scorecardresearch

World Cancer Day: युवा महिलाओं में आ रहे हैं ब्रेस्ट और कोलोरेक्टल कैंसर के मामले, जानें क्या है इसकी वजह और कैसे करें खुद का बचाव  

World Cancer Day: मौजूदा समय में महिलाओं में ब्रेस्ट और कोलोरेक्टल कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में कैंसर को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार काम चल रहा है.

World Cancer Day World Cancer Day
हाइलाइट्स
  • मैमोग्राफी और कोलोनोस्कोपी का ध्यान रखें 

  • युवा महिलाओं में भी आ रहे हैं ब्रेस्ट कैंसर के मामले 

दुनियाभर में 4 फरवरी को वर्ल्ड कैंसर डे मनाया जाता है. ये दिन कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को इसके बारे में सजग करने के लिए मनाया जाता है. दरअसल, पिछले कई साल से महिलाओं में कैंसर के बढ़ते मामले सामने आ रहे हैं. महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, ब्रेस्ट कैंसर के निदान के समय की औसत 62 साल की उम्र वाली महिलाओं में ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर के मामले देखे जाते हैं. दूसरी ओर, कोलोरेक्टल कैंसर आमतौर पर 60 साल से ज्यादा उम्र के बाद होता है. लेकिन पिछले दशकों में युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं. 

युवा महिलाओं में भी आ रहे हैं ब्रेस्ट कैंसर के मामले 

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए नारायण अस्पताल डॉ कौशल किशोर यादव ने बताया, "वैश्विक स्तर पर, लगभग 8 में से 1 महिला को अपने जीवनकाल में ब्रेस्ट कैंसर होगा. ब्रेस्ट कैंसर ज्यादातर उम्रदराज महिलाओं में होता है, लेकिन कई मामलों में, यह 45 साल से कम उम्र की महिलाओं को भी हो जाता है. हालांकि, हाल के कुछ मामलों में देखा गया है कि कैंसर में मामले युवा महिलाओं में भी देखे जा रहे हैं. कुछ शोधों से पता चलता है कि ब्रेस्ट कैंसर के सभी नए मामलों में से लगभग 9 प्रतिशत 45 साल से कम उम्र की महिलाओं में पाए जाते हैं.”

हमारी जीवनशैली है इसकी दोषी 

कई डॉक्टर्स का मानना है कि हमारी आधुनिक जीवन शैली इसका कारण है. आज हमारी जीवन शैली में जोड़ी गई आदतें और हमारे रूटीन में बड़े पैमाने पर परिवर्तन आया है. हमारे बिगड़ते स्वास्थ्य में ये एक प्रमुख तरीके से योगदान करते हैं. ब्रेस्ट और कोलोरेक्टल कैंसर के लिए भी कुछ ऐसा ही है. इसके अलावा प्रदूषण, मांस और शराब के सेवन सहित हमारी डाइट में भी परिवर्तन आया है. जिसके कारण कोलोरेक्टल कैंसर के मामलों में वृद्धि हुई है. 

कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़े हैं मामले 

वहीं अगर कोलोरेक्टल कैंसर की बात करें तो 1980 के दशक के मध्य से कोलोरेक्टल कैंसर के मामलों में 45 प्रतिशत की गिरावट आई है. नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि 1990 में पैदा हुए लोगों में कोलन कैंसर का खतरा दोगुना और चौगुना होता है. 1950 के आसपास पैदा हुए लोगों की तुलना में कोलन कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. 

मैमोग्राफी और कोलोनोस्कोपी का ध्यान रखें 

युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर में बढ़ते मामलों को देखते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं. उनका कहना है कि महिलाएं समय-दर-समय मैमोग्राफी और कोलोनोस्कोपी करवाएं, ताकि गंभीर बीमारी का पहले से ही पता चल जाए और उसका ट्रीटमेंट किया जा सके. 

ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआत में पता किया जाना मैमोग्राम के माध्यम से संभव है. लेकिन स्थिति का आकलन करने के लिए बायोप्सी की आवश्यकता होती है. आजकल कई महिलाओं में ब्रेस्ट फाइब्रोएडीनोमा बन जाता है, जो ब्रेस्ट में गांठ बनने का सबसे आम कारण है. जबकि ब्रेस्ट फाइब्रोएडीनोमा गैर-कैंसर वाले होते हैं, लेकिन फिर भी इनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, यही कारण है कि ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए मैमोग्राम और खुद देखते रहना जरूरी है. 

कैसे करें खुद का बचाव?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, महिलाओं को खुद का बचाव करने के लिए एक एक्टिव जीवन शैली अपनानी चाहिए, स्वस्थ वजन बनाए रखना चाहिए, बहुत ज्यादा प्रोसेस्ड फ़ूड न खाएं, नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, बच्चों को  स्तनपान कराने की कोशिश करनी चाहिए, बच्चे के जन्म में देरी नहीं करनी चाहिए और ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव गोलियों का कम सेवन करना चाहिए. इसके साथ इन बातों का रखें ध्यान-

-स्वस्थ आहार बनाए रखें - स्वस्थ हरी सब्जियां, फल और साबुत अनाज खाएं. 

-शराब के सेवन से बचें. 

-धूम्रपान से बचें.

-डॉक्टर्स की सलाह लेते रहें. किसी भी लक्षण को नजरअंदाज न करें. 

-स्वस्थ वजन बनाए रखें. 

इसके अलावा कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिस तरह मैमोग्राम और ब्रेस्ट सेल्फ-एग्जामिनेशन ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती पता लगाने में महत्वपूर्ण हैं, उसी तरह कोलोनोस्कोपी वर्तमान में कोलन कैंसर की जांच के लिए अभी बेस्ट है. इसे लेकर बीएस संकेतों का ध्यान रखें. दस्त, कब्ज, मलाशय से खून बहना, पेट की परेशानी, कमजोरी, थकान, अचानक से वजन घटने आदि सहित इसके कुछ लक्षण हैं.