
अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की फ्लाइट क्रैश हो गई. इस विमान में 242 लोग सवार थे. इसमें से सिर्फ एक इंसान जिंदा बचा है. बाकी सभी लोगों की मौत हो गई है. ये विमान एक मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल पर गिरा, जिसे बिल्डिंग में आग लग गई. इस हादसे में कई डॉक्टर्स की भी जान गई है. अक्सर लोगों में हवाई यात्रा को लेकर डर रहता है. जबकि हवाई यात्रा दुनिया की सबसे सुरक्षित यात्राओं में से एक माना जाती है. हालांकि किसी भी हवाई हादसे में मुसाफिरों का बचना मुश्किल होता है. लेकिन प्लेन में कुछ सीटें ऐसी होती हैं, जो दूसरों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित मानी जाती हैं. फेडरल एविएशन एडमिनिस्टर यानी FAA के डाटा के मुताबिक प्लेन में कुछ सीटें दूसरों के मुकाबले ज्यादा सेफ होती हैं.
कौन सी सीट होती है सेफ?
अमेरिका की नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड ने 1971 से अब तक 20 विमान हादसों का अध्ययन किया. जिसमें कुछ मुसाफिरों की जान बची थी. इस स्टडी से पता चला कि जो मुसाफिर विमान में पीछे की सीटों पर बैठे थे, उनके जिंदा रहने की संभावना 69 फीसदी थी. जबकि आगे बैठने वाले मुसाफिरों के बचने की संभावना 49 फीसदी और विंग के पास बैठने वाले मुसाफिरों के बचने की संभावना 59 फीसदी थी.
FSS के डेटा ने किसे सेफ बताया?
टाइम पत्रिका ने फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के डेटा का विश्लेषण किया. इसमें 1985 से 2000 के बीच ऐसे हवाई हादसों को शामिल किया गया, जिसमें कुछ लोगों की जान बची थी. इस स्टडी में भी पाया गया है कि विमान का पिछला हिस्सा ही सेफ होता है. इसके अलावा बीच का हिस्सा भी सेफ पाया गया. सबसे ज्यादा असुरक्षित हिस्सा आगे का पाया गया. पिछले हिस्से में बैठने वाले मुसाफिरों की मौत का दर 28 फीसदी था. जबकि मध्य हिस्से में मौत का दर 44 फीसदी थी.
एफएसएस के डेटा के मुताबिक विंग के पास की सीटें ज्यादा सेफ होती है. विंग की सीटें इमरजेंसी एग्जिट के पास होती है, ऐसे में इमरजेंसी में बाहर निकलने में मदद मिलती है. एग्जिट रॉ में बैठे व्यक्ति भी सर्वाइव कर सकते हैं. प्यूल टैंक के पास की सीटों पर बैठना रिस्की होता है. किसी भी हादसे में सबसे पहले फ्यूल में आग पकड़ती है.
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