ट कंट्रोल के मौजूदा उपाय सतह पर ही हैं. जब तक पीएम2.5 के सोर्स पर एक्शन नहीं लिया जाएगा, तब तक हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा.
(मिलन शर्मा की रिपोर्ट)
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