
52 साल के अनिल कुमार पिछले कुछ हफ्तों से पेट और सीने में बेचैनी महसूस कर रहे थे. कई बार उन्हें लगता कि यह सिर्फ गैस या अपच की वजह से हो रहा है लेकिन रात में उन्हें अचानक सीने में तेज दर्द और सांस लेने में दिक्कत हुई. परिवारवालों ने तुरंत उन्हें अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने कहा कि यह हार्ट अटैक के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. अनिल की कहानी कई ऐसे लोगों की है, जो हार्ट अटैक और सामान्य गैस के दर्द में फर्क नहीं कर पाते.
आज वर्ल्ड हार्ट डे है. ये दिन दिल की सेहत और कार्डियोवास्कुलर बीमारियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए समर्पित है. हमारे देश में करीब साढ़े 5 करोड़ लोग हार्ट के मरीज हैं. हर साल इस बीमारी से 28 लाख लोगों की मौत हो जाती है. ऐसे में आज जानेंगे कि हार्ट अटैक और गैस के दर्द में क्या फर्क होता है.
हार्ट अटैक और गैस के दर्द में फर्क कैसे करें?
एक्सपर्ट बताते हैं कि हार्ट अटैक और गैस के दर्द में कुछ बुनियादी अंतर होते हैं. हार्ट अटैक में दर्द अक्सर छाती के बीच, हाथ, पीठ या जबड़े तक फैल सकता है. यह तेज और दबाव जैसा होता है. गैस या अपच में दर्द पेट या छाती के ऊपरी हिस्से में सिकुड़न या जलन जैसी महसूस होती है. हार्ट अटैक के दौरान सांस फूलना, चक्कर आना और पसीना आना आम हैं लेकिन गैस में यह लक्षण आमतौर पर नहीं दिखाई देते. हार्ट अटैक का दर्द कुछ मिनटों से लेकर घंटे तक स्थायी रह सकता है और आराम या हिलने-डुलने से कम नहीं होता. गैस का दर्द अक्सर खाने के बाद या पेट के दबाव से कम हो जाता है.
कब परेशान होने की जरूरत: अगर छाती में दर्द या असुविधा 10 मिनट से अधिक रहती है या बार-बार होती है, तो इसे हल्के में न लें. तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नोएडा, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. अशीष कुमार गोविल ने दिल की सेहत जांचने के लिए 5 जरूरी टेस्ट बताए हैं.
लिपिड प्रोफाइल: लिपिड प्रोफाइल टेस्ट से खून में कुल कोलेस्ट्रॉल, LDL (खराब कोलेस्ट्रॉल), HDL (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) और ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर पता चलता है. ज्यादा LDL और ट्राइग्लिसराइड्स नर्व में प्लाक बनाते हैं, जिससे हार्ट अटैत और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है. HDL कोलेस्ट्रॉल खून से एक्स्ट्रा फैट निकालने में मदद करता है. हल्दी लोगों को यह टेस्ट 4–6 साल में एक बार और जो लोग डायबिटीज, मोटापा या पारिवारिक इतिहास रखते हैं, उन्हें साल में एक बार जरूर करवाना चाहिए.
ब्लड प्रेशर चेक करें: हाई ब्लड प्रेशर यानी हाइपरटेंशन “साइलेंट किलर” के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके लक्षण अक्सर देर से दिखते हैं.सामान्य ब्लड प्रेशर 120/80 mmHg से कम होना चाहिए. लगातार 130/80 mmHg या उससे अधिक रहने पर दिल और blood vessels पर दबाव बढ़ता है. घर पर नियमित मॉनिटरिंग और समय-समय पर क्लिनिक चेकअप से समय रहते खतरे का पता लगाया जा सकता है.
ब्लड शुगर टेस्ट: डायबिटीज हृदय रोग के जोखिम को काफी बढ़ा देती है. फास्टिंग ब्लड शुगर, HbA1c या ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर शुगर को कितना नियंत्रित कर पा रहा है. हाई शुगर blood vessels को नुकसान पहुंचाता है और कोरोनरी आर्टरी डिजीज जैसी बीमारियों को बढ़ावा देता है. 40 वर्ष से अधिक उम्र या मोटापे/निष्क्रिय जीवनशैली वाले लोगों को साल में एक बार यह जांच करानी चाहिए.
ECG: यह टेस्ट दिल की धड़कन और इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को दिखाता है. हार्ट अटैक और दिल के दूसरे रोगों का पता लगाने में मदद करता है.
Echo: अल्ट्रासाउंड की मदद से दिल की संरचना और वाल्व की स्थिति का टेस्ट होता है. यह हार्ट फेलियर और वॉल्वुलर बीमारी को पहचानने में कारगर है.
ट्रेडमिल टेस्ट: दिल की क्षमता और ब्लड फ्लो की जांच के लिए किया जाता है. यह टेस्ट बताता है कि हार्ट को कितनी मेहनत में ऑक्सीजन मिल रही है और किसी ब्लॉकेज का खतरा है या नहीं.
दिल की सेहत को बनाए रखने में खान-पान की आदतें सबसे बड़ा रोल निभाती हैं. सही भोजन और जीवनशैली से दिल की बीमारियों का जोखिम काफी हद तक कम किया जा सकता है.
तेल वाला खाना और जंक फूड से बचें- पिज्जा, बर्गर, फ्राईड फूड और प्रोसेस्ड स्नैक्स दिल की धमनियों पर बुरा असर डालते हैं.
फल और सब्जियों का सेवन बढ़ाएं- हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल, नट्स और बीज दिल के लिए फायदेमंद होते हैं.
नमक और चीनी कम खाएं- ज्यादा नमक और मीठा उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल बढ़ा सकता है.
प्रोटीन के सही स्रोत चुनें- सफेद मीट, दालें, टोफू और दूध से पर्याप्त प्रोटीन लें.
पानी पर्याप्त पीएं- हृदय और ब्लड सर्कुलेशन के लिए शरीर को हाइड्रेटेड रखना जरूरी है.
दुनिया भर में दिल की बीमारी मौत का सबसे बड़ा कारण
आपको बता दें, दुनिया भर में दिल की बीमारी मौत का सबसे बड़ा कारण है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार, देश में होने वाली मौतों में लगभग हर चौथी मौत कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के कारण होती है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें आनुवंशिकी का भी योगदान है, लेकिन जीवनशैली, खासकर आहार और खाने की आदतें, दिल की सेहत पर सबसे बड़ा असर डालती हैं. लगातार तनाव, तेल वाला खाना और जंक फूड का सेवन, धूम्रपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी दिल की बीमारी के जोखिम को बढ़ाती हैं.
ICMR की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में दिल की बीमारियों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय पर सावधानी और सही खान-पान अपनाया जाए तो अधिकांश मामलों में जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है.