
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हुए आतंकी हमले की आज 21वीं बरसी है. आज के दिन ही आतंकियों ने संसद भवन को निशाना बनाया था. हालांकि हमारे बहादुर जवानों ने भी मुंहतोड़ जवाब देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ये ऐसी घटना थी, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इस हमले में 9 लोगों की मौत हुई थीं वहीं इस घटना को अंजाम देने में शामिल सभी पांच आतंकवादी भी मारे गए थे. ये हमला लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद आतंकी ग्रुप के आंतकवादियों ने किया था.
तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे "पूरे देश के लिए एक चुनौती" करार दिया था और कहा था कि "हम इसे स्वीकार करते हैं", इसके बाद भारत लगभग पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गया था. जिस वक्त संसद पर हमला हुआ था उस वक्त सदन में देश के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन समेत कई दिग्गज नेता मौजूद थे.
कैसे हुआ था संसद पर हमला-
13 दिसंबर को संसद में ताबूत घोटाले को लेकर हंगामा चल रहा था. इसको लेकर दोनों सदनों को स्थगित कर दिया गया. उसी वक्त संसद के बाहर गेट पर कुछ हलचल हो रही थी. संसद में तैनात सुरक्षाकर्मियों को मैसेज मिला कि उपराष्ट्रपति कृष्णकांत संसद से निकलने वाले हैं. उनके काफिले की गाड़ियां गेट नंबर 11 के सामने खड़ी कर दी गईं. इसी दौरान एक सफेद रंग की एंबेसडर कार गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ने लगी. कार की स्पीड धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी. अचानक कार ने उपराष्ट्रपति के काफिले की कार को टक्कर मार दी. इसके बाद कार ड्राइवर कार को गेट नंबर 9 की तरफ ले जाने लगा. इसको देखकर सुरक्षाकर्मी जेपी यादव ने सभी गेट बंद करने का मैसेज भेजा. इतने में कार किनारे लगे पत्थरों से टकराकर रूक गई. कार से सवार 5 लोग उतरे और वायर्स बिछाना शुरू कर दिया. इसके बाद एएसआई जीतराम ने एक आतंकी पर फायरिंग की. आतंकवादियों ने भी भारतीय जवानों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. करीब 30 मिनट तक हुई गोलीबारी के बाद अंततः सभी आतंकवादियों को संसद भवन के बाहर ढेर कर दिया गया.
इन लोगों ने गवाई थी जान
हमले में जान गंवाने वाले नौ लोगों में राज्यसभा सचिवालय के सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी, सीआरपीएफ कांस्टेबल कमलेश कुमारी, दिल्ली पुलिस के जवान नानक चंद, रामपाल, ओम प्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्याम और सीपीडब्ल्यूडी के माली देशराज शामिल थे.
आतंकी हमले के बाद...
भारतीय संसद पर हमले के मामले में चार चरमपंथियों को गिरफ़्तार किया गया था. ये थे- मोहम्मद अफज़ल, शौकत हुसैन, अफ़सान और प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी. सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफसान को बरी कर दिया, लेकिन अफजल गुरु की मौत की सजा बरकरार रखी थी और शौकत हुसैन की मौत की सजा को घटाकर 10 साल की सजा कर दिया था. लंबे कोर्ट केस के बाद 9 फरवरी 2013 के दिन अफजल गुरु को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी.
पाकिस्तान में इन आतंकवादियों को कोई सजा नहीं मिली. वहां आज भी कई आतंकी संगठन सक्रिय हैं. ये बात अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई बार साबित भी हो चुकी है. पाकिस्तान के ये आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद अब अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बना चुके हैं. जैश और लश्कर ने पिछले अगस्त में अफगानिस्तान में 11 प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए हैं. लेकिन पाकिस्तान की भारत पर की गई हर आतंकी कोशिश को भारतीय जवानों ने अपने जज्बे और बहादुर से हमेशा नाकाम ही किया है.