![Dr. Ravinder (Photo: facebook) Dr. Ravinder (Photo: facebook)](https://cf-img-a-in.tosshub.com/lingo/gnt/images/story/202405/665457a3951ad-dr-ravinder-27513010-16x9.png?size=948:533)
हैदराबाद में रहने वाले 41 वर्षीय डॉ. रविंदर चौकीदार एक जनरल और लेप्रोस्कोपिक सर्जन और महबुबाबाद जिले के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में जनरल सर्जरी के सहायक प्रोफेसर हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उनकी पहचान सिर्फ डॉक्टर होने तक सीमित नहीं है बल्कि वह डॉक्टर होने के साथ-साथ समाज सेवा की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं.
डॉ रविंदर ने सुश्रुत फाउंडेशन फॉर हेल्थ, कल्चर एंड एजुकेशन शुरू की है जिसके जरिए वह कम से कम लागत पर सर्जरी करते हैं, मंदिरों के निर्माण में योगदान देने के अलावा आर्थिक रूप से वंचित परिवारों के छात्रों को मुफ्त में किताबें देते हैं और उनकी फीस भी भरते हैं. उनकी फाउंडेशन साल 2006 से एक्टिव है लेकिन फाउंडेशन को आधिकारिक तौर पर 2016 में पंजीकृत किया गया था.
कैसे हुई उनकी शुरुआत
फाउंडेशन की गतिविधियों का समर्थन करने के लिए डॉ रविंदर और फाउंडेशन के दूसरे सदस्य अपनी मासिक आय का 20% योगदान देते हैं. भारतीय सर्जरी के जनक माने जाने वाले सुश्रुत से प्रेरित होकर उन्होंने फाउंडेशन का यह नाम रखा. वारंगल जिले के थुरपुतंडा, एनुगल में जन्मे डॉ. रविंदर ने दृढ़ संकल्प के साथ अपनी पढ़ाई की. उनकी राह आसान नहीं थी क्योंकि उन्होंने घर से भागकर कोठागुडेम के गंगाराम गांव में एक छात्रावास में दाखिला लिया.
अपनी इंटरमीडिएट की शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया मेडिकल कॉलेज में एक सीट हासिल की. वारंगल के काकतीय मेडिकल कॉलेज में मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह 2018 में चार साल के लिए चिकित्सा अधिकारी के रूप में सेवा करने के लिए गंगाराम लौट आए. साल 2021 में महबूबाबाद में वह सामान्य सर्जरी के सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए. मुफ़्त सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के बावजूद, डॉ. रविंदर ने सरकारी अस्पतालों से जुड़ी अक्षमताओं और देरी को दूर करने के लिए एक निजी संगठन की स्थापना की.
क्यों शुरू की यह फाउंडेशन
डॉ रविंदर का कहना है कि वह एक सरकारी अस्पताल में काम करते हैं, लेकिन अपनी फाउंडेशन के माध्यम से उन लोगों की मदद करते हैं जो सर्जरी के लिए उनके पास आते हैं क्योंकि सरकारी अस्पताल में प्रक्रिया में बहुत समय लगता है. और वह हर समय अस्पताल में उपलब्ध नहीं रह सकता. इसीलिए उन्होंने इस फाउंडेशन की स्थापना की, जहां वह मरीजों का जल्द से जल्द इलाज करके उन्हें डिस्चार्ज करते हैं.
जैसे कि कुछ समय पहले उन्होंने रुक्मिनाम्मा नाम की एक बुजुर्ग महिला की मदद की थी. रुकमिनाम्मा के पेट में 12 किलो का ट्यूमर था. उसके परिवार के सदस्यों ने शुरू में हैदराबाद के कई अस्पतालों से संपर्क किया, लेकिन सर्जरी की लागत लगभग 7 लाख रुपये होने के कारण वे इलाज का खर्च नहीं उठा सके. सुश्रुत फाउंडेशन के माध्यम से, उन्होंने ऑपरेशन किया और ट्यूमर को हटा दिया और आईसीयू और दवा के लिए सिर्फ 70,000 रुपये का शुल्क लिया.
गरीबों की करते हैं हर संभव मदद
डॉ रविंदर का जन्म और पालन-पोषण एक गरीब परिवार में हुआ, जहां उन्हें सभी प्रकार के संघर्षों का सामना करना पड़ा. उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे और उन्होंने रविंदर को बहुत प्रेरित किया. वह जानते हैं कि गरीबी में रहना कैसा होता है, और नहीं चाहते कि अन्य लोग भी इसी स्थिति से गुजरें. इसलिए, वह जिस हद तक संभव हो मदद करते हैं. हाल ही में, उन्होंने चार मेडिकल छात्रों को उनकी फीस 1 लाख रुपये का भुगतान करके मदद की.
41 साल की उम्र में, डॉ. रविंदर न केवल जरूरतमंदों की सहायता करते हैं, बल्कि अपने दोस्तों की मदद से लगभग 60 गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे विभिन्न विषयों पर हर रविवार को जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं. वह लोगों को और अधिक प्रेरित करने के लिए सम्मानित समुदाय के सदस्यों को शामिल करता है. इसके अतिरिक्त, वह वंचित बच्चों के लिए निजी ट्यूशन भी देते हैं. डॉ. रविंदर ने अपनी पहल से अनगिनत चेहरों पर मुस्कान ला दी है और उन्हें उम्मीद है कि वे एक बेहतर और स्वस्थ भारत के सफर को जारी रखेंगे.