
असमिया लोगों के लिए उनकी पहचान कहलाने वाले 'गमोचा' को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग (जीआई) मिल गया है. केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ट्विटर पर इसकी पुष्टि की है. केंद्रीय मंत्री ने जीआई टैग प्राप्त करने पर असम के लोगों को अपनी बधाई दी है. उन्होंने कहा कि ये उनके लिए एक गर्व करने वाला दिन है. केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट करते हुए लिखा, “ये दिन असम के लोगों के लिए एक गर्व का दिन है. गमोचा को भारत सरकार की ओर से ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिल गया है. इसके लिए मैं पीएम नरेंद्र मोदी का आभारी हूं.”
गमछे जैसा होता है गमोचा
बता दें, जीआई को मुख्य रूप से एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पादों, हस्तशिल्प और औद्योगिक वस्तुओं के लिए एक टैग के रूप में जाना जाता है. इसका मतलब होता है कि वह उत्पाद उसी जगह की उत्पत्ति है. गमोचा विभिन्न डिजाइनों और रूपांकनों में लाल बॉर्डर के साथ हाथ से बुना हुआ एक आयताकार कपड़े का टुकड़ा होता है. ये एक गमछे के जैसा होता है. इसे अक्सर असमिया लोगों द्वारा सम्मान और सम्मान के निशान के रूप में बड़ों और मेहमानों को पेश किया जाता है.
असम के लिए है इसका बहुत महत्व
एक 'गमोचा' का शाब्दिक अर्थ है एक तौलिया और आमतौर पर असमिया घरों में दिन-प्रतिदिन के कामों के लिए उपयोग किया जाता है. खास मौकों पर इसे सिल्क जैसी महंगी चीज से भी बनाया जाता है. इसे बिहुवान भी कहा जाता है, क्योंकि यह असम के बिहू त्योहार का एक अनिवार्य हिस्सा होता है.
विशिष्ट उद्देश्यों के लिए, यह पारंपरिक असमिया 'पैट' रेशम जैसी महंगी सामग्री और अलग-अलग रंगों में भी बनाया जाता है. 'बिहू' उत्सव के दौरान इसे 'बिहुवन' के नाम से जाना जाता है. यह अनोखा दुपट्टा, जो केवल असम में पाया जाता है, वेदियों को सजाते समय या धार्मिक पुस्तकों को ढंकते समय भी श्रद्धा के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता है.
5 साल के इंतजार के बाद मिला ये टैग
गौरतलब है कि जीआई टैग मिलने पर उत्पाद को अब कानूनी सुरक्षा मिलेगी जो इसके अनधिकृत उपयोग को रोकने में मदद करेगी. गमोचा को ये टैग 5 साल बाद मिला है. 16 अक्टूबर 2017 को असम के गोलाघाट जिले में हस्तशिल्प विकास संस्थान द्वारा जीआई रजिस्ट्री में 'गामोसा' के लिए आवेदन दायर किया गया था. 5 साल के इंतजार के बाद, इसे आखिरकार आईजी टैग मिल गया है.